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(३० )
॥ अथ गहूंली एकवीशमी ॥
॥ गाम नगर पुर विचरंता, गुरु यावे बे ॥ मुनि पंच सया परिवार, साथें लावे बे ॥ सहस ढार सीलांग ना, जे धोरी बे ॥ ब्रह्मचर्यना जेद अढार, आप विचारी ||१||जीवद बत्री शनी, दया जाणी बे ॥ निरुपाधि क देशना सार, नाथ वखाणी बे ।। दीक्षा दोष निवार वा, नर तारे बे॥ पाप स्थानना दोष अढार, दूर निवारे बे ॥२॥ रत्नत्रय राधता, गुरु राजे बे ॥ गुरुराजगृही उद्यान, अधिक दिवाजे बे ॥ कनककमल बीराजता, गुरु गाजे बे ॥ प्रभुवीर पट्टोधर धीर, जावळ जांजे बे ॥ ॥ ३ ॥ जंबु कुमर युक्तें करी, गुरु जेव्या बे ॥ कहे मुख श्री महारा याज, पातक मेव्यां वे ॥ समुद्र सिरी जंबू तणी, पट्टराणी बे ॥ वली बीजी साते नार, गुणनी खाणी बे ॥ ४ ॥ पढेरी करुणा कांचली, मन मोती बे ॥ उंढी समकित साडी मांडे, गुरुमुख जोती बे ॥ थिरता जावना थालमां, व्रत मोती बे ॥ जरी कुंकुम राग कचोल, पुण्यपनोती बे ॥५॥ श्रद्धा जावनो साथि यो, त्यां पूरे बे ॥ ववि पंचाचार रतन, चिहुं गति चूरे बे ॥ ते देखी मोहरायनी, मात फुरे बे ॥ ए लेशे शि वसुखराज, चढते नूरे बे ॥ ६ ॥ गहूंली करो गुरुआ
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