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________________ (४०) ॥४॥ जीरे वखाण नटुं रे वीरजी तणुं, जीरे सांजले गुणिजन लाख ॥ वा०॥ जीरे नानी ते नानी नानडी, जोरे नानी शाकर साख ॥ वा ॥५॥ जीरे नानी ते प्रजुजीनी जीजडी, जीरे बूजव्या जाण अजाण ॥ बा० ॥ जीरे जाट नणे रे बीरुदावलि, जोरे सईयर गावे गान ॥ वा ॥६॥ जीरे या जुगमां जोतां थ को, जीरे को न करे प्रजुजीशुं होड ॥ वा ॥ जीरे जव नव ए जिन जो मले, वसंतसागर कहे कर जोड ॥वा०॥७॥ इति ॥ ॥अथ गिरनारजीनो वधावो एकत्रीशमो ॥ ॥प्रथम रेवतगिरि पेखियो, जीहो उपनो अधिक थाणंद ॥ वधावो मारे आवीयो।बीजे नेमीशर बहु गुणा, जीहो दीगे दोलतनो दिणंद ॥ व० ॥१॥ ॥ए आंकणी ॥ त्रीजे वधावे प्रनु तुं स्तव्यो, जीहो अगर सुवासि विहार ॥ व ॥ केसर चंदन कुसुमनी, -जीहो पूजा सत्तर प्रकार ॥ व० ॥२॥ चोथे वधावे प्रजु चरण-, जीहो धरीये मन शुन ध्यान ॥ व ॥ चतुर दरिसण चारित्रना, जीहो गुण गाउं गुरुग्यान ॥ ॥३॥ श्रासन युक्ति अनुसरी, जीहो जादव गुणलय लीन ॥ ३० ॥ जावु प्रजुगुण जावना, जीदो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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