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________________ (ए) ॥ श्री गहू लियो लखी बे ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम गहूंली ॥ ॥ कुंवर पगले पग दइने चंडिया ॥ ए देशी ॥ ॥ रूडी गहूंली रंग रसाली, । जनशासनमांहे नित्य रे दीवाली || रूडी राजगृही अति शोहे, ते देखी त्रि जुवन मन मोहे ॥१॥ तिहां तो वीर याव्या रे चोमासें, राजा श्रेणिक वंदे उल्लासें ॥ तस अजयकुंवर प्रधान, मंत्री बहु बुद्धिनिधान ॥ २ ॥ राजा श्रेणिकनी घर नार, शिरोमणि चेला सार ॥ बार व्रतनी साडीज पहेरी, नव वाडनी घाटडी घरी ॥ ३ ॥ पदेयां जिनगुणभूषण अंगें, गुरुगुण गावे मन रंगें ॥ सम कित कचोलुं रे जरियुं, श्रद्धामांदे कुंकुम घोलियुं ॥ ४ ॥ पंचाचार ते पंच रतन, ठवणी उपरें करो रे जतन ॥ मन निर्मल मोती वधावे, ते तो शिवरमणी सुख पावे ॥ ५ ॥ बुध न्यायसागरनो शिष्य, जे जणशे जि नगुण जगीश ॥ तस घर होय कोडी कल्याण, वली पामे मोक सुजाण ॥६॥ इति ॥ १ ॥ ॥ अथ श्री गहूंली बीजी ॥ ॥ वाली माहरो श्राव्या श्री गोकुल गाम रे ।। एदेशी ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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