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(११३)
प्रजु पाय || जि० ॥ ५ ॥ समतारसमयी देशना, कांइ जांखे वीर कृपाल रे ॥ नयगर्जित सुणी बोलडा, कां हरख्यो चित्त भूपाल || जि० ॥ ६ ॥ मिथ्यामत पूरें ॥ टल्यो, कां ऊग्यो समकित सूर रे ।। मोह महामद मोडियो, कां प्रगढ्यो खतम नूर || जि० ॥ ७ ॥ को णिक धरणी धारणी, कांइ जरी अक्षत शुचि थाल रे || जिन ागल स्वस्तिक करे, कांइ कुंकुम रंग रसा ल ॥ जि० ॥ ८ ॥ मलीने सौ गावे तिहां, कां प्रभु गुण जक्ति सलोक रे ॥ ज्ञान सुजस विनोदमां, कां मग्न हु बहु लोक || जि० ॥ ए ॥ इति ॥ || ॥ अथ गली मी ॥ ॥ कठमारां हो नदि वाजां वाजीयां ॥ ए देशी ॥ पंच महाव्रत हो पालता, पालता जिव व काय ॥ मोरी चाबी बहेनी, चतुर चोमासु गुरुजी श्र विया ॥ ए कणी ॥ संघ सहुने हो मन जावता, जावता प्रवचन माय | मोरी० ॥ च० ॥ १ ॥ गम गम हो जवि बोधता, रोधता विषय प्रमाद ॥ मो० ॥ पूण्य प्रजावें हो गुरु इहां, मलिया धर्मना वाद || मोरी० ॥ च० ॥ २ ॥ शोल शणगार सजी सुं दरी, गावेजी गीत रसाल ॥ मोरी० ॥ गहूंली रचे
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