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________________ (१००) सखी मांकडे महाजन घेरीयो रे ॥५॥ सखी उंदरे मेरु हलावियो रे ॥ सखी सूर्य अजवालुं नवि करे रे ॥ सखी लघु बंधव बत्रीश गया रे ॥ सखी शोके घ डी नहीं बेनडी रे॥६॥सखी शामखो हंस में देखी यो रे॥सखी काट वल्यो कंचनगिरि रे॥ सखी अंज नगिरि उज्ज्वल थयो रे ।। सखी तोहे प्रनु न संजारी या रे ॥७॥ सखी वयरसामी सुता पारणे रे॥ सखी श्रा विका गावे हालरां रे ॥ सखी महोटा थइ अर्थ ते कहेजो रे ॥ सखी श्रीशुजवीरने वाहालडारे ॥७॥ इति हरियालीनी गहुँली ॥ ५ ॥ ॥अथ चूनडी व्याशीमी॥ ॥हांजी समकित पालो कपासनो, हांजी पेंजण पाप अढार ॥ हांजी सूत्र नबुं रे सिझांतनुं, हांजी टालो आठ प्रकार ॥ हांजी शीयल सुरंगी चूनडी। १॥ हांजी त्रण गुप्ति ताणो ताणो, हांजी नलीयन री नव वाड ॥ हांजी वाणो वाणो रे विवेकनो, हांजी खेमा खुंटीय खाय ॥ हांजी शी॥२॥ हांजी मूल उत्तर गुण घूघरा, हांजी बेडा वणो ने चार ॥ हां जी चारित्र चंदो बच्चे धरो, हांजी हंसक मोर च कोर ॥ हांजी शी० ॥ ३ ॥ हांजी अजब बिराजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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