________________
(६५)
लोजने रे ॥ मु० ॥ कींपता करे जय विहार रे ॥ गु० ॥ चरण सत्तरी पालता रे ॥ मु० ॥ तिम करण सित्तरी सार रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ वंदन देतें आविया रे ॥ मु० ॥ राय श्रेणिक बहु परिवार रे ॥ गुण || चेला लावे ग हूं अली रे ॥ मु० ॥ घाट शील पहेरी मनोहार रे ॥ गु० ॥ ५ ॥ श्राभूषण सत्यवचननां रे ॥ मु० ॥ करे स्व स्तिक विनय प्रधान रे ॥ गु० ॥ श्रद्धा अक्षत थापती रे ॥ मु० ॥ करे लूणां सुप्रणीधान रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ देशना सांजले दर्षशुं रे ॥ मु० ॥ कहे धन धन तुम गुरुज्ञान रे ॥ गु० ॥ उत्तम गुरुपद पद्मनी रे ॥ मु० ॥ सेवा करता लहे शिवठाण रे || गु० ॥ ७ ॥ ५३ ॥
॥ अथ गुरु यागल गहूंली चोपनमी ॥ ॥ तमें पीतांबर पेस्यां जी, मुखने मरकलडे ॥ए देशी ॥ || चेला लावे गहूंली ॥ गुरु ए रूडा ॥ श्रेणिक नृप घरनार ॥ सजनी ए रूडा ॥ सोहम स्वामी समोस स्वा ॥ गु० ॥ प्रभु पंचम गणधार ॥ स० ॥ १ ॥ ब त्रीश बत्रीशी गुणें ॥ गुण | शोजित पुण्य पवित्त ॥ स० ॥ आगमवयण सुधारसें ॥ गुण ॥ वरशी वगरे चित्त ॥ स० ॥ २ ॥ पडिरूवादिक चौद बे ॥ गु० ॥ खांत्यादिक दश धर्म || स० ॥ बारह जावना जाविया
५
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org