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(२२) रे ॥ १ ॥ पंचसया परिवार, तारे नर ने नार ॥ ॥ आ० ॥ देशना पुष्कर जलधरे रे ॥२॥ज्ञप्रिय जीपे पंच, वारे क्रोधनो संच ॥ श्रा० ॥ गुरुमुख देखी नयणां रे रे ॥३॥ जिनमतकज दिनकार, सोहम स्वामी पट्टधार ॥ श्रा० ॥ चरण करण नंमार
रे ॥४॥ सोनागी शिरदार, सुविहित मुनि आधार ॥ आ०॥ पृथिवी पी- विचरतारे ॥ ५॥ प्रतिबंध विहार, समरस गुण सुखकार ॥ आ॥ वै राग्य जनताने रीकवे रे ॥६॥ विचरे देश विदेश, दे बहुला उपदेश ॥ श्रा०॥ बूऊवे जाण अजाणने रे ॥ ७॥ कोणिक नृप घरनार, स्वस्तिक पूरे उदार ॥ श्रा० ॥ छाननी जक्ति करे घणी रे॥७॥श्रुत नक्ति करे जेह, सुख विलसे नर तेह ॥ श्रा०॥ दर्शनसागर श्म वदे रे ॥ ए॥इति ॥१३॥
॥अथ गहली चौदमी॥ समविजय सत चांदलो॥शाम लिया जाए देशी॥
॥राजगृही नगरी सोहामणी ॥ गुरु आवे ॥श्री सोहम गणधार ॥ सुगुरु वधावे रे ॥ पंचसया मुनि साथ ले ॥ गु०॥ आतम सुखना करनार ॥ सु० ॥ ॥१॥ गुणशील नामे उद्यानमां ॥ गु० ॥ उतस्या
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