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गहूंली गावे सरवे कंठ मिलावे || बे० ॥ सहि० ॥ ॥ यंग उपांग सुणी जिन पासें, धारी अति उल्लासें रे ॥ दीप कहे प्रनुध्यान विलासें, पहोती निज यावासें ॥ ० ॥ सही ० ॥ ॥ इति ॥ ८२ ॥
॥ अथ अध्यात्म गहूंली त्याशीमी ॥ ॥ जवि तुमें वंदो रे शंखेश्वर जिन राया ॥ ए देशी ॥ ॥ अमृत सरखी रे सुणी यें वीरनी वाणी, अति म न हरखी रे प्रणमो केवल नाणी ॥ ए आंकणी बे ॥ योजनगामिनी प्रजुनी वाणी, पांत्रीश गुणथी नांखे ॥ पूरव पुण्य पूरव जेहनां, प्रजुवाणी रस चाखे ॥
मृत सरखी० ॥ १ ॥ जेहमां द्रव्य पदारथ रचना, धर्माधर्म आकाश || पुल काल अने वलि चेतन, नित्यानित्य प्रकाश ॥ अमृत ॥ २ ॥ द्रव्य गुण ने पर्याय प्रकाशे, अस्ति नास्ति विचार ॥ नय सातेथी मालकोशमां, वरसे बे जलधार ॥ अमृत० ॥ ३ ॥ गुणसामान्य विशेष विशेषें, होय मलि गुण एकवी श ॥ तस च जंगी चार निक्षेपे, नांखे श्रीजगदी श ॥ अमृत० ॥ ४ ॥ जिलदृष्टांतें खेचर नूचर, सु रपति नरपति नारी ॥ निज निज जाषायें सहु सम जे वाणीनी बलिहारी ॥ अमृत० ॥ ५ ॥ नंदीव
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