Book Title: Ahimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महिसा परमोधर्म IS THE GREATEST RELIGION NON-VIOLENCE THAATAay VAATA KARAO AGAVAN (TU अहिंसा-वाधी VACANTONK परमाधम वर्ष२ ) अंक ३-४ सम्पादक कामता प्रसाद जैन जून-जौलाई १९५२ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न ११ विषय-सूची पष्ठ १-जैन-मिशन के प्रथमाधिवेशन पर अाए हुए देश-विदेश के शुभ सन्देश १ २.-करुणा की शान्त स्निग्ध धारा [कविता] वीरेन्द्र प्रसाद जैन ३-अहिंसा संस्कृति ही विश्व शान्ति की कुञ्जी है -माननी मिश्रीलाल जी गंगवाल १ ४-स्वागत भाषण -भाई श्री राजकुमार सिंह जी ५-जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन का अध्यक्षीय भाषण -श्री रिषभदास रांका १ ६-डॉ० नाग का भाषण -डॉ० कालिदास नाग २६ ७-कर्म सिद्धान्त और मानव एकता डॉ. हरिसत्य भट्टाचार्य ८-जैन धर्म और योग पर एक नवीन दृष्टिकोण ह-शान्ति प्रस्ताव १०-एक-सन्ध्या [कविता] -श्री सुरेशचन्द्र अग्निहोत्री ३६ ११–भारत की जैन मूर्ति कला -श्रीकृष्णदत्त जी बाजपेयी ४१ १२-जैन मिशन के प्रस्ताव १३-इन्दौर प्रवास के संस्मरण (श्री कामता प्रसाद जैन). ५३ १४-अहिंसा [कविता] १५-मिशन रिपोर्ट १६-सम्पादकीय श्री 'मधुकर, सम्पादक कामता प्रसाद जैन परामर्श-दात-परिषद् जैनेन्द्र कुमार यशपाल जैन बैजनाथ महोदय शिव सिंह चौहान 'गुञ्जन सुरेन्द्र सागर प्रचण्डिया प्रकाशचन्द्र टोंग्या वार्षिक शुल्क—पाँच रुपया ५) एक प्रतिका आठ आना ॥) विशेषः-वाचनालयों, पुस्तकालयों तथा अन्य शिक्षा-संस्थाओं के लिए ४||) वाषिक मूल्य रखा गया है । अतः शिक्षा-संस्थाओं को लाभ लेना चाहिए। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिचाल विश्व निशा के प्रथम अधिवेशन एवं अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन पर आए हुए देश-देशान्तरों के शुभ सन्देश - माननीय डॉ. राधाकृष्णन, भारतीय दूतावास, मास्को, . (वर्तमान : भारत गण-राज्य के उप-राष्ट्रपति, दिल्ली) "मुझे आशा है कि अप्रैल मास के प्रथम सप्ताह में होने वाला जैन मांस्कृ. तिक सम्मेलन, सफल होगा; तथा श्राप अहिंसा-सिद्धान्त पर रोचक अभिभाषणों का नियोजन भी कर सकेंगे जिसकी कि श्राज विश्व को महती आवश्यकता है।" माननीय सुश्री अमृत कौर, राज्य मन्त्री, स्वास्थ्य-विभाग, भारत सरकार, दिल्ली - "अहिंसा, व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं संसार की भलाई के लिए आधारभूत आवश्यकता है। अतएव बिना इसके सन्तोष, समृद्धि तथा मनुष्य मात्र के लिए शांति सम्भव नहीं।" माननीय श्री आर० आर० दिवाकर, राजमन्त्री, सूचना विभाग, भारत सरकार, दिल्ली- .. - "मैं श्रा के प्रशंसनीय प्रयास की सफलता चाहता हूँ। हमें 'विश्व-प्रेम' के सार्वजनिक मञ्च पर अवश्यमेव संगठित होना चाहिए।" माननीय श्री कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी, राजमन्त्री, खाद्य एवं कृषि विभाग, भारत-सरकार, दिल्ली "आपके अधिवेशन की पूर्ण सफलता चाहता हूँ।" माननीय श्री जगजीवन राम, राजमन्त्री, श्रमविभाग, भारत-सरकार दिल्ली- "...अविवेशन की सभी सफलता चाहते हैं ।" . माननीय श्री महेन्द्र कुमार जी, मन्त्री, समाज सेवा विभाग, विन्ध्य प्रदेशीय सरकार, रीवा निमन्त्रण के लिए धन्यवाद......मैं मिशन' की मंगल प्रगति चाहता हूँ।" Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * हिंसा-वाणी माननीय श्री फूलचन्द्र जी गाँधी, मन्त्री शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग, हैदराबाद (दक्षिण) - सरकार - Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन * ३. जैन विश्वविद्यालय भी चालू करना उचित है। अधिवेशन सफल हो यह कामना है।" श्री रामप्रताप जी त्रिपाठी, स० मन्त्री, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग-: - "दश लक्षणात्मक भारतीय धर्म का "अहिंमा परमोधर्मः" मिद्धान्त ही जैन धर्म की सत्ता है। हजारों वर्ष पूर्व जब भारतीय समाज में हिंमा, घृणा, ऊँचनीच के भेद-भाव और अनाचार का प्रभाव बढ़ रहा था उस समय जैन धर्म ने 'अहिंसा' सिद्धान्त का सार्वजनिक प्रचार करके दूषित समाज को पतन से बचाने का पुण्य कार्य किया था। शताब्दियों बाद अब फिर उसी कुप्रवृत्ति और अनाचार का इतिहास अपने को दोहरा रहा है। संसार विषमता, घृणा और हिंसा की वैतरणी में बहा चला जा रहा है। ऐसे दुर्द्धर्षकाल में अखिल विश्व जैमिशन का यह प्रयत्न इतिहास में एक नवीन अध्याय जोड़ने जा रहा है। __भारत के भौगोलिक केन्द्र इन्दौर में प्रायोजित जैन मिशन का यह प्रथम अधिवेशन निःसन्देह सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। हमें विश्वास है कि राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर और गाँधी के शाश्वत सन्देश जैन मिशन के माध्यम से हिंसा, घृणा, से त्रस्त-ग्रस्त विश्व को शान्ति, शिव और सत्य के पक्ष पर चलने के लिए प्रबुद्ध बनायेगा। अधिवेशन की सफलता तथा व्यापकता के लिए हमारी शुभकामनायें स्वीकार करें।" श्रीमान् सर भागचन्द्र जी सोनी, अजमेर ___ "अापके द्वारा आयोजित यह अधिवेशन तथा सांस्कृतिक सम्मेलन सानन्द सम्पन्न हो, यही मेरी हार्दिक मनोकामना है। मिशन द्वारा देश विदेशों में विश्व कल्याणकारी जैन सिद्धान्तों का खूब प्रचार हो, यही मेरी भावना है।" बा० भू० श्री लालचन्द्र जी सेठी, उज्जैन ___ "यह जानकर प्रसन्नता हुई कि श्री अखिल विश्व जैन मिशन का प्रथम अधिवेशन मध्यभारत शाखा, द्वारा संस्था के चतुर्थ वर्ष प्रवेश के अवसर पर इन्दौर में मनाया जा रहा है। मैं अधिवेशन की पूर्ण सफलता चाहता हूँ।" श्री बै० इब्राहीम, जनरल मैनेजर, दी कन्हैयालाल मिल्स, इन्दौर - "विश्व जैन मिरान के प्रथम अधिवेशन का निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ तदर्थ अनेकानेक धन्यवाद। यह सन्देश एवं इससे सभी ऊपर के सन्देश अंग्रेजी में पाए थे उनका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है । मूल अंग्रेजी, 'दी वापस भाव अहिंसा" द्विमासिक पत्रिका के मई-जून के अंक में देखिए । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी . 