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(१०)
शशी गयण वसे हररोज ॥ सु० ॥ ३ ॥ तप तरवारें वारिया || जि० ॥ जाव रिपु जे आठ ॥ सु० ॥ मु निने शिवपद आतां ॥ जि० ॥ जेणें वास्यो परनो गव ॥ सु० ॥ ४ ॥ क्षमाशूर जगवंत जी ॥ जि० ॥ चोत्रीश अतिशय धार ॥ सु० ॥ पांत्रीश वाणी गुणें करी || जि० ॥ देशना दे जलधार ॥ सु० ॥ ५ ॥ वन पालकना मुखयकी ॥ जि० ॥ तातजी श्राव्या उद्यान || सु० ॥ सांजली जरत नरेसरू ॥ जि० ॥ श्रापे बह लां दान || सु० ॥ ६ ॥ चतुरंगी सेना लेइने || जि० ॥ वांद्या श्री जगवान ॥ सु०॥ प्रभुजीनी वाणी सुणे || जि० ॥ चक्री जरत सुजाण ॥ सु० ॥ ७ ॥ वखाण अवसर साथियो | जि० ॥ लावे जरतनी नार ॥ सु० || श्रद्धास्वस्तिक पूरीया ॥ जि० ॥ गाये गोरी गीत उ दार ॥ सु० ॥ ८ ॥ गीतारथ गुरु आगलें ॥ जि० ॥ जे करे श्रुत बहुमान ॥ ० ॥ दर्शनसागर इम कहें ॥ जि० ॥ तस थाये परम कल्याण ॥ सु०॥ ए॥ इति ॥ १० ॥
॥ अथ गहूंली अग्यारी ॥
॥ आज हजारी ढोलो प्रादुणो ॥ ए देशी ॥ ॥ रत्नत्रयी आराधवा, आणी अधिक उमेद ॥ स
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