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________________ (४२) जीरे मारे धन्य जदा प्रमुख, साते बेहेनो सोहामणी ।। जीरे ॥ जीरे मारे सूरीश्वर शिरदार, श्रीशूलिना शिरोमणि ॥ जीरे ॥६॥जीरे मारे ध्यान धरो दिन रात, एवा मुनिनुं खांतशु॥जीरे॥ जीरे मारे लेशे. मंगलमाल, जे गावे नित्य नावगुं॥जीरेणा॥ इति।। ॥ अथ पजूसणनी गढूली तेत्रीशमी ॥ . ॥ महारी सही रे समाणी ॥ ए देशी॥ . ॥ परव पजूसण पुण्यने योगें, मलिया सह गुरु सं योगें रे ॥मारी सही रे समाणी ॥ सात पांच नेली मलीने टोली, गईली करे मन जोली रे ॥मा॥१॥ धुंघटपट खोली गुरुमुख जोती, तन मनना मल धो ती रे॥ मा० ॥ समकितरागें ने धर्मनी बुद्धि, परि णतिनी वाली शुधिरे । मा॥२॥ वांदी वधावी गुरुजीनी वाणी, निसुणो नविजन प्राणी रे ॥ मा०॥ उपशम जावो ने निंदा निवारो, जीव सहुशुं हित धा रो रे ॥ मा० ॥३॥ गुरुपग मूले संघ सहु खामो, क षायतणा मद वामो रे ॥ मा॥ श्ण दिन आवे व्रत तप कीजे, अधिक अधिक लाहो लीजें रे ॥ मा० ॥४॥ पूजा प्रजावना महिमाने देखी, हरखे धरमना गवेषी रे॥ मा॥ चैत्य परवाडी जिनमुख जोवो, न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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