'बह प्रायोजन अत्यधिक प्रशंनीय एवं अति उत्तम है। जीवन में अहिंसा के सिद्धान्तों का पालन करने से ही विश्व को सुख शान्ति प्राप्त हो सकती है। विश्व वंध पूज्य महात्मा गांधी जी ने अहिंसा के सिद्धांत को साकार सिद्ध कर विश्व के सम्मुख एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। विश्व जैन मिशन के सदस्यों द्वारा प्रायोजित यह अधिवेशन पूर्ण सफल होवे, यही मेरी हार्दिक कामना है।" . श्री रूपचन्द्र जी गार्गीय, संयोजक, श्री अ०वि० जैन मिशन शाखा पानीपत , "मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि आप लोगों के शुभ प्रयाम से विश्व जैन मिशन का अधिवेशन इन्दौर नगर में मनाया जा रहा है। मेरा मन और मेरी शुभ भावनायें श्राप के साथ है। यो ती धर्म प्रचार की हर युग में अावश्यकता रहती है परन्तु श्राज के यग में जब कि मानव मानव के विनाश के कारण जुटाने में लगा हुआ है, नीति और न्याय का विवेक कम होता जा रहा है तो मानव समाज में सुख और शान्ति स्थापित करने के लिये सत्य और अहिंसा का संदेश विश्व के कोने-कोने में पहुँचाने की आवश्यकता है । जैन धर्म के नेता हमेशा से श्रा-मोन्नति के मार्ग और उसके साधन के लिये सत्य और अहिंसा का प्रचार करते चले आये हैं। जैन ममाज का भी यह --- कर्तव्य है कि श्राज की अावश्यकता को दृष्टि में रखते हुए जैन धर्म के श्रादर्श संदेश को दुनिया के कोने कोने में पहुँचा दे ताकि विश्व में सुख श्रार शान्ति स्थापित हो. सके । इसी श्राशय को लेकर श्री कामता प्रसाद जी ने जैन धर्म प्रचार के कार्य को विश्व जैन मिशन के नाम से संगठित किया है। देश विदेशों के बहुत से सजजन . उनके इस धर्म कार्य में सहयोग दे रहे हैं जैसा कि समाचार पत्रों में मिशन की रिपोर्टी में प्रकट होता रहा है। यह संस्था भारतवर्षीय अन्य जैन संस्थानों के धर्म-प्रचार-कार्य में सहायक है, उनके कर्तव्य को बहुत अंगों में पूरा कहती है इसलिये अन्य सभी संस्थाओं को इस पुण्य कार्य में अपना पूरा सहयोग देने की आवश्यकता है। श्राशा है अधिवेशन में भाग लेने वाले सभी कार्यकर्ता तथा समाज के अन्य महानुभाव इस महत्व पूर्ण कार्य के सुचारु रूप से संचालन की व्यवस्था बना देंगे। मेरो शुभ भावनायें इस महान कार्य में आपके साथ हैं।" रायसाहब श्री सेठ मटरूमल जी बैनारा, आगरा "इन्दौर नगर में श्री अखिल विश्व मिशन का प्रथम वार्षिक अधिवेशन बड़े समारोह पूर्वक हो रहा है, यह जानकर हार्दिक हर्ष हुआ। परमगवन जैन धर्म के विश्व कल्याणकारी सिद्धान्त विश्व के प्राणीमात्र को सुलभ हो जावें, एतदर्थ कोई हुगम और सर्वप्रिय योजना अत्यंत आवश्यक है, मैं मिशन के अधिवेशन की हार्दिक सफलता चाहता हूँ।" Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन * ५ धर्मभूषण, महिलारत्न सुश्री ब्रजवाला देवी, बारा - "इन्दौर का यह समारोह भगवान महावीर की जयन्ती पर विश्व के लिये आत्म कल्याण करने का सन्देश लेकर अज्ञान मिथ्यात्व से द्रवीभूत मनुष्यों को स्वार्थ पूर्ण विलास के युग में सच्चे त्यागा और कर्मठ बनने के लिये नव जीवन का संचार. . करेगा। - श्री. अ. वि. जैन मिशन का प्रचार गत गौरव के स्मरण के लिये पथ. प्रदर्शक बने । अतः मैं आपके समारोह का हृदय से अभिनंदन करती हूँ तथा उत्सव की सफलता चाहती हूँ।" सुश्री रूपवती देवी 'किरण', जबलपुर_ "मम्मेलन की सफलता चाहती हूँ। अहिंसा की पताका विश्व में फहरावे यही भावना है।" श्री शांतिकुमार ठवळी, देऊळगाँवराजा (मध्य प्रदेश) ___ "विश्व जैन मिशन" की हृदय से सफल उन्नति चाहता हूँ। जैन मंसार इसे तन मन धन से अपनावे । जैन दर्शन का इसी प्रकार से प्रकाश होगा। "अधिवेशन" सफल रहे-यही भावना है।" श्री हीरालाल जी नन्दलाल जी, पटना 'मेरी हार्दिक हप्तछा है कि यह उत्सव सफलता से मनाया जाये और जैन मिशन देश विदेशों में प्रचार अहिंसा धर्म का करता हुआ उन्नति की चरम सीमा को प्राप्त होवे।" श्री गणपति राय जी सेठी, लाडनें (राजस्थान) ____"श्री अखिल विश्व जैन मिशन ने जो इस अत्यल्प समय में ही देश व विदेशों में श्राश्चर्यजनक प्रचार व प्रसार किया है, वह निस्सन्देह प्रशंसनीय है। - ऐसे अभूतपूर्व उत्सव के समय में डा० कालीदास नाग, डा० एच० भष्टाचार्य, प्रो० वी० जी नय्यर व प्रो० कृष्ण दत्त वाजपेयी जैसे प्रकाण्ड विद्वानों का सहयोग भी अत्यन्त मौरवजनक सिद्ध होगा। . श्रापके इस महान् महोत्सव की हृदय से सफलता चाहता हूँ एवं श्राशा ही नहीं अपितुपूर्ण विश्वास है कि आप अपने पवित्र उद्देश्य में सफल होंगे।" श्री सू० ना० व्यास उज्जैन श्रायोजन की हृदय से सफलता चाहता हूँ।" श्रीमन्त सेठ ऋषभकुमार, बी० ए०, खुरई (सागर) हम प्रारम्भ से ही मिशन के कार्यों से प्रेम रखते हैं और उसके उत्कर्ष में सदा सक्रिय सहयोग भी देते रहते हैं । .....इम हृदय से मिशन की शुभकामना करते Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * है। उसके इस प्रथम समारोह तथा अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन की सफलता चाहते हैं।" श्रीमन्त सेठ परसादीलाल जी पाटणी, महमन्त्री, श्री अ० भा० दि० जैन महासभा, दिल्ली "......श्री वीरप्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि यह अधिवेशन सानन्द सम्पन्न हो तथा जैन धर्म का विश्व में प्रचार करने में पूर्ण सफल हो।" श्रीमन्त सेठ श्रेयांश प्रसाद जी, बम्बई जैन मिशन का श्राज जितना महत्व है उतना कही नहीं हुा । युद्ध समाप्त हो गया है परन्तु विश्व आज भी युद्ध, की सामग्री और साधन शान्ति के नाम पर जुटा रहा है। यह कितना बड़ा उपहास है जैन धर्म ही आज विश्व को शान्ति-पथ पर ला सकता है, यह उसके उचित्त प्रचार व अनुयायियों पर निर्भर है।......शुभ भावनाएँ।" श्री उग्रसेन जी जैन, मन्त्री अ० भा० दि० जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड, दिल्ली "निमन्त्रण पत्र मिला । धन्यवाद ।......शुभकामनाएँ भेजता हूँ।" श्री इन्द्रलाल जी जैन, शास्त्री, विद्यालंकार, प्रधान सम्पादक 'सन्मार्ग' जयपुर "अधिवेशन की सर्वविधि सफलता चाहता हूँ। आपके इन शुभ भावों से प्रेरित सत्कार्यों से मेरी पूर्ण हार्दिक सहानुभूति है। सेठ श्री हुकुमचन्द्र जी पाटनी, इन्दौर ..."मैं श्राप के इस कार्य-क्रम की सफलता चाहता हुआ कामना करता हूँ कि इस प्रचार के आयोजन द्वारा सर्व साधारण में जैन धर्म के प्रति रुचि पैदा हो तथा जैन धर्म देश-विदेशों में उत्तरोत्तर प्रगति करे। मैं इस शुभ कार्य में तन-मन से सहयोग देने के लिए तैयार हूँ।" सेठ श्री गुलाचन्द्र जी टोंग्या, इन्दौर "...मेरी हार्दिक भावना है कि श्राप लोगों को सफलता प्राप्त हो और अखिल विश्व में भगवान महावीर की अहिंसामय वाणी का प्रसार हो।" . श्री सुल्तान सिंह जी जैन, बी० ए०, एल० टी०, वैश्य कालिज, शामली ___ "मेरी यही हार्दिक कामना है कि अधिवेशन प्रत्येक दृष्टिकोण से सफल हो।" Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन * श्री प्रो० अनन्त प्रसाद जी जैन, 'लोकपाल', पटना.. "श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन का निमन्त्रण पत्र मिला-धन्यवाद ।...आपके सदोद्योग का फल सारे संसार में फैले और मानवता का कल्याण कर स्थायी सुख-शान्ति का विस्तार करने में सम्पर्क हो-यही मेरी श्रान्तरिक अभिलाषा है।" श्री लाडली प्रसाद जी जैन, मन्त्री जैन पाठशाला, सवाई माधौपुर. "हमारी लोकप्रिय संस्था श्री अखिल विश्व जैन मिशन का प्रथम अधिवेशन एवं अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन जैन समाज के लिए नवीन महत्वपूर्ण प्रस्तावों एवं सुझावों के साथ पूर्ण शान्तपूर्वक सफल हो -यही कामना है।" श्री जिनेन्द्र प्रसाद जी जैन, संयोजक श्री अ० वि० जैन मिशन शाखा, टूंडला 'महावीर जयन्ती'......जैसा पुण्य दिवस...और उस दिन इन्दौर जैसी वैभवशाली महा नगरी में...विश्व कल्याण के लिये ...श्री अखिल विश्व जैन संघ ...का प्रथम अधिवेशन ! कितना महान् श्रायोजन है और...इसका श्रेय है श्रापको। बधाई है भाई ! ____ अापका यह आयोजन...