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(३५) सिया, शिववहू खेलणके रसिया ॥ मु० ॥१॥ वीत्यु गुणगणुं बाल, जगवई अंगें सुविशाल, रहे प्रमत्ते घणो काल । मु०॥२॥अंतर मुहरत स्थिति थावे, निझामां गुण पलटावे, पण अप्रमत्त तणे जावे, ।मु०॥३॥ अव्यगाव संजम धरिया, जंगम तीर थ संचरिया, पाखरिया सिंह केसरिया ।मु०॥४॥ पुविहासित सहे न सहे, ऊष्ण परिसह वीश स हे, मुनिवर याचारांग कहे ॥ मु॥५॥ चक्रवाल दशविध पाले चरणकरण गुण अजुधाले, शून्यदहन अवधि टाले ।मु०॥६॥ एहवा मुनिवरनी आगें, चतुरा अक्षय फल मागे, श्राविका मुनी गुणरागें। मु०॥७॥ गहूंली करी निजमल धोती, वधावती उसके मोती, लली खली गुरु सन्मुख जोति ॥ मु० ॥ ॥थागम रयण गुणे रमती, गुरुगुण गाती मन गमती, श्रीशुनवीर चरण नमती ।मु० ॥ ए ॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथनो विवाहलो चोवीशमो॥ ॥पासकुमर महिमा निलो, गुणमणि रयण नंमार ।। अवसर विवाह जिन तणो, गायशंथति सुखकार ॥ पा ॥ १ ॥ शुज मंझमें तोरण सोहिये रे, जोतां सुर नरना मत मोहिये रे ॥ महाजन मसीयो डे
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