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माहाराजनी, श्रेणिक सांजली रे लोल के ॥ वाला श्रेणिक पुर जन लोक के, सौ मली एकठां रे लोल के ॥ बा० ॥ २ ॥ वाला वंदी बेठो भूप के, प्रभुजी
गले रे लोल ॥ वाला चेला घूंघट ताणी के, उठी मन गहगही रे लोल के ॥ वा ॥ ३ ॥ वाला स्वस्ति क पूरी पास, वधावे मन रुली रे लोल के ॥ वाला लु ari करे वार वार, सोहागण सह मली रे लोल के ॥ वा ॥ ४ ॥ वाला सजी शोले शणगार के, मली घी बालिका रे लोल के ॥ वाला एसी परें जे जिन यागल, करे नित्त गहूंली रे लोल ॥ वा० ॥ ५ ॥ वाला जाय सकल जंजाल के, जवोदधि दुःख हरे रे लोल के || वाला कहे गौतम निरधार के, चित्त चोखे करी रे लोल के || वा० ॥ ६ ॥ इति ॥ ६० ॥
॥ अथ पर्यूषणने विषे कल्पसूत्र पधराववानी गहूंली एकशमी ॥
॥ जीरे ललित वचननी चातुरी, जीरे चतुर कहे गुरुराज || जीरे सुगुण सनेही सांजलो, जीरे पर्वप पण आज || जीरे ललित ॥ १ ॥ जीरे श्राश्रव जाव निवारीने, जीरे स्वजन सहित बहु मान ॥ जीरे कल्पसूत्र घर लावीयें, जीरे थाइधर धरी
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