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________________ हियर मोरी हे॥ श्रागम आगमधर सुणी, गुण गु । णी नाव अनेद ॥१॥ सहीयर मोरी हे॥ गहली करो गुरु बागले ॥ ए टेक ॥ पर पारणामने टालवा, सेवा शिवपुर शर्म ॥ स ॥ ग॥२॥ अव्य नाव संजोगयी, जे रहे नित्य अलेप ॥ स० ॥ स्याहाद नी दीये देशना, जाएंग मय निक्षेप ॥ रु.॥ग० ॥३॥ श्रात्मजाव स्वरूपना, नासन नानु समान ॥ स०॥ स्वपर विवेचन श्रुतथकी, तेणे नक्ति बहु मान ॥ स०॥ग॥४॥ रुचिता सुश्राविका, करवा श्रुतनी बहु नक्ति ॥ स० ॥ विनयवती बहुमानथी, फोरवती आत्मशक्ति ॥ स॥ ग॥२॥ यात्म पाजो उपरें, समकित साथियो पूर ॥ स०॥ खली लली करती खूबणां, मिथ्यामति करी दूर ॥स०॥ ग०॥६॥ जे सुणे श्रागम श्ण विधे, जन्म सफल होय तास ॥ स० ॥ माहरे नवो नव नित्य होजो, झानमहोदय वास ॥स०॥ ग॥७॥इति ॥११॥ ॥अथ गहुँली बारमी॥ ॥जीर मारे देशना द्यो गुरुराज, उलट आणि अति घ णो॥जीरेजी॥जीरे मारे थाबियो हर्ष उल्लास, पूदे ई संसारनाजी॥१॥जीरे ॥ विलंब न कीजें गुरुरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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