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( ४५ ) दुःखने चूरे, वधावे चढते नूरें रे || गु० ॥६॥ सूरि गुणे त्री सोहावे, विजयानंद पद पावे रे || गुण ॥ प्रेम थी जावे नवनिध पावे, अमृत शिव सुख ध्यावे रे ।। गु० ॥ ७ ॥ इति ॥ ३५ ॥
॥ अथ गहूंली बत्रीशमी ॥ ॥ मोतीवाला जमरजी ॥ ए देशी ॥ चरण करणशुं शोजता ॥ व्रतधारी रे सुगुरु जी ॥ विजन मानस हंस रे || जगत उपकारी रे सुगुरुजी ॥ जंगमतीरथ साधु जी ॥ व्र० ॥ लोज तणो नहिं अंश रे ॥ ज० ॥ १ ॥ पडिरूवादिक गुण जरया, ॥ ० ॥ षटकारण लीये श्राहार रे ॥ ज० ॥ सामु दाणी गोचरी ॥ ० ॥ ज्ञानरतन जंगार रे ॥ ज० ॥ २ ॥ गीतारथ गुरु आगलें ॥ ० ॥ वनिता धरि य विवेक रे ॥ ज० ॥ सरखी साहेलियें परवरी ॥ ० ॥ सम कितनी घणी टेक रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ श्र स्तिक पीठनी उपरें ॥ व्र० ॥ अनुजव मुक्ता श्वेत रे ॥ ज० ॥ चिहुं गति चूरण साथीयो ॥ ० ॥ वधावती धरी देत रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ गुणवंती गावे गहूंश्र श्री ॥ ० ॥ मुनिगुणमणि धरि दाथ रे ॥ ज० ॥
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