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________________ (१४३) गावती ॥ विनयवती बहु मानथी, एम गली करे । अनुजवनां करि लूटणां, आणा तिलक धरे ॥ ४ ॥ द्रव्यजावथी इणि परें, जे गहूंली करे ॥ समकितवंत ते श्राविका, जवसायर तरे ॥ मणि उद्योत गुरुराजना, गुणसखि मन धरो || पामी मनुज अवतार के, शंका नवि करो ॥ ५ ॥ इति ॥ १२३ ॥ ॥ अथ गहूंली एकशो चोवीशमी ॥ ॥ चालो सखि जइयें जातरा रे लोल, जिहां बे मरुदेवी नो नंद, शुभजावथी रे ॥ चालो जश्यें जिन बांदवा रे लोल ॥ १ ॥ चालतां चरण पावन थयां रे लोल, आत्म हर्ष जराय || शुज ॥ चा० ॥ वीरवशी मां पेसतां रे लोल, नयणां पावन थाय ॥ शु० ॥ चा० ॥ २ ॥ दशशत चैत्य सोहामणां रे लोल, वच्चें अष्टा पद उत्तंग ॥ शु० ॥ चा० ॥ त्रैलोक्य दीपक देहरा रे लोल, चोमुख प्रतिमा चार ॥ शु० ॥ चा० ॥ ३ ॥ पूर्व द्वारे पेसतां रे लोल, निस्सही कही त्रण वार ॥ शु० ॥ चा० ॥ पांच अभिगमन साचवी रे लोल, प्रदक्षिणा त्रण वार ॥ शु० ॥ चा० ॥ ४ ॥ मूलनाय क कुषजनाथजी रे लोल, अजितनाथ शिवसाथ शु० ॥ चा० ॥ चारे दुवारे बिंबथापना रे लोल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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