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(५५) ररे ॥२॥२॥ जीरे कंचन कामिनी परिहस्या, जीरे पगट्या जे गुण वीतराग रे ॥ न०॥ जीरे परिस हनी फोजने जीतवा, जीरे कर धरी उपशम खजरे ॥न०॥३॥जीरे प्रवचन माताने पालता, जीरे समि ति गुप्ति धरनार रे ॥ न ॥ जीरे मेरुगिरि सम मो टका, जीरे पंचमहाव्रत जार रे ॥ न०॥४॥ जीरे सुरपति नरपति जेहने, जीरे दोय कर जोडी हजूर रे॥ न० ॥ जीरे अमृतसमी गुरुनी देशना, जीरे पाप पमल होये पूर रे ॥ न०॥५॥ जीरे कामिनी वयण रे मीउडां, जीरे वांद्या डे गुरु गणधार रे ॥ न० ॥ जीरे गुरुमुखथी सुणी देशणा, जीरे आनंद अंग अ पार रे ॥नण॥६॥ जीरे मुक्ता ने रयणे वधावती, जीरे गहूंली चित्त रसाल रे॥ न ॥ जीरे निजलव सुकृत संजारती, जीरे जेहना डे नाव विशाल रे॥न ॥७॥ जीरे दीपविजय कविराज जी, जीरे पृथ्वीनंदन ब तिहार रे ॥ न० ॥ जीरे गौतम गणधर पूज्यजी, जी रे वीरशासन शणगार रे॥न॥॥ इति ॥४३॥
॥अथ गहूली चुम्मालीशमी॥ ॥प्रनुजी वीर जिणंदने वंदीयें ॥ ए देशी ॥ । ॥ सुरिजन विचरंता वसुधा तलें, राजगृही उद्यान
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