एक सर्वाङ्ग पूर्ण महोत्सव के रूप में पूर्ण हो, ऐसी मेरे अंतर की शुभकामनायें हैं। श्री कुं० हीराचन्द्र बोहरा, बी० ए०, विशारद, अजमेर "मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ तथा समस्त मांगलिक भावनाएँ श्रापके साथ है. मैं हृदय से श्रापके श्रायोजन की सफलता चाहता हूँ । श्राशा है इसमें अवश्य ही ठोस योजनाओं पर विचार किया जावेगा।" श्री ज्ञानचन्द्र जैन बी० ए०, एल० एल० बी, नागपुर 'मिशन का कार्य जो श्राप लोग कर रहे हैं वह अत्यन्त सराहनीय है । मैं तथा यहाँ के समस्त मिशन के सदस्य अधिवेशन की सफलता की कामना करते हैं।" श्री पं० सुन्दर लाल जैन वैद्यरत्न, आयुर्वेदालंकार, इटारसी मैं वीर प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि जैन मिशन का अधिवेशन पूर्ण सफल हो तथा मिशन की सदस्यता से एक भी धर बाकी न रहे।" .. श्री सुरेशचन्द्र जी जैन, मन्त्री, श्री मध्य प्रदेशीय जैन युवक सभा, जबलपुर "....मिशन का अधिवेशन सफल हो।...मिशन की सफलता, श्रमण संस्कृति के प्रचार पर ही समाज का उत्थान निर्भर है।" Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी के - श्री कपूर चन्द्र धूपचन्द्र जैन, कानपुर.. "...अधिवेशन की सफलता चाहते हैं । श्री सम्पतराज भंसाली, एस० पी० हाई स्कूल, बरकाना- "आपके अधिवेशन की सफलता चाहता हूँ।" श्री हीरा लाल एम० शाह, अहमदाबाद. "मिशन-कार्य एवं अधिवेशन की सफलता चाहते हैं ।" श्री ब्रजभूषण शरण जैन, बी० ए०, एल० एल० बी०, (मुरादाबाद)-. ___"मैं अधिवेशन की हृदय से सफलता चाहता हूँ।" श्री सुन्दर लाल थोलिया, जयपुर. "अधिवेशन की सफलता के लिए मेरी तरफ से शुभ कामनाएँ स्वीकार कीजिए।" श्री फूलचन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री, मन्त्री श्री ग० वी जैन ग्रन्थमाला, भदैनी, बनारस "श्रापका ता० ६-७ व ८ अप्रैन को होने वाले अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन का निमन्त्रण पत्र मिला। श्राज हमें भगवान महावीर की वाणी . और उनके तत्वज्ञान को विश्व में प्रचारित करने का दृढ़ संकल्प करना है । हम श्री मान बाबू कामता प्रसाद जी के इस बात के लिये अाभारी हैं कि उन्होंने इस ओर जैन समाज का ध्यान आकर्षित किया है । हम उत्पव की सफलता चाहते हैं और कामना करते हैं कि जैन समाज में अहिंसा और व्यक्ति स्वातंत्र्य के अनुरूर जीवन जाग्रति हो जिससे वह स्वयं अपना निर्माण करने में समर्थ हो और विश्व के लिए इस ओर प्रोत्साहित कर सकें।" श्री रज्जू लाल कोमल चन्द्र जैन जगदलपुर (बस्तर) मध्य प्रदेश "आज के इस हिंसामय तथा अशान्त विश्व में श्री महावीर प्रभु के उपदेशी का अखिल विश्व में जो संस्था प्रचार करती हो, उस संस्था को यदि जैन समाज से जिस समाज में धर्म प्रेमी श्रीमानों की कमी नहीं हैं, सक्रिय सहयोग विशेष तर से श्रार्थिक सहयोग प्राप्त न हो सके तो इसे हमारा दुर्भाग्य ही समझना होगा । आशा तो हम इस शुभावसर पर जैन समाज से यह करते हैं कि यदि आपको धर्म प्रचार करना है तथा विश्व को अहिंसा का महत्व समझना है, तो आप संकीर्ण फिर के वाद से मुक्त होकर तथा श्रापसी मतभेद भुलाकर सक्रिय सहयोग देवे। जैन धर्म प्रेमी प्रांग्ल विद्वानों को धर्म का विशद ज्ञान प्राप्त करने में सहायता दे तथा देश विदेश में केन्द्र खोल-खोल कर धार्मिक साहित्य भेजा जाबें ताकि अधिक से अधिक Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन 8 .. जनता लाभ उठा सके । बाबू कामता प्रसाद जी के सेवा के बारे में जो कुछ भी कहा जावे, कम ही होगा । हमें विश्वास है कि इस स्वर्ण अवसर पर सर सेठ जो वथा अन्य श्रीमान् चंचल सम्पदा का पूर्ण पुण्य लाभ उठावेगे। श्री मोती लाल जैन, बागौर हाउस, उदयपुर "...मिशन के द्वारा गत ३ वर्षों में प्रचार का कार्य जितना समुचित ढंग से हुआ है उतना अन्य संस्था द्वारा नहीं हुआ है।......मैं यह महसूप करता हूँ कि यदि इस मशन' को आवश्यकतानुसार मदद मिलती रही तो निकट भविष्य में अहिंसा धर्म का प्रचार आशातीत होकर देश विदेश की जन संख्या अहिंसा का पालन करने लगेगो ।...अापको मनोकामना एवं प्रायोजन सफत हो।" श्री उग्रसेन, जी जैन एम० ए०, एल० एल० बी, रोहतक "...श्रापके इस ncble misson के कार्य में मेरी सद्भावनाएँ तथा मे पूर्ण सहयोग है ।, मैं अधिवेशन की पूर्ण सफलता चाहता हूँ।" वैद्यभूषण श्री जयकुमार जी जैन, 'वत्सल', सिरोंज.. "...सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूँ। मेरी भावनाएँ श्रारके साथ हैं।" श्री मन्नालाल जी चौधरी, सनावर "युगानुकून श्राप 'मिशन' का अधिवेशन कर धर्म प्रचार का प्रमुख कार्य करने जा रहे हैं। श्री वीर प्रभु से प्रार्थना है कि प्रारका प्रयत्न सफल हो।" .. श्री हरखचन्द्र जो बोथरा, बीकानेर "मैं मशन के अधिवेशन एवं अहिंसा सा• सम्मेलन-दोनों की सफलता चाहता हूँ।" श्री रतनेश कुमार जी जैन, संयोजक अ० वि० जैन मिशन, शाखा रांची । "अधिवेशन में सादगी, मितव्ययता एवं उद्देश्य-पूर्ति का विशेष ध्यान रखा जाय तो सर्वोत्तम रहे। "मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ सदैव श्रापके साथ हैं।" श्री खुशालचन्द्र जी काशी विद्यापीठ, बनारस "हार्दिक भावना है कि अधिवेशन सफल हो और वीर शासन की प्रभावना हो।" श्री परमेश्वर लाल जैन 'सुमन', प्रधान मन्त्री, नगर काँग्रेस कमेटी, जैन भवन, समस्तीपुर.---"मैं अधिवेशन की पूर्ण सफलता चाहता हूँ।" Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी १० श्री नन्द किशोर जी जैन, निहतौर "मेरी श्रान्तरिक भावना है कि अधिवेशन सफल होवे । " श्री चिरंजी लाल बड़जाते, बम्बई - “मैं अधिवेशन की सफलता चाहता हूँ।" . श्री राजाराम जी जैन, नई दिल्ली श्री अखिल विश्व जैन मिशन का विदेशों में जैन धर्म प्रचार कार्य अत्यन्त सराहनीय है। आपने जो हिंसा संस्कृति सम्मेलन का आयोजन किया है वह प्रति प्रशंशनीय है। मेरी हार्दिक भावना है कि अधिवेशन पूर्ण सफल हो श्री मोती लाल जी जैन, बगौर हाउस, उदयपुर " मिशन का अधिवेशन पूर्ण सफल होने के लिए मैं अपनी शुभ कामनाएँ भेजता हूँ । - वर्तमान युग में विश्व तथा समाज की अशान्तिमय स्थिति सुलझाने के लिए मिशन जैसे परमार्थित्र एवं परमोयोगी संस्था की अत्यन्तावश्यकता है । श्रतः समाज के नेतागण एवं विद्वानों को तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मिशन के श्रादर्श कार्यों को देखते हुए उसकी उन्नति में सहायक होने का परम कर्तव्य है ।" श्री तिलोक विजय जैन मुनि, चाँदबड़, नासिक "दैनिक नवभारत टाइम्स से ज्ञात हुआ है कि दि० ६-७ अप्रैल को • वि० जैन मिशन का सम्मेलन होने जा रहा है। पढ़कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह श्रादि जैन सिद्धान्तों का प्रचार कार्य जैन मिशन द्वारा होता: श्रा रहा हैं जिसकी आज के युग में निवान्त श्रोवश्यकता है । ... सफलता चाहता हूँ ।" श्री सूरजचन्द्र सत्यप्रेमी, उपकुलपति, जैनाश्रम, वारसी (शोलापुर)-- " जैन धर्म और महावीर स्वामी के उपदेशों का सार है - अपरिग्रह ! ज्योंज्यों पर पदार्थों से ममत्व कम होगा त्यों-त्यों हम पूर्ण स्वातंत्र्य की ओर बढ़ते जा जाएँगे । श्राप इसके प्रसार में सफल हों । " Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी. निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैनाचार्य श्री सूर्य सागर जी महाराज (आपका दिनाङ्क १५ जुलाई ५२ को रात्रि में १२।। बजे सोम नदी के तट पर स्वर्गवास हुआ) त्याग-तपस्या के अम्बर में, सूर्य प्रभामय जो चमका था। सागर में प्रतिविम्ब कि जिसका, अनुपम कीति रूप दमका था। वर्षों जिसने तपादश का. स्वर्णिम किरा-जाल फैलाया। जैन-धर्म-निवृत्ति-माग पर, जिसने निश्चय कदम बढ़ाया ॥ किन्तु चला पन्द्रह जोलाई, सन्ध्या में समाधि यह लेने। सोम सरित् के सौम्य कूल से, अस्ताचल-दिशि में पग धरने । यद्यपि अन्तिम सूर्य-विमा यह, द्विगणित छटा बिखेर रही थी। किन्तु भक्त-सन्ध्या मुरझाई, सूने आँसू गेर रही थी। सोम सौख्य-सगीत नहीं वह, आज 'मर्सिया' सुना रही थी। युग-युग की पीड़ा को मानो, रोक न पाई बहा रही थी। क्योंकि सूर्य अब अस्त हो चला, निज जीवन अस्तित्व खो चला। दुर्दिन-मध्य-दिशा में जीवन, स्वगोरोहरण आज कर चला। वातावरण भासता दुखमय, किन्तु शाम को सूर्य शान्त था। वह गम्भीर सुसस्मित जैसे, मृत्यु-महोत्सव मना रहा था। हुआ सूर्य यदि इधर अस्त तो, जागेगा नव जन्म-प्रात में । क्या इस आशा से तारावलि, मुस्काने-सी लगी रात में?-वीरेन्द्र Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी Pr भ० महावीर वर्द्धमान की दिव्य-मूर्ति (जो पार्श्वनाथ किला, बिजनौर से मिली हैं) मूर्ति का उल्लेख पृष्ठ ४१ पर श्री बाजपेयी जी के निबन्ध में हुआ है । Copyright Dept. of Archaeology, U.P. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमा वष२ ) । अधिवेशनाङ्क, अलीगंज (एटा) उ० प्र० जून-जौलाई, अंक ३-४ १६५२ ई० करुणा की शान्त-स्निग्ध धारा! ( वीरेन्द्र प्रसाद जैन ) प्रति प्राणों की दुख-दुर्गति पर, सच आता उमड़-घुमड़ जी भर, निर्मल अन्तस का यह प्रवाह, है हृदय-द्राव करुणा-धारा! . करुणा की शान्त-स्निग्ध धारा! वह क्या मानस है मानस भी. • जिसमें न दया का निर्भर भी, है सुखकर दया-भाव मानों, मानवता को मधुमय धारा ! करुणा की शान्त-स्निग्ध धारा! रे, मानव जीवन हो सस्मित, --- करुणा-वरुणा से परिपूरित, बहती हो मानव-मानस में, सौहार्द-स्नेह की मधु धारा! करुणा की शात-स्निग्ध धारा! Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अहिंसक संस्कृति ही विश्व शान्ति की कुञ्जी है । माननीय श्री मिश्रीलाल जी गङ्गवाल, मुख्य मन्त्री, मध्य भारत सरकार "के श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन के उद्घाटन भाषण का सार] मध्यभारत के मुख्य मंत्री श्री नैतिकता को भूल जाता है। हमारी मिश्री लाल जी गंगवाल हैं। श्री अखिल महान् अहिसक संस्कृति की दुनियाँ विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन में तारीफ होती हैं। श्रीमती रूजका उद्घाटन करते हुए मिशन के वेल्ट ने भारत में सबसे बड़ी चीज़ उद्देश्य और मानव जीवन में फैली पाई वह है हमारी संस्कृति की महाविषमता को दूर करने के महान् अस्त्र नता और अहिंसक सिद्धान्तों की अहिसा पर जोर देते हुए आपने कहा व्यापकता है। कि दुनियाँ में युद्ध एवं अशान्ति की इन शब्दों के साथ मुख्य मंत्री समाप्ति के बाद मानव को नै तेकता जी ने कहा-हमने इन्हीं सिद्धान्तों गिर रही है उसे उठाना परमावश्यक के बल पर आजादो पाई है । रागहै। मिशन इस युग में अशान्ति को दूर द्वेष विहीन संस्कृति-मानव-संस्कृति करने में सफल हों और अपना उद्देश्य जिसे जैन संस्कृति कहते हैं एक ही जनता तक पहुँचने में सफल हो। है । विषमता को समानता में बदलना . आपने विनोवा जी के शब्दों को हो इसका उद्देश्य है। 'मिशन' को दोहराते हुए कहा-मैं बड़ी लड़ाइयों से चाहिए कि वह सस्ते से सस्ता साहित्य नहीं छोटी-छोटी लड़ाइयों से डरता जनता को दे जिस प्रकार कम्युनिस्ट हूँ । जैसे कोरिया युद्ध इसमें मानव देते हैं। [ ३०वे पृष्ठ का शेष भाग] देवनागरी लिपि है और राष्ट्र---अन्त में आपने अपना भाषण भाषा हिन्दी है। पाश्चात्य जगत के समाप्त करते हुये कहा कि मैं अपना लोग इससे परिचित नहीं है अतएव भाषण समाप्त करने से पूर्व अपने इसका अनुवाद इंग्लिश में होना भाई बहनों से यह कहता हूँ कि वे मुझे चाहिये । इस तरह से अहिसा का ऐसी शक्ति दें कि जिससे कि मैं हिसा का विश्वकोष सारे संसार को एकता का नाश व अहिंसा की प्रवृत्ति उत्पन्न रूप में ला सकेगा। करता चला जाऊँ। यह मिशन जैन . इन दो महायुद्धों में बड़ों का नाश मिशन नहीं अहिंसा मिशन के रूप में हो चुका है । इसके पश्चात हमारा यह कार्य करे ऐसा अशीर्वाद दें। संसार समाज भी हिंसा में पिसता चला जाये में अहिसा का प्रचार करना ही आज तो मानवता का नाश हो जायेगा। की सबसे बड़ी मानव सेवा है । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी श्री अ० वि० जैन मिशन के प्रथम इन्दौर अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए मध्य-भारत के मुख्य मंत्री माननीय मिश्रीलाल जी गंगवाल 8 38 388 रायबहादुर श्रीमान् सेठ राजकुमार सिंह जी काशलीवाल एम० ए०, एल-एल० बी०, एफ० आर० ई० एस०, स्वागताध्यक्ष (श्री अ० वि० जैन मिशन के प्रथम इन्दौर अधिवेशन में स्वागत भाषण दे रहे हैं ) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी श्री अ० वि० जैन मिशन की कार्यकारिणी की बैठक का दृश्य श्री अ० वि० जैन मिशन के खुले इन्दौर अधिवेशन का दृश्य Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वागत भाषण (श्री अखिल विश्व जैन मिशन के स्वागताध्यक्ष पद से दिया गया श्री राजकुमार सिंह जी एम० ए० एल-एल० बी०, एफ० आर० ई० एस० का भाषण ) श्रद्वेय अध्यक्ष महोदय, माननीय श्री मिश्रीलालजी मुख्यमंत्री -मध्यभारत, सम्माननीय अतिथिगण, कार्यकर्त्ताओं महिलाओं एवं बन्धुओं ! आज प्रातः स्मरणीय देवी अहिल्याबाई की इस महिमामयी, गौरवशाली और रम्य नगरा इन्दौर में आप समस्त महानुभावों का स्वागत करते हुए मेरे हृदय में अपार हर्ष तथा आनन्द का अनुभव हो रहा है । इस अधिवेशन को स्वागत समिति ने आप सब सज्जनों की स्वागत सेवा का कार्य मुझे सौंपा है । स्वागत समिति द्वारा दी गई, प्रेम पूर्ण जवाबदारो को अपनी अपूांता के रहने निभा सकूंगा या नहीं, इसमें मुझे संदेह है । विश्वास है कि आप न्यूनताओं के लिए मुझे क्षमा करेंगे | 1 जी "अखिल विश्व जैन मिशन" का यह प्रथम अधिवेशन हो रहा है । मिशन का जन्म एक पवित्र और • महान संकल्प को लेकर हुआ है । विगत कुछ सताब्दियों से संसार आध्यात्मिक मार्ग से भटककर केवल भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिये तेजी से बढ़ा जा रहा है । यद्यपि यह निश्चित है कि संसार में शांति, सुख और कल्याण आध्यात्मिक मार्ग से ही सम्भव है, भौतिकता के बलपर कमी नहीं, तो भी मानव प्रवृत्तियां उसी ओर बही चली जा रही हैं और इसका अन्तिम परिणाम बर्बरता, सर्वनाश या प्रलयंकारी महानाश के सिवा और नहीं हो सकता । ऐसी स्थिति में मिशन के जन्मदाताओं ने और मुख्यतः हमारी जैन संस्कृति और दर्शन के महान चिन्तक श्री