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________________ (TUO) hi को किल कंठें कामिनी, सोहामणी निर्मल वृंद ॥ - गुरुगुण अमृत गावती, पामति परमानंद ॥ चाणान्॥ ॥ श्रथ श्रीजंबुगुरुनी गहूंली बहोंतेरी ॥ ॥ अजब कियो रे मुनिराय, लघुवयें जोग लियो रे ॥ शोल वरस संयम लियो रे, तरुणी आठ विछोड ॥ मु निवर योग लियो रे | कोडि नवाएं सोवन तणी रे, बोडी मने कोड ॥ मु० ॥ १ ॥ तप द्वादश ज्ञेदें करे रे, जावता जावना बार || मु० || पडिमा बारना उद्य मी रे, गुण बत्री शना आधार ॥ मु० || || पडिरूवा दि क चउदे जला रे, निमित्त तंग सुवाय ॥०॥ निपु ण ते गुणठाणंग तथा रे, गुणसागर गुरुराय ॥ मु० ॥ ॥ ३ ॥ मुनि मंगलशुं परवरया रे, जंबू जुग प्रधान ॥ मु० ॥ विचरता पाठ धारिया रे, राजगृही उद्यान ॥ मु० ॥ ४ ॥ को कि नरपति वांदवा रे, सायें लइ परि बार ॥ मु० ॥ पद्मावती करे गाली रे, द्रव्य प्रधान विचार ॥ मु० ॥ ५ ॥ चन गति चूरण साथियो रे, श्रद्धा पीठ बनाय ॥ मु० ॥ वसन आभूषण व्रत तणां रे, शिवफल श्रीफल ठाय ॥ मु० ॥ ६ ॥ उत्तम गुरु गुणज तिथी रे, वधावे गुरुराज ॥ मु० ॥ गुरु मुख पद्मनी देशना रे, सुपि पामे शिवराज ॥ मु० ॥ ७ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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