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________________ (२३) ए वनमांय ॥ सु० ॥ वनपालकें जश् वीनव्या ॥ गुरु ॥ ते सांजली कोणिक राय ॥ सु० ॥२॥ चतुरंगी सेना सऊ करी ॥ गुण ॥ गज रथ पायक नहि पार ॥ सु०॥ घणे आबरें राजवी ॥गुण ॥ वांदे थर उज माल ॥ सु॥३॥ संसार समुज्ने तारवा ॥ गु०॥ चार वार जवजंजाल ॥ सु० ॥ शोल शणगार सजी करी ॥ गु०॥ वांदे पद्मावती नार ॥ सु० ॥ ४॥ गहंली करे मन रंगशुं ॥ गुण ॥ अक्षत पूरे सार ॥ सु० ॥ खली खलीले उवारणां ॥ गु० ॥ प्रद क्षिणा दे मन सार ॥ सु० ॥५॥ चिहं गति वारक साथियो॥ गु० ॥ करता मनने कोड ॥ सु०॥ कहे मुक्ति कर जोडिन । गु० ॥ संघ मनना पुरजो कोड ॥ सु०॥६॥ इति ॥ १४ ॥ ॥ अथ गहूंली पन्नरमी ।। ॥ गर्व नकीजें रे, ए सजरु शीखडली ॥ए देशी ॥ ॥ सरसती चरण नम। करी केशु, गायशु आगम वाणी ॥ अर्थ ते अरिहंतजीयें प्रकाश्यो, सूत्र ते ग णधर वाणी ॥ नवि तुमें सुणजो रे ॥ सोहम गणधर वाणी ॥ मीठी लागे रे, मुजने वीरनी वाणी ॥१॥ ए आंकणी॥ चतुरा चालो मुरुनी पासे, गहूंली करीयें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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