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________________ " ( एठ ) ईननी पटराणी, चल मंगल प्रभु आगे || पूरे स्वस्ति क मुक्ताफलनो, चडवा शिवगति पागें ॥ अमृत० ॥ ६ ॥ चनुयोगी तमदर्शी, प्रजुवाणी रस पी जें ॥ दीपविजय कवि प्रभुता प्रगटे, प्रभुने प्रजुता दीजें ॥ मृत ॥ ७ ॥ इति ॥ ८३ ॥ ॥ अथ जंबुकुमारनी गहूंली चोराशी मी ॥ घरूडा सहियो जूले हाथणी ॥ ए देशी ॥ ॥ राजगृही नयरी समोसख्या, पांचशें मुनि परि वार || मोरी सहियां हो ॥ केवलज्ञान दिवाकरु, श्री श्री सोहम गणधार || मोरी || चलो पट्टोधर गुरु वां दवा ॥ १ ॥ एक । ॥ जंबुकुमार यावे हेजशुं, पूज्य जीनें वंदन काज || मोरी || ब्रह्मचारी शिर सेहरो, लेवा मुक्तिगढ राज ॥ मोरी० ॥ चालो० ॥ २ ॥ गुरु मुखथी रे सुणी देशना, संयमें उल्लसित जाव ॥ मो० ॥ कायिक समकेतनो धणी, तरवाने जवजल दा व ॥ मो० ॥ चा० ॥ ३ ॥ अणुव्रत लेइ गुरु यागलें, संयमनो रे उजमाल ॥ मो० ॥ परणीने घरणी श्र ग्ने, बूऊवी वयण रसाल ॥ मो० ॥ चा० ॥ ४ ॥ संयम लीये मुनि पांचरों, सत्तावीश परिवार || मो० ॥ चर ण करण गुण आगला, जेहना बे धन्य अवतार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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