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रे लोल ॥ सा० ॥ शेठ सेनापति तेर, परिवारशुं रे लोल ॥ सा० ॥ धुरथी त्रण प्रदक्षिणा, वंदे सुख क रू रे लोल ॥ सा०॥ पामी यथोचित ठाम, बेसे तिहां भूधरु रे लोल ॥ ५ ॥ सा० ॥ मुक्तिक स्वस्तिक राणी, चेला पूरती रे बोल ॥ सा० ॥ विच विच जिनमुख देखती, दुःखडां चूरती रे लोल ॥ सा०॥ धाराधर जि मवीर, वाणी प्रकाशतां रे लोल ॥ सा० ॥ तप जप संयम करी, सुख पामी शाश्वतां रे लोल ||६|| सा० ॥ सर्व विरति देश विरति, जिनमुख उच्चरे रे लोल ॥ सा० ॥ रयणी जोजन के, ब्रह्मचर्य मन धरे रे लोल ॥ सा० ॥ गंजा सारादियादि, पुर जणी यावी या रे लोल ॥ सा० ॥ विजयलक्ष्मी सूरिंद के, गुरुगुण गाइया रे बोल ॥ ७ ॥ इति ॥ ११० ॥ ॥अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराज मुंबइमा पधारया ते वखते बनावेली गली एकशोने अग्यारमी ॥ सजनी मोरी, पास जिणंदने पूजो रे ॥ स० ॥ डु नियामां देव न डुजो रे ॥ स० ॥ सुहित गुरु हिं आव्या रे ॥ स ॥ सहु संघतणे मन जाव्या रे ॥ १ ॥ स || मोहनलालजी माहाराज रे ॥ स० ॥ सुणजो सह अधिकार रे || स० ॥ पंच महाव्रत सुधां पाले, रे
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