कामताप्रसादजी जैन ने इस पावन उद्देश्य को सन्मुख रखकर इस मिशन की स्थापना की है। मिशन की कुछ भी कार्य पद्धति क्यों न हो परन्तु " आत्मवत् सर्व भूतेषु" की अमर ज्योति जगाना ही इसका मुख्य कार्य रहेगा। मिशन का दृष्टिकोण व्यापक है, इसमें संकुचित मतमतांतारों, संकीर्ण भावनाओं तथा विचारों का समावेश नहीं है । आज संसार युद्ध के भय से स्वार्थों से, जडता से, अनगिनती पीड़ाओं से, अपार अनैतिकतात्रों से, और सीमाहीन मानवीय आदर्शों के Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * अभाव में झुलसता जारहा है। ऐसे वह जैनधर्म और जैन सस्कृति के समय में मिशन शांति के अग्रदूत के पुनरोद्धार का क्रियात्मक कार्य अपने रूप में अपने पावन उद्देश्य का संकल्प हाथ में ले । खोज वेत्ताओं ने तत्कालेकर जर्जरित मानवता का कल्याण लीन जैन नर्शन पर पर्याप्त प्रकाश नहीं कर सकने में पूर्ण रूपेण सफल होगा, डाला है, अतएव इस दिशा में भी ऐसो मेरी हार्दिक कामना है। समुचित खोज का कार्य होना आव___ इतिहास साक्षी है कि समस्त श्यक है। आज जो भी जैन साहित्य सौंसार में भारतवर्ष ही एक ऐसा देश उपलब्ध होता है, उसके प्रेरक निग्रंथ है जिसने भयानक, सर्वग्राही समय ज्ञातिपुत्र जिनेन्द्र-भगवान महावीर आने पर विकल-विश्व और पददलित थे। भगवान महावीर की वाणी ग्रंथमानवता को मुक्ति दिलाने के लिए बद्ध गणधर इन्द्रभूति गौतम ने किया अवतारों को जन्म दिया और उनके और उस जिनवाणी का निर्माण १२ द्वारा गूढ तत्वों की अमृत वृष्टि हुई। अंगों में हुआ । परन्तु तेजस्वी वर्तमान में भी यही विश्वास है कि ऋषियों के अभाव में यह प्राचीन भारत के सिवा और कोई देश इन। साहित्य धीरे धीरे विस्मृति के गर्त तत्वों की चरम सीमाओं को नहीं में विलीन होता गया । कलिग चक्रछू सका है। वर्ती खारवेल ने जैन यतिवरों का ____ इस अधिवेशन की सार्थकता पर सम्मेलन बुलाकर इस वाणी व मुझे यों भी विश्वास होता है कि वाङ्मय के उद्धार का यत्न किया था। मालब भूमि इस प्रकार के अलौकिक परन्तु उस सम्मेलन में भी उक्त कार्यों की लीलाभमि रही है। यह वही साहित्य लिपिबद्ध नहीं हो सका ! मालव है जहाँ पर शतकेवली. भदवार अतः वह भी काल के गहरे गर्भ में का बिहार हुआ। महापराक्रमी सम्राट लुप हो गया। जो शेष है वह भी संर. विक्रयादित्य का शासन रहा और A क्षण और संवर्द्धन के अभाव में लुप्त इसके गौरव मय इतिहास के स्मृति होता जा रहा है। मिशन के समक्ष यह चिन्ह, धार और अबंतिका के भग्ना ___ भी कार्य है, जिसपर ध्यान दिया वशेष, बावनगजी भगवान आदि जाना आवश्यकीय है। नाथ की विशाल मूर्ति, पावागिर क्षेत्र धर्म और संस्कृति की आधार ऊन व चंदेरी के कलापूर्ण प्राचीन शिलाओं को मजबूत बनाये रखना मंदिर आदि कई स्मारक आज भी होगा। इसके साथ ही व्यवहार और जैन संस्कृति और जैनधर्म का मौन आचरण की भूमिका पर खड़े रहने संदेश दे रहे हैं। की शक्ति मानव समाज को देनी मैं मिशन से आशा करता हूँ कि होगी। देश, काल और परिस्थिति के Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * स्वागत-भाषण * अनुसार जो धर्म अविरुद्ध परिवर्तन में उतरकर किया है। और जो तत्व करना आवश्यक हो और जिसके चिन्तामणि के रूप में सत्य, अहिंसा, कारण हमारी प्रगति रुक गई हो, उस अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि-आदि रत्न स्थिति का भी रूपान्तर कर हमे एक 'ढंढ़ निकाले हैं वे प्रत्येक व्यक्ति के विशुद्ध जीवन प्रणाली का निर्माण, जीवन को महान बना सकते हैं। करना होगा । हम रूढियों के मोह- व्यक्ति समाज का अविभाज्य अंग पाश में जकड़े रहकर तत्वों की है। व्यक्ति सुधरता है तो समाज आधार शिलाओं को नहीं डिगने दे महान बनता है। इस प्रकार क्रमशः सकते । यदि पाश्चात्यों के थोथे व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और सधारवाद की ओर बढ़े तो अपनी विश्व में कल्याण की लहर उत्पन्न हो मल पंजी भी गवां बैठेंगे । अतः हमे सकती है। अतः मैं तो व्यक्ति सुधार बड़ी सावधानी से अपने कदम को ही समाज सुधार का प्रथम चरण बढ़ाने होंगे। मानता हूँ। और उन मूलभूत तत्वों वर्तमान में हमने अपनी आंखों को व्यक्तिगत रूप में ग्रहण करने की देखा है कि भगवान महावीर और प्रार्थना करना चाहता हूँ। यही विश्व बुद्ध के अहिंसामयी जीवन तत्वों को . बंधुत्व का बीज है । इसीमें से अनन्त राष्टपिता महात्मा गांधी ने अपनाया, और उसके आधार पर फौलादी शाखाओं का उद्गम होगा और पराधीनता की बेड़ियों को छिन्न भिन्न उसकी छाया में झुलसी हुई मानवता कर दिया संसार की बड़ी बड़ी का को शांति मिल सकेगी। हिसक शक्तियाँ अहिंसा और सत्य के अभी जो मानव समाज में व्याइस चमत्कार को देखकर चकित रह पक अनैतिकता का धुंआ छाया हुआ गई। यह नवीन इतिहास का स्वर्णिम है, जिसने जीवन दर्शन को असंभव पष्ठ अमिट बन कर सत्य अहिंसाका बना दिया है, उसके लिए यथार्थ सदा संदेश देता रहेगा । हमारा भूमिका का निर्माण करें । उन ध्रुव कर्तव्य है कि सत्य और अहिंसा की सिद्धांतों को लेकर एक देशव्यापी अमृत शक्ति का संचार मानव समाज आवाज को बुलन्द करें। निराशा. में करें । हम निष्क्रिय बैठे बैठे नहीं अंधकार, हीनता और मायूसी के देख सकते कि अपवित्र शक्तियाँ वातावरण को निवारण कर नवीन सात्विक शक्तियों पर बादल बनकर प्रेरणा एवं चेतना जागृत करें । जो छा जांय । अभिशाप बनकर हमारे समस्त जीवन __जैन दर्शन का निर्माण बड़े-बड़े को मिगल जाने वाली प्रवृत्तियाँ हैं मुनि, तपस्वी, त्यागी, प्राचार्य मानस उनको यथासमय नष्ट भ्रष्ट कर दें। शास्त्रियों ने आत्मा की अतल गहराई और एक ऐसे शंखनाद का उद्घोष Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * हिंसा-वाणी १६ करें जिससे कि स्वर्णिम युग का उदय हो सके । यदि यह नहीं हुआ तो देश की आने वाली पीढ़ियों को इस गर्त में से निकलना असंभव हो जायगा । इसलिए मिशन के कर्णधार महापुरुषों से मेरा नम्र निवेदन है कि वे समयोचित यथाथता के अधार पर एक सुनिश्चित जीवन प्रणाली का निर्माण करें और उसको अधिक से अधिक व्यापक बनाने का कार्य आरम्भ करें। समाज के प्रत्येक व्यक्ति से भी मेरा अनुरोध है कि वे इस शुभ कार्य में अपना पूर्ण सहयोग देवें । इसी अवसर पर श्री डाक्टर कालीदास नाग के सभापतित्व में अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन भी हो रहा है। इसके लिए मेरा यही निवेदन है कि ऐसे सुझाव प्रस्तुत किये जावें जो रचनात्मक हों और जिनसे जैन-धर्म की हिंसा संस्कृति विश्व व्यापी बने । जैन मिशन के प्रस्तावों व आगामी कार्यक्रमों के लिये नीचे कुछ सुझाव मैं प्रस्तुत करता हूँ । (१) मिशन के अधिकाधिक सह - योगी और सद्स्य बनाने का प्रयत्न किया जाय और इसमें ऐसी सुविधा हो ताकि सर्व साधारण जनता भी पूर्णरूप से मिशन के सिद्धान्तों को अपना कर कार्यान्वित कर सके । (२) विश्व के मुख्य मुख्य केन्द्र स्थलों पर जैन पुस्तकालय व प्रचारविभाग खोलने की योजना बनाई जावे । (३) जैनधर्म के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्तमय सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए