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________________ मानंद वाला ॥ अजर अमरपद ज्ञान विलासी, थ क्षक सुखनो कंद वाला ॥ शा॥४॥ ए प्रजु कर्ता श्रकर्ता जोक्ता, निजगुणे विलसंत वाला ॥ दर्शन ज्ञान चरण ने वीरज, प्रगव्या सादि अनंत वाला। शा॥५॥ आकाश असंख्य प्रदेशी, तेदना गुण डे अनत वाला ॥ ए तो एक प्रदेश साहिब, अनंत गुणे जगवंत वाला ।। शा॥६॥ ए प्रजुध्येयने सेव क ध्याता, एहमां ध्यान मिलाय वाला ॥ त्रिक जो में प्ररणता प्रगटे, सेवक ए सम थाय वाला ॥ शाण ॥७॥ गावो पांचमो मोद वधावो, ध्यावो वीर जि णंद वाला || शुजलेश्यायें जग गुरु ध्याने, टालो नव नय फंद वाला ॥ शा॥७॥ श्म प्रनु वीरतणांक स्याणक, पांच नवोदधि नाव वाला || श्री विजयल क्ष्मी सूरीश्वर राजें, में गाया शुज नाव वाला ॥ शाण ॥ए॥ श्रीजिनगणधर आणारंगी; कपूरचंद विश्राम वाला ॥ तस आग्रहथी हर्षित चित्तें, खंजात नयर सुगम वाला || शा॥ १० ॥ पंडित श्रीगुरु प्रेमपसा यें, गाया तीरथराज वाला ॥ दीपविजय कहे मुजने होजो, तीरथफल माहाराज वाला ॥ शा॥ ११ ॥ शति पांच वधावा संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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