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________________ (११५) बाल लश हाये रे ॥ शुजरति कुंकुम निजगुण सांपुल, समकित श्रीफल साथे रे ॥आज०॥४॥ जिनवा णी बहुरंगी उढणी, उढी मनने नावे रे ॥ ज्ञानादि क गुण खूबणां रूडां, जावशुं शालि वधावे रे॥आज ॥५॥ऽव्यने नावें गुरुने वंदी, सांजलो वीर प्रनु वाणी रे ॥ तप जप नियम व्रत बहु कीजे, मलुक जा वना आणी रे॥ आज ॥६॥ इति ॥ ए६ ॥ ॥अथ गहूली सत्ता'मी॥ ॥अंबसाल उद्यानमां, कांश विचरंता वीर जिणंद रे॥ समवसरण देवे रच्यु, कांबेग नयनानंद ॥ जि नजीने बोलडीये ॥ मोह्या मोह्या रे सुर नर लोक ॥ जि० ॥१॥पर्षदा बार तिहां मली, कांश बेठी नमी शुन चित्त रे॥ कोडी गमे सेवा करे, कांश निर्जर ने पुर हुंत ॥ जि० ॥॥ चउमुख चउदिशि वीरजी, कांश देवे देशना सार रे ॥ दान शीयल तप नावना, कांश शिवपुर मारग चार ॥ जि ॥३॥ चार निका यना देवता, कांश अण ढूंते एक कोडी रे ॥ सेवा करे प्रजुजी तणी, कांश उन्ना बे कर जोडी । जिन ॥४॥ वनपालकें जश्वीनव्यो, कांऽश्रीकोणिक मा हाराय रे ॥ सपरिवारशुं धावियो, कांश बेगे नमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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