SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०) गम जंग अनेक करी ॥ सु०॥७॥ प्रवचन कुशमे गुं थी रे, मुनिवर राजने कंठ वी॥ देवेंष सूरि एम नांखे रे, नविजन प्राणी ए खेत नणी ॥ सु०॥॥ खस्तिक पूरे मनरंगें रे, गुरु मुख जोती सुविशाला॥ प्रेमेथी नविजन जावो रे, अमर लहे वर शिव बाला ॥ सु०॥ ए॥ इति ॥ ए३ ॥ ॥अथ रूपैयानी गलीचोराएंमी॥धोलनी देशीमां। ॥ देश मूलकने रे परगणां, हाकम हुकम करंत ।। बडिदार चोपदार उनला, ए सहु महोटा नाश् धरंत ॥ रूपैयानी शोजा रे शी कहुं ॥१॥ कसबी बोगाली पालखी, रथ धरी घूघरमाल ॥ सेवक ही रे मलप ता, धनपाल घोडीनी चाल || रूपैयाणाशा उंचा उंचा मंदिर मालियां, खाजलीयाला डे गोंख ॥ कोरणी याला गोख ॥रूण॥३॥ श्रावो बेसोरेसहु करे, वली दीये आदर मान ॥ तोये पण बेसे नहीं, नहीं सां जले देश कान ॥ रू०॥ ४॥ निर्धन आवे रे ढ़क डो, न दीये श्रादर मान ॥ महोढुं मरडी नीचं जूए, पग मेलवानुं नहिं नाम ॥ रूपैया॥५॥ अथ वि नानो रे गांगलो, गर0 गांगा रे शेठ ॥गरथ विनाना रे शेठीया, दीसे करता रे वेठ॥ रूप॥ ६॥ विवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy