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(७३) ध्यान ॥ जीरे ललित ॥२॥ जीरे दीपक अगर उखेवियें, जीरे रात्रि जागरण नित्य ॥जीरे पूजा वि विध रचावी, जीरे त्रण दिवस इणि रीत ॥ जीरे ललित ॥ ३॥ जीरे सुण सजनी रजनी गश्, जीरे कल्प धुरा परमात ॥जीरे सहियर मली मंगल नणे, जीरे हय गय रथ मेलात ॥ जीरे ललित० ॥४॥ जीर वरघोडे नली जातशु, जीरे शुचि तनु पुस्तक हाथ ॥जीरे श्म मंमाणे थावीया, जीरे जिहां श्रुत निधि गुरुनाथ ॥ जीरे ललित० ॥५॥ जीरे गुरुस न्मुख लही वांचना, जीरे प्रमुदित पर्षदामांह ॥ जीरे इणि अवसर गजगति सती, जीरे मुनिपद नम न उत्साह ॥ जीरे ललित॥६॥जीरे सम कितवंती श्राविका, जीरे सहियर मली समदिठ॥ जीरे अनु नव उज्ज्वल मोतीये, जीरे स्वस्तिक लक्षण पीठ ॥ जीरे ललित० ॥७॥ जीरे स्वस्तिक पूरी वधावती, जीरे बेसती बेसणगय ॥जीरे पंच कल्याणक देशना, जीरे नव व्याख्यान सुणाय ।। जीरे ललित ॥७॥ जीरे बह अहम तप जिन नमी, जीरे सांजलशे नर नारी॥जीरे श्री शुनवीरने शासने, जीरे करशे एक अवतार ॥ जीरे ललित॥ए॥इति ॥६॥
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