उदार सेवाभावी और विद्वान प्रचारक हों । तथा लोकोपयोगी सस्ता सरल साहित्य के प्रकाशन आदि की व्यवस्था की जाय । जैसे अन्य संस्थाओं का जन्म होता है, उनकी रीति नीति का निर्धारण होता है उसी प्रकार मिशन का सभी कार्य होगा ही, परन्तु यदि मिशन अपने सामने किन्हीं ठोस तथा प्राणवान कार्यक्रमों को लेकर आगे बढ़ेगी तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि उसे इस कार्य में सर्वांगीण सफलता अवश्यमेव प्राप्त होगी । आज इस अवसर पर भारत वर्ष के अनेक विद्वान और सज्जन उपस्थित हैं जो मिशन की प्रगति को समुन्नत करने की दिशा में क्रियात्मक कार्य करेंगे । श्री० कामताप्रसादजी इस मिशन के कर्णधार हैं इस मिशन के जीवनारंभ से ही आपनें इसके प्रति जो ठोस और रचनात्मक सेवाएं की हैं, वे कभी भी विस्मृत न होंगी । हमारे सामने अर्थाभाव का सबसे बड़ा प्रश्न है, परन्तु जहाँ लगन और दृढ़ता की क्रियात्मक शक्ति कार्य करती है वहाँ ये सब बातें और गौण हो जाती हैं योजनाओं की पूर्ति की स्वयं व्यवस्था हो जाती है। मिशन ने अपने तीन वर्ष के कार्य काल में अहिंसा वाणी 'Voice of Ahi Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी श्री कामता प्रसाद जैन संचालक श्री अ० वि० जैन मिशन, अधिवेशन में भाषण दे रहे हैं । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी श्री रिषभदास जी राँका ( जैन मिशन के प्रथम इन्दौर अधिवेशन में अध्यक्ष पद से भाषण दे रहे हैं) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषणके १७ nsa' सचित्र पत्रिका प्रकाशित की, हुये अनावश्यक नवीन मंदिर निर्माण पचास के लगभग ट्रैक्टस और बुक- और प्रतिष्ठा आदि के बजाय प्राचीन लेटस् छपाकर देश विदेश में प्रचार मंदिरों के जीर्णोद्धार में, जैन साहित्य किया तथा रचनात्मक कार्यक्रम और प्रसार में, जैन पुरातत्व अन्वेषण योजनाएं बनाकर इस कार्य को प्रगति- एवं रक्षण में तथा शिक्षा प्रचार शील बनाया है । यह सब सराहनीय में दान देना ही अधिक उपयोगी है। आज का कार्यक्रम तथा कल होने होगा। वाला अहिंसा-सांस्कृतिक सम्मेलन एक बार फिर भी आपके स्वागत सफल हो और उनके द्वारा सत्य, सत्कार में होनेवाली अपनी असमर्थता अहिंसा, अपरिग्रह तथा शांतिमय एवं कमियों के प्रति आपसे क्षमा सिद्धांतों का प्रसार होकर विश्व का चाहना हुआ श्रीमान् माननीय.मिश्रीकल्याण होवे यही मेरी मंगल लालजी सा गंगवाल प्रधान मंत्री कामना है। मध्यभारत से इस अखिल विश्व ___ मैं यहाँ समाज से भी इतना कहे जैनमिशन के इस प्रथम अधिवेशन बिना नहीं रह सकता कि जैन समाज तथा अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन का में जो दान प्रवृत्ति है वह सराहनीय उद्घाटन करने के लिए नम्र निवेदन है कितु वर्तमान समय पर दृष्टि डालते करता हूँ। श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का अध्यक्षीय भाषण (श्री रिषमदास राका, वर्धा ) भाइयो और बहिनो, . का अधिवेशन है। इसके संचालक .. आप सबके दर्शन से मुझे बहुत बाबू कामता प्रसाद जी लगनशील आनन्द हो रहा है। मेरा आनन्द कार्यकर्ता हैं। वर्षों से वे सामाजिक इसलिये भी बढ़ गया है कि हम यहाँ और साहित्यिक सेवा कर रहे हैं। मानव जीवन के हित का विचार उनकी श्रद्धा है कि जैन तत्त्वों में संसार करने के लिये एकत्र हुए हैं। ऐसे का हित करने की क्षमता है इसलिये मौके जीवन में बहुत कम आते हैं संसार की भलाई के लिए उन तत्त्वों जब हम मिल जुल कर अपनी का संसार में प्रसार हो, और संसार । समस्याओं पर विचार करते हैं। में से विषमता, शोषण, असमता, यह अखिल विश्व जैन मिशन अशान्ति और युद्ध का नाश हो । हम 13 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी* सब को सोचना है कि इस महान् भी तरक्की हुई है। पहले देश के एक कार्य को किस तरह किया जा सकता छोर से दूसरे छोर तक जाने में है। हमें यह सोचना पड़ेगा कि संसार जितना समय लगता था उससे बहुत की समस्यायें क्या हैं तथा उन्हें कम समय में आज सारे संसार की सुलझाने के लिये हमारे पास समुचित यात्रा हो सकती है। संसार के साथ साधन हैं या नहीं और यदि हैं तो . हमारा सम्पर्क बढ़ गया है। इस उनका उपयोग किस तरह किया कारण किन्हीं देशों में लड़ाई शुरू जाय ? होने पर उसका परिणाम संबंधित संसार की वर्तमान परिस्थिति--- देशों पर ही नहीं, सब देशों पर कुछ संसार तीब्र गति से बढ़ रहा है। न कुछ होता ही है। इसलिये अब विविध खोजें हो रही हैं। प्रयोग संकुचित दृष्टि से एक जाति, समाज, चल रहे हैं। इन सबका उद्देश्य मानव देश की दृष्टि से विचार करने से जाति के सुख को बढ़ाना बताया काम नहीं चल सकता । समस्त मानव जाता है। लेकिन सुख के साधन समाज को दृष्टि में रखकर विचार बढ़ने पर भी मनुष्य जाति के सुखों करना होगा। में वृद्धि नहीं हो सकी है। विषमता, पिछले महायुद्धों से तथा उनके शोषण, अशान्ति, कलह, और युद्ध परिणामों से संसार का विचारक आज पहले से भी अधिक तीव्र हो वर्ग क्षुब्ध हो उठा है । उनका मानना गये हैं, पहले की लड़ाइयों की अपेक्षा है कि संसार में बिना शान्ति कोई राष्ट्र संहार अधिक होता है । कष्ट अधिक सुखी नहीं हो सकता। हारने वाला सहने पड़ते हैं और मानव जाति को तो दुःखी बनता ही है, जीतने वाले अधिक आपत्तियाँ सहनी पड़ती हैं। की स्थिति भी अच्छी नहीं रहती। पहले लड़ाइयों में लड़ने वालों को ही इसलिये संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्वशान्ति परिणाम भुगतने पड़ते थे, आज सम्मेलन आदि संस्थाओं के द्वारा निरपराध करोड़ों लोगों को परिणामों विश्वशान्ति के प्रयत्न हो रहे हैं। की आंच लगती है। विज्ञान की लेकिन विश्वयुद्ध रोकने के प्रयत्नों के खोजों ने विनाश के साधनों में इतनी सफल होने में विचारकों को शंका वृद्धि कर दी है कि एक छोटा-सा है। जब तक लड़ाई का मूल कारण बम लाखों का नाश कर सकता है। नष्ट नहीं होता तब तक लड़ाई बंद जहाँ लड़ाइयाँ चलती हैं, वहाँ करने का प्रयत्न व्यर्थ है । इन युद्धों के की प्रजा को ही नहीं, दुनिया भर के मूल में व्यक्तिगत कलह-द्वेष या झगड़े लोगों को उसके परिणाम भुगतने रहते हैं। इनसे हर रोज नुकसान तो पड़ते हैं, क्योंकि वाहन के साधनों में संसार को उठाना ही पड़ता है, इन्हीं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण* १६ के परिणाम स्वरूप विश्वयुद्ध होते अपने पराये का भेद और संख प्राप्ति हैं। इस व्यक्तिगत हिंसा के मूल में के मार्ग की भूल है। क्या है इसकी खोज होनी चाहिये । संसार लड़ाई नहीं चाहता पर लड़ाई समय की अनुकूलताके कारणों को नष्ट किए बिना वह दूर संसार के इतिहास में कहीं दिखाई नहीं हो सकती। नहीं पड़ता कि ऐसी शान्ति की चाह कभी पैदा हुई है। क्योंकि आज युद्ध के मूल में क्या है ? विनाश के साधनों की भायनकता बढ़ युद्ध के मूल में व्यक्तिगत स्वार्थ जाने से सभी विचारकों की यह ही दिखाई देता है। प्रत्येक व्यक्ति मान्यता हो गई है कि संसार में प्रेम, सुख चाहता है। उसको अपने स्वयं शान्ति, समता और परस्पर सहयोग के प्रति आसक्ति रहती है। उसकी लाना जरूरी है। सभी