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________________ ५७) वरसे रे, जव्य जीव तथा मन हरसे रे, गुरु गुण सु एवा मन तरसे रे || ग० ॥ ६ ॥ करो गहूंली गछपति आगे रे, वधावो गुरु महाजागे रे, गाउँ मंगल मधुरें रागें रे || ग ॥ ७ ॥ गुरु धन्य आदि बाइ जाया रे, साहेब राजकुलमां सवाया रे, श्री विजयलक्ष्मी सूरिया रे || ग० ॥ ८ ॥ गुरु प्रेम पदारथ पाया रे, जेणे धर्मना पंथ बताया रे, एम दीपविजय गुण गा या रे ॥ ग ॥ ए ॥ इति ॥ ४७ ॥ अथ केशीकुमारनी गहूंली घडतालीशमी ॥ ॥ जीरे वर वरघोडे संचस्यो, जीरे बिहुं पासें चमर वीजाय ॥ जीया वरनी घोडली ॥ ए देशी ॥ ॥ जीरे कुंकुम बडो देवरावीयें, जीरे मोतीना चोक पूरावो ॥ वधाइ वधाइ बे ॥ जीरे घर घर गूडी रे सज करो, जीरे सोहागण मंगल गावो ॥ वधाइ व धाइ बे ॥ १ ॥ जीरे याज वधाईना कोड बे, जीरे तंबी नयरी मजार ॥ वधा० ॥ जीरे पास प्रभुजी ना पटधरू, जीरे आव्या बे केशी कुमार | वधः ॥ ॥ २ ॥ जीरे पांचशे मुनि परीवार बे, जीरे जीवद या प्रतिपाल ॥ वधा० ॥ जीरे डुक्कर परिसद जीप ता, जीरे जगजसकार प्रनाल ॥ वधा० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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