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माता पृथ्वी जेणिये, गौतम गणधर जाया रे ॥ चाण ॥॥प्रनु वाणी निज चित्त समरती, परषद निज घर आवे रे ॥॥ दीपविजय कहे गौतम नामें, माहा मंगल पद पावे रे ॥ चा॥ ॥ इति ॥॥
॥अथ गहूंखी नवमी। ___॥ जयो तप रोहणी ए ॥ ए देशी॥ ॥ चंपा नगरी उद्यानमा ए, आव्या सोहम गणधार ॥ नमो गुरु नावशु ए ॥ हर्षपूरित नगरीजना ए, वांदवा जाय उजमाल ॥ नमो ॥१॥ कोणिक रा य तब पूछतो ए, आज किश्यो उत्सव थाय ।। ॥ नमो० ॥उत्सव के कौमुदी ए, एवडां लोक किहां जाय ॥ नमो॥२॥ के कोश जैनमुनि था विया ए, के तिहां जावे सवि जन्न ॥ न॥ तेह क हे प्रनु सांजसो ए, हर्ष करीने मन्न ॥ न० ॥३॥ तव कोणिकें वात सांजली ए, उबसी साते धात ।। ॥ न॥ गज रथ पायक सज कस्या ए, करी वली. निर्मल गात्र ॥ न॥ ४ ॥ मस्तक मुकुट रत्ने ज ड्या ए, इश्ए हार सोहंत ॥न ॥ एक सूरज ए क चंजमा ए, ए दोय कुंमल जलकंत ॥ न० ॥५॥
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