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(१४१) ॥अथ श्री कोगरानी गईसी एकशो ने बावीशमी।
॥जीरे मारे प्रणमुं जिनवर पाय, मूकी मननो यां मलो । जीरे जी॥ जीरे मारे शोलमा श्रीजिनराय, शांतिनाथ जी करुणा करो ॥ जीरे जी ॥१॥ जी० पामी तास पसाय, गबपति गुरु स्तवना करुं॥ जी. ॥जी॥ जंगम तीरथनाथ तीर्थ वंदावो कृपा करी ॥जी॥२॥जी॥ वृक्ष जसवश उत्पन्न, गुरुकुल वासे दनमणि ॥जी॥जी॥ रत्न त्रयना निधान, माता कुंता बाश्य जनमिया ॥जी॥३॥जी॥ ग्रह गणमां ज्योतिचक्र, अविचल राज्ये ध्रुव रहे॥जी॥ जी०॥ मुनि परिवारमा तेम, गुण छत्रीशे शोजता॥ जी०॥४॥जी॥ वारे परनो गठ, निज आतम गुण अनुसरे ॥जी॥जी॥ ॥ कोगरा नगर मकार, श्रावक लोक सुखिया वसे ॥जी॥५॥जी॥गुरुच रणे लयलीन,रागी सोनागी करे वीनती॥जी॥जी० नर नारीनां वृंद, बहु आमंबरें लावीया॥जी॥६॥ जी॥ नव शत सजी शणगार, श्राविका सावे गहू अली ॥ जी० ॥ जी० ॥ आत्म बाजोठ पीठ, पे मिनी पूरे साथियो॥जी॥॥जी० ॥ समकित श्रीफल हाथ, लली लली लीये खूबणां ॥ जी
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