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________________ जाव उमंगशुरे ॥साची वाणी करी ए रीत, अमृत वाणी रंगशुरे॥७॥इति ॥ ७ ॥ ॥श्रथ गईली अहोतेरमी । ॥श्रावी हे देवा जलं जडो सासजी॥ए देशी॥ सरु पद पंकज नमी, सामणीजी ॥ गाशुं गुरु गुणमाल रे ॥ सङ्गुरु विचरंता वंदीयें ॥ सामणी जी॥ १॥ हादश अंग सिद्धांतना ।। सा॥पारग धारक एह रे ॥ स ॥ गुरु गुण बत्रीशे अलंकस्या ॥सा ॥ चरण करण नंमार रे ॥स ॥ सा ।। ॥॥ जव्य जीवने प्रतिबोधता ।। सा ॥ रत्नत्र यादि गुणधाम रे ॥ स०॥ गहूंथली करो गुरु आ गलें।सा॥ हषे धर। मन चंग रे ॥स० ॥सा०॥ ॥३॥ समकेत कुंकुम तिण समे ॥ सा ॥ समता निर्मल नीर रे ॥ स० ॥ थाल जख्यो शुज नावनो ॥ सा ॥ चोखा अखम परिणाम रे ॥स ॥ साण ॥४॥ मंगल साथीयो तिहां बन्यो । सा० ॥ रत्न त्रयादि गुण पीउ रे ॥ स०॥ जिनशासन सिंहासणे ॥ सा ॥ बेसी करे उपदेश रे ॥ स ॥ सा ॥५॥ पुहवी मंगल विहरता ॥ सा० ॥ तारण तरण ऊ हाज रे ॥ स ॥ श्रीकल्याणसागरसूरि जे नमे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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