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________________ जी॥प्रजुजीनुं बदु मान करीने, सान अनंतो लीजें। सांग ॥ १४ ॥ वारे वारे कडं बु तो पण, तुं तो मन मो नाणे जी ॥ महारा मनमा होंश अ ते, केवल झानी जाणे ॥ सां० ॥ १५॥ सखिवयणे एम थई उ जमाली, चाली सघली बाली जी ॥ निसुणी दश आशातना दाली, अनुवाणी सटकाली ॥ सांग ॥ २६॥ णीपरें त्रीश वरस केवलथी, बहु नर नारी तारी जी ॥ श्म वधावो चोथो सुंदर, दीप कहे सु खकारी॥सांग ॥१७॥ ॥वधावो पांचमो॥ ॥श्रादिजिनेसर विनति हमारी ॥ ए देशी ॥ ॥ कल्याणक पांचमुं जिनजी, गावो हर्ष अपार वाला ॥ जगवल्लन प्रजुना गुण गाई, सफल करो अव तार वाला ॥ शासननायक तीरथ वंदो ॥१॥ए श्रां कणी ॥ जग चातकने दान दीयंता, विचरंता जग जाण वाला॥ मध्य अपापा नगरी पधास्या, प्रणमे पद महिराण वाला ॥शा ॥ ३ ॥ प्रजुयें लानालाज विचारी, अणपूग्यो उपदेश वाला ॥ शोल पहोर सगे अमृतवाणी, वरस्या नवि उपदेश वाला ॥ शा ॥३॥ दीवालीदिने मुक्ति पधास्या, पाम्या पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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