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( २४ )
मन रंगें ॥ नवशत अंग घरी शणगार, प्रजुगुण गार्ड उ मंगे ||२|| हाथे रजत रकेबी धरीने, मांहे बीपना पुत्रने लावो ॥ स्वस्तिक पूरो गुरुने वधावो, गुरु गुण मधुरा गावो ॥ ज० ॥ ३ ॥ राजगृद्दी नयरें गुणशीलचै त्यें, तिहां प्रभु वीरजी आव्या ॥ जंजासार ते सांजली हरख्यो, चतुरंग सेनथी श्राव्या || ज॥ ४ ॥ चौद द आर मुनिराज संघातें, साध्वी सहस त्रीश ॥ इंद्रभू ति यादें देइ गणधर, प्रजुपरिवार जगी ॥ ज० ॥५॥ प्रभु यदि सरवेनें वांदी, मगधाधीश भूपाल ॥ चे सपा राणी करे ते गहूंली, प्रजुसन्मुख ततकाल || ॥ ज० ॥ ६ ॥ कुंकुम घोली साथीयो पूरे, अष्ट कर्म ने चूरे ॥ चिहुं गति चूरण दुःख निवारण, मनोवं बित सवि पूरे ॥ ज० ॥ 9 ॥ श्री अचलगष्ठपति पुज्य पट्टधर, पुण्यसागर सूरिराया ॥ सूरि बत्रीश गुणें करि शोड़े, जवि प्रणमो तस पाया ॥ ज० ॥ ८ ॥ जखौ बंदरे सुंदर श्रावक, गुरुगुणना बे रागी ॥ श्रीवीर प्रजुनो पसाय सहीनें, गातां शुजमति जा गी ॥ ज० ॥ ए ॥ आषाढ वदि एकमनें दिवसें, गहूंडी गाई मनरंगें ॥ चतुरा मलि सुकंठें गाजो, जावे घरी उमंगें ॥ ज० ॥ १० ॥ जे सोहागण मली,
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