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________________ ऊपर हितकारी, बेग जग उपकारी ॥सां॥५॥ गुण 'पांत्रीश सहित प्रजुवाणी, निसुणे ले सहु प्राणी जी॥ लोकालोक प्रकाशक वाणी, वरसे डे गुणखाणी ॥सांग ॥६॥मालकोश शुनराग समाजें, जलधरनी परें गा जे जी॥ श्रातपत्र प्रनु शिरपर राजे, नामंगल बवि गजे ॥ सांग ॥ ॥नीकी रचना त्रणे गढनी, प्रजुनां चारे रूप जी॥ वली केवल कमलानी शोना, निरखे सुर नर नूप ॥ सां॥७॥ अनूति आदें सहु म क्षीने, जगन करे जूदेव जी॥ विद्या वेदतणा अन्या सी, अनिमानी अहमेव ॥ सां०॥ ए॥ ज्ञानी था व्या निसुणी काने, मनमें गर्व धरंत जी ॥ श्राव्यो त्रिगडे वाद करेवा, दीगे जगजयवंत ॥ सांग ॥१०॥ ततदण नामादिक बोलावे, तुभ्य सहुने जाणी जी॥ जीवादिक संदेह निवारी, थाप्यो गणधर नाणी॥ सांग ॥ ११॥ त्रिपदि पामी प्रनु शिर नामी, हादशा गी सुविचारी जी॥ पद ब लाख बत्रीश सहस्सनी, रंचना कीधी सारी ॥सांग ॥१॥ चालो तो जो याने जश्ये, वंदीजें जगवीर जी ॥ वली प्रणमीजें सोहम पटधर, गौतमखामी वजीर ॥ सांग ॥१३॥ निरखीजें मनुजीनी मुडा, नरलव सफलो कीजें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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