देशों में शान्ति यह गलत धारणा हो गई है कि उसके चाहने वाले अहिंसा के उपासक पैदा अपने तथा अपनों के सुख के लिये हो गये हैं। यही कारण है कि विश्व पराये का शोषण किये बिना चल जैन मिशन द्वारा प्रचारित साहित्य नहीं सकता। पराये के दुःख पर को विदेशों में बहुत रुचि से पढ़ा उनका सुख अवलम्बित है। इस जाता है। भगवान महावीर ने अहिंसा अपने-पराये के भेद में से असमता पर बहुत अधिक जोर दिया है। पैदा होती है, शोषण आता है और उनकी बातें संसार की समस्या को अशान्ति निर्माण होती है। उसे अपने सुलझाने में, प्रेम और अहिंसा का सुख के आगे दूसरे के दुःख, संकट प्रसार करने में सहायक और उपयोगी की पर्वाह नहीं रहती। अपनों के हो सकती हैं ऐसा विचारकों को लगे प्रति उसे राग होता है, प्रेम होता है, इसमें आश्चर्य की बात नहीं है। दूसरों के प्रति तिरस्कार, द्वेष या आज जैसा अवसर अहिंसा प्रचार के अप्रेम । अपनेपन की सीमा भले ही लिये और मानवता का विकास करने कुटुम्ब, समाज, जाति या राष्ट्र तक के लिये मिल नहीं सकता, इसलिये बढ़ाई जाय, तो भी उससे परे जो हैं अहिंसा में विश्वास रखने वालों का उनके प्रति प्रेम नहीं होता, इस कारण कर्तव्य है कि वे अपनी पूरी शक्ति सबके प्रति वह समभाव रख नहीं लगाकर इस अवसर का लाभ उठावें। सकता। अपने और परायों के सुख जैनी भाई अपने आपको अहिसा के •के प्रयत्न में टक्कर होती है। इसे उपासक मानते हैं। वे इस अपूर्व टाला नहीं जा सकता। इसलिये इन अवसर का लाभ लेने में नही चूकेंगे, युद्धों के मूल में जो कारण है वह ऐसी आशा की जा सकती है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०.... * अहिंसा-वाणी * जैनियों का कर्तव्य होंगे, इसलिये हमें पर्यटन करना ऐसे अवसर पर हमारी जिम्मेवारी - होगा। देश विदेशों में जाकर वहाँ बहुत बढ़ जाती है। विवेक और साव- वालों के विचार और समस्याओं धानी से हम इस कर्त्तव्य को करें। को समझना पड़ेगा और उनकी हमसे ऐसी कोई गलती न हो जाय समस्याओं का हल किस तरह किया कि जिससे हमारे कार्य में बाधा आवे। जा सकता है इसका गहराई से हमें नाम का मोह त्यागना होगा। अध्ययन करना होगा। हृदय में उदारता और विशालता जैनसमाज के साधन लानी होगी। हमें काम करना है, इस महान कार्य के लिये हमें भगवान महावीर के तत्वों का प्रसार अनेक साधनों की जरूरत पड़ेगी। करना है । लेकिन काम करते समय उच्च और जनकल्याणकारी उदात्त दसरों की भावना का खयाल भी तत्वज्ञान. उसका निष्ठा के साथ रखना होगा। हम कोई ऐसी बात करनेवाले लगनशील कार्यआवेश में न कर बैठे कि जिससे कर्ता व प्रचारक, धन आदि साधनों किसी के दिल को, मान्यता को ठेस के बिना इस कार्य को हम नहीं कर पहुँचे। भाषा में नम्रता हो, हृदय में सकेंगे। मेरा इन दिनों जैन समाज दूसरे के हित की भावना रहे । शरीर के साथ जो विशेष सम्पर्क आया से दूसरे की सेवा बन पड़े और मन उससे मुझे तो विश्वास हो गया है में दूसरे की बात सुनने का धीरज कि जैन समाज के पास आज जो हो । हमें रूढ़िगत श्राचार की अपेक्षा साधन हैं उससे वह भारतवर्ष का ही मूलतत्वों के पालन की ओर अधिक नहीं. विश्व का भी कल्याण कर ध्यान देना पड़ेगा। कहीं से कोई सकता है। यह मेरी ही बात नहीं, अच्छी बात दीख पड़ने पर उसे ग्रहण काकासाहब कालेलकर जैसे विचारक करने की तैयारी होनी चाहिये। भी यही कहते हैं। जैनियों के पास दसरों के प्रति आत्मीय भावना महान् तत्त्वज्ञान है, महान त्यागी बढ़ानी होगी और अपनी अच्छी संतपरंपरा है, उच्च कोटि के विद्वान् बातों का परिचय देते समय वे दूसरी और विचारक हैं, कार्यकर्ता हैं और जगह कहाँ क्यों कही गई हैं इसका करोड़ों रुपये हरसाल धर्म के नाम भी हमें अभ्यास करना होगा । वाद- पर खर्च भी होते हैं। इन साधनों विवाद को टालकर हृदय जीतने का से आज जो काम हो रहा है वह यदि प्रयत्न करना होगा। संयम, विवेक, मिलजुल कर व्यवस्थित किया जाय . सावधानी और पुरुषार्थ के विना हम तो उनके तत्वों का विश्व में प्रसार हो अपने इस महान कार्य में सफल नहीं सकता है । संसार में सुख और शान्ति Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण २ . फैल सकती है । इस महान् ध्येय को लेकिन गृहत्याग के समय भी मातासामने रखकर ने यदि व्यवस्थित पिता को नाराज नहीं किया। वैराग्य प्रयत्न करें तो उनसे मानव जाति की तीव्र होने पर भी उन्होंने संयम रखा। महान् सेवा हो सकती है। मेरा तो वे किसी को दुखाना नहीं चाहते थे। विश्वास है कि आप सब के हृदय में साधना के समय भी अनेक कष्टों भगवान महावीर के तत्त्वों का विश्व- को सहन किया । आत्मौपम्यवृत्ति की व्यापी प्रसार हो, ऐसी सद्भावना है। साधना के लिये कष्ट देनेवालों के वह आपको इस महान कार्य के लिये प्रति भी उनके हृदय में प्रेम था। प्रेरणा देगी और आपके हाथों बहुत बारह वर्ष तक मौन रख उन्होंने गहरा बड़ा कार्य होगा। लेकिन आप निश्चय चिन्तन कर ऐसा मार्ग सुझाया करें और उस कार्य को पूरा करने के जिससे प्राणीमात्र सुखी, बन लिये जिन सद्गुणों की जरूरत है सकते हैं। सब को सुख से रहने की उन्हें लाने का प्रयत्न करें। यदि आपने जीवन कला उन्होंने सिखाई। अहिंसा, निष्ठा के साथ इस महान कार्य का अस्तेय, अपरिग्रह, और अनेकान्त प्रारम्भ किया तो आपको अवश्य ही को अपनाकर मनुष्य खुद सुखी सफलता मिलेगी। लेकिन आप अपनी बनता है और दूसरों को सखी बना दृष्टि में विशालता लाइये और संकुचित सकता है। सबके सुख में अपना दायरे से बाहर निकलकर बड़े क्षेत्र सुख निहित है। इस कला को अपमें आइये। नाने से संसार के दुख दूर होकर महावीर युग पुरुष थे मानवता का विकास होता है और ___ भगवान महावीर ढाई हजार मनुष्य सच्चे मनुष्य के रूप में जीवन . साल पहले हुए, लेकिन आज भी हम बिताता है । उन्होंने बताया कि सुख उनका बड़े आदर क साथ स्मरण कहीं बाहर नहीं है; वह तो भीतर ही करते हैं। ऐसी उनमें कौन-सी बात भरा हुआ है। बाहर की किसी चीज थी जो हमें आकर्षित कर रही में सुख नहीं रहता। है ? वे प्रेम और अहिंसा की मूर्ति ऐसे महान् पुरुष जिन्होंने सुख थे। उनसे संसार में प्रचलित हिंसा, का मार्ग बताया और संसार को विषमता का दुःख देखा नहीं गया । गलत रास्ते से जाने से रोकने का उनका प्रेम मानव जाति तक ही उपदेश दिया इसी कारण इतने वर्षों । नहीं, प्राणी मात्र तक व्याप्त था। बाद भी हम उन्हें पूजते हैं आदर . उन्होंने सब के दुःखों को दूर करने देते हैं और उनके सिद्धान्तों को का मार्ग ढंढ़ने के लिये गृहत्याग कर अपना कर अपनी मानवता का ' साधना करने का निश्चय किया। विकास कर सकते हैं। ऐसे महापुरुष Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ . * अहिंसा-वाणी * किसी एक के नहीं संसार के होते हैं। इस तरह मनुष्य जीना सीखकर उनका तत्वज्ञान किसी एक सम्प्रदाय केवल अपना जीवन बितावे इसी में के लिये नहीं, सब के लिये रहता है। उसका जीवन सम्बन्धी कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। उसकी जिम्मेवारी अहिंसा है कि वह इस कला को दूसरे तक प्राणीमात्र में जीव हैं। सभी पहुँचावे । क्योंकि मनुष्य अकेला जीव हमारी तरह