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________________ (११७) तिहा गोविंद हो ॥ गु० ॥ जगगुरु श्रागल गहूंली करे ॥ ता० ।। देखी प्रजु मुख अरविंद हो ॥ गुण॥ ॥३॥ श्रझारन चोक उपरें ॥ ता० ॥ नक्ति कुंकुम रंग रोल हो । गुण॥ पंच प्रमादनी तर्जना ॥ ता॥ पंच रत्न नवित अमोल हरे ॥ गुण ॥ ५ ॥ ज्ञान गुलाल उडावतरं ॥ ताण ॥ तप अबीर नरि नरि मू विहो । गु० ॥ दर्शन पीचकारी जरी ॥ ता॥ चा रित्र परिमल उत्कंठी हो ॥ गु०॥ ५ ॥ नावना व संत गाये तिहां ॥ ता॥ गिस्या नेमनी पास हो ॥ गुण ॥ समकित फगुवा तिहां दिये ॥ ता॥ जे थी जाये जवनी काश हो। गु०॥ ६॥ गढूखी एणी परे कीजीये ॥ता ॥ पामे मक्ति विलास हो ॥ गुण ॥पंमित ज्ञान शिवपद लहे ॥ ता॥ विनयें सफल होये थाश हो । गुण॥७॥इति ॥११॥ ॥अथ गहूंली एकशो ने बेमी॥ ॥रामचंदके बाग, चांपो मोरी रह्यो री॥ए देशी॥ चंपानयरी उद्यान, सुरतरु मोरी रह्यो री ॥ वीर प टोधर धीर, सोहम थाय रह्योरी ॥१॥ जीय कोह जीय मान, माया खोल दह्योरी ॥ संपूण श्रुतज्ञान, जिनवर बिरुद वल्लोरी॥२॥ श्राश्रव विषय प्रमाद, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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