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( ३७ ) ॥ अहो ॥ ६ ॥ इपिपरें सोहमनी वाणी, गहूंली करे चलणा राणी, गुरु सन्मुख जोवे गुणखाणी ॥ ॥ हो० ॥ ७ ॥ सीहोर नगरें गहूंली गाइ, कहे मु क्ति सुगो चित्त लाइ, श्री जिन थाणा धरो जाइ ॥ हो० ॥ ८ ॥ इति ॥ २७ ॥
॥ अथ गहूंली हावी शमी ॥
॥ रिहा व्याया रे, चंपावनके मेदान || सुरपति गाया रे, शासनके सुलतान ॥ ए यांकणी ॥ समव सरण सुर मली विरचावे, फूल सचित्त जल चलनां लाये || विकसित जानु सम वरसावे, उपर बेसे रे, मुनिमुख परषदा बार ॥ प्रभु महिमायें रे, पीडा न हुवे लगार ॥ तत्त्वावतारी रे, प्रवचन सारउद्धार ।। ० ॥२॥ पुरी शणगारी कोपिक राय, जल बटकायां फूल विज्ञाय, सजी सामईयुं वंदन श्राय, जववाई सूत्रे रे, देशना अमृत धार ॥ गौतम पूढे रे, बडनो अधि कार ॥ दत्त न लेवे रे, सात सया परिवार ॥ ॥ पाणी बते तरशां व्रत पाली, गंगा रेवत वच्चें संथा री, देवलोकें पंचम अवतारी, त्र्यंबडनामें रे, ते स हुनो शिरदार | अवधिज्ञानी रे, वैक्रियलब्धि उ दार ॥ तापस वेशे रे, पाले अणुव्रत बार ॥ अ० ॥
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