ही सुख की चाह नहीं रह सकता, वह समुदाय में रखते हैं। इसलिये अपने सुख के रहता है । वह सामाजिक प्राणी है। लिये दूसरे को कष्ट न देकर, सब इसलिये बिना समाज में मानवता जीवों को अपनी तरह मानकर के फैलाये वह अपनी मानवता को आत्मवत् व्यवहार करने का नाम टिका नहीं सकता । वह अपने आप अहिंसा है। शरीर तथा सम्बन्धों की को हिंसा से बचा नहीं सकता, आसक्ति तथा असावधानी से मनुष्य इसलिये अहिंसक समाज रचना की दूसरों को कष्ट देता है। इसी कारण आज जरूरत है। विषमता, शोषण, असन्तोष, कलह, क्रान्ति हिंसा से या अहिंसा से झगड़े और युद्ध निर्माण होते हैं। संसार की आज मुख्य समस्या __ यह व्यक्तिगत हिंसा ही अपनों के आर्थिक विषमता है । आर्थिक विषप्रति आसक्ति के कारण सामूहिक __ मता के कारण व्यक्तिगत झगड़ों से तथा सामाजिक बनती है । इस अपने छोटे से लगाकर बड़े. विश्वयुद्ध तक पन का कुटुंब, समाज, धर्म जाति, होते हैं। इस तथ्य को जान लेने के राष्ट्र आदि के नाम से कई लोग कारण आज लोग विषमता मिटाना विस्तार करते हैं। अपने-परायेपन चाहते हैं। यह छोटे बड़े का भेद है का भेद हिंसा है। जहाँ अपनों के जिसके कारण कुछ तो मेहनत न कर प्रति राग होता है वहाँ दूसरों के प्रति आराम की जिन्दगी बिताते हैं और उपेक्षा आही जाती है। अपनों के सुख कुछ कठिन परिश्रम कर पूरा पेट भी के लिये दूसरों को कष्ट देना जरूरी नहीं भर सकते । इसके कारणों से हो जाता है । इसलिये भगवान महा- जनता परिचित हो गई है। जागृति वीर ने सब के सुख में अपना सुख, होने के कारण वह अपने हकों को सब की भलाई में अपनी भलाई का जानने लग गई है। तत्वज्ञान संसार को दिया था। यों तो विषमता के दुष्परिणाम दूसरे को कष्ट दिये बिना दुखी समाज को न भोगने पड़े, इसलिये बनाये बिना जीने की कला सिखा भगवान महावीर ने अस्तेय और अपरिग्रह को जीवन में बहुत महत्त्व था। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण २३ दिया था। उन्होंने जीने की कला देरी नहीं करनी चाहिये । अथवा यों सिखाई थी, उसमें सबको अपनी कहिये कि आप जो काम कर रहे हैं। तरह समझने के लिए अस्तेयका उसकी दिशा बदलती है। आज भी यानी दूसरे का शोषण न करने का धर्म प्रसार या धार्मिक कामों में महत्वपूर्ण स्थान था। पर यह तभी आपका पैसा और आपकी शक्ति सध सकता है जब मनुष्य अपने को खर्च होती है। लेकिन उसका आपको संयमी बनावे, जरूरत से अधिक पूरा फायदा नहीं मिलता, वह प्राप्त संग्रह न करे, यानी अपररिग्रह को करना हो तो छोटे मोटे मतभेदों अपनावे । इस तरह स्वेच्छा से को भुलाकर मिलजुल कर काम मानने में आनेवाली बाधाओं को करना सीखना चाहिये । व्यक्तिगत दूर करने का मार्ग बताया-था। प्रतिष्ठा को या साम्प्रदायिक कट्टरता उसमें स्वेच्छापूर्वक त्याग है। इस को छोड़कर काम की ओर ध्यान त्याग का परिणाम वही निकलता देना चाहिये। . है जो लोग आज जबर्दस्ती लाना इस तरह की सेवा से मानव चाहते हैं। यदि स्वेच्छा से 'अपरि- जाति का हित साध सकते हैं और ग्रह' नही अपनाया जाता तो 'अप- अपना भी भला कर सकते हैं। सेवा हरण' अनिवार्य है। का काम जहाँ भी होता है उसमें समझदारों का कहना है कि अपने परायेपन को भूलकर लग जाना जबर्दस्ती लाई जानेवाली समता से चाहिये । ऐसी सेवा, नाम प्रतिष्ठा स्वेच्छा से अपनाई जानेवाली समता या पद की कामना न रखकर ही अधिक श्रेयस्कर है। इसलिये आज अच्छी तरह हो सकती है जब हम भगवान महावीर का मार्ग सबको सेवा को साधन बनाकर तत्त्वों का कल्याणकारी लगना सम्भव है। प्रसार करेंगे तब उसका परिणाम परिवर्तन तो होगा ही। हिंसा से अच्छा ही होगा । यह सब मिलजुल हये परिवर्तन के प्रारम्भ में भी नाश कर ही अच्छी तरह हो सकेगा। है और अन्त में परिणाम क्या माना कि सब के विचार समान श्रावेगा इसका भी कोई भरोसा नहीं, नहीं होते, सब की भूमिका भिन्न"पर अहिसा के मार्ग में ये दोनों भिन्न होती है लेकिन जिसमें हमारा खतरे नहीं हैं। मतभेद नहीं है वे काम तो उन लोगों मिलजुल कर काम करें । के साथ मिलकर किये जा सकते .. आपके पास साधन मौजूद हैं हैं । इससे काम में व्यवस्थितपन और कार्य के लिये अवसर भी आकर हमारी शक्ति का अच्छा योग्य है। इसलिये हमें इस काम में उपयोग होगा। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *अहिंसा-वाणी __ देखा ऐसा गया है कि सज्जन जरूरत हो उसके लिये आपकी पाँच लोग और जनसेवक मिलकर बहुत रुपये की ज्ञानभरी पुस्तक का कोई कम काम करते हैं। कोई भी काम उपयोग नहीं । उपदेश देने की अपेक्षा मिल कर आसानी से होता है। यह अधिक उत्तम है कि हम उनके और तो क्या, लेकिन दुर्जन, लुटेरे बीच जाकर जो बात: सिखाना और डाकू भी मिल कर काम करते. चाहते हैं आचरण से सिखायें। हैं और उनमें आपस में प्रेम, परस्पर उनके बच्चों को पढ़ायें या इस तरह विश्वास और सहयोग होता है। के और कोई सेवा के काम करें। आप देखेंगे जिन बुराइयों से आप यहाँ प्रसंगवश में दो एक उदाहरण को झगड़ना है उनका आप से देना उचित समझता हूँ। अधिक संगठन है और वे बुराइयों दो उदाहरण-- को चालू रखने में सज्जन लोगों १. सन् १६२८ की बात है। का असंगठन कमजोरी उपेक्षावृत्ति बंबई के पास थाना' में सरकार की और कायरता का भी हिस्सा है। ओर से कोड़ियों का दवाखाना चल अगर सज्जन और सेवक आपस में रहा था। प्रतिवर्ष कुछ कोढ़ी ईसाई मिलजुल कर काम करें, उनमें हो जाया करते थे। इस बात की परस्पर प्रेम और सहकार हो तो चर्चा धारा सभा में चली । प्रश्न अच्छी बातें संसार में फैलाने में देर उठाकि क्या यह दवाखाना ईसाई नहीं लगेगी। बनाने का कारखाना है ? सरकार प्रत्यक्ष सेवा .. की ओर से उत्तर में कहा गया कि __ आदमी के मन पर उपदेश की यह बात सच है कि वहाँ ईसाई अपेक्षा प्रत्यक्ष सेवा या आचरण का हमेशा जाते रहते हैं और कुछ कोढ़ी अधिकप्रभाव पड़ता है-सामान्य जनता ईसाई बन जाते हैं, पर दवाखाना का बौद्धिक मापदण्ड तत्त्वज्ञान को ईसाई बनाने के लिये नहीं चलाया पचाने जैसा नहीं होता । सामान्य जाता। लोगों की सूचना से अब जनता तो जीवन की प्राथमिक दवाखाने में हिन्दू पण्डित को भी आवश्यकता से ऊपर उठ ही नहीं नियत किया गया । उस समय पाती। उनकी आयश्यकताओं को सिन्ध बम्बई से जुड़ा था इसलिये भी वह पूरा नहीं कर पाती । वह धारासभा में मुसलमान मेंबरों की तत्वज्ञान को क्या करे ? अपनी संख्या भी काफी थी। उनकी सूचना सेवाओं द्वारा ही उनमें हम सद्वृत्ति से मौलवी. भी उपदेश के लिये का निर्माण कर सकते हैं। जिस. जाने लगे। व्यक्ति को पानी रखने को घड़े की पंडितजी मंगल को और मौलवीजी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण* २५ शुक्र को जाकर गीता और कुरान समाज में भी होती हैं। वे मांसाहार सुनाते थे । पंडितजी और मौलवीजी के त्यागी होते हैं, ब्रह्मचर्य से रहते अलग-अलग से ही उपदेश देते थे हैं । कालिज में पढ़ने वाली एक क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उन्हें लड़की को विराग हुआ और उसने छूत न लग जाय । वे कोढ़ियों से यह “नन" बनने का निश्चय कर लिया। कह सन्तोष दिलाने का प्रयत्न करते ईसाई साध्वी को 'नन' कहते है। कि यