SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३७) ॥स ॥ आ पांचशु राखे प्रेम, वहे जेम धोरी रे ॥आ अष्टमदने गालवा ॥स०॥ श्रा नवशुं राखे नेह, गुरु ब्रह्मचारी ॥३॥ था चार सदा चित्तमा वसे ।। स०॥ा बारशुं जीडे बाथ, श्रातम श्रजुवा ली रे॥ एवा गुरुने वांद\॥ स॥ श्रा शोल सजी शणगार ॥ सहियर टोली रे ॥४॥ था रजत रकेबी कर धरी ॥ स० ॥आ मांहे लावो बीपना पुत्र, कनक कचोरी रे ॥ श्रा चोकें चाचर चवटे ॥स॥ श्रा थोका थोके चालो, गाउँ गुण गोरी रे ॥५॥ श्राव खाणने अवसरे साथीयो ॥ स०॥ श्रा पूरे गुणवंती नार ॥ पुण्य सनूरी रे ॥ था केसरवहू काढे गहूथ ली॥ स॥आ धनबार पूरे चोक, चेत चतुरी रे ॥ ६॥ था अमृत सरिखी दिये देशना ॥ स ॥ श्रा सांजले श्रुत गुणबाण, वाणी मधुरी रे॥आ अचल गछपति शोजता ॥स ॥ था विवेकसागर सूरीज, पदवी रूडी रे॥७॥ इति ॥११॥ ॥गहूंखी एकशो बंगणीशमी॥ ॥प्रणमुं पदपंकज पास रे, जस नामें लील विलास रे. गाउं गुरुजी मनने उल्लास ॥ सूरीश्वर विनति वधारो रे ॥ सुजनगरी चोमासुं पधारो ॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy