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________________ दे ॥ एतो बिच बिच अंगने वाली हो ।। एतो बाली रे सुकुमाली रे, नाली मुखड़े वीरनुं जी॥६॥ लली लली देती उवारणां ॥ दे०॥ एतो समकित निर्मल करती हो॥ एतो धरती रे गुण धरतीरे, जिहांप्रनुजी विचरता जी ॥॥ एणी परें नाची नमी करी ॥ दे॥ एतो अनुजव सुख मतवाली हो॥ एतो गाली रे निज जव टाली रे कुःखड़े पहोती वर्गमां जी ॥॥ वा चक रामविजय कहे ॥ दे॥ एतो समकितवंतनी करणी हो । एतो वरणी जिननक्ति नीसरणी हो । शिव मंदिर तणी जी। ए॥इति ॥ एए॥ ॥अथ गहूंली उन्नुम।। ॥ते तरिया नाश्ते तरिया ॥ ए देशी॥ - ॥आज नगरमा महिमा उडव, जलें अम्ह गुरु या व्यारे ॥संघ सहुने मनमां नाव्या, आणंद हरखें व धाव्या रे ॥ आज ॥१॥ पंच समिति त्रण गुप्तियें गुप्ता, काय जीवने पाले रे ॥ पंच माहाव्रत सूधां धारे, पंचाचारशुं माले रे ॥ आज ॥२॥ आगम गु रुनो सांजली हर्षित, वंदन बहु जन आवे रे ॥ नर नारी तो मलि मलि टोलें, गुरुगुण गहूली गावे रे । आज० ॥ ३॥ शुजपरिणति वर पट्ट बिगर, श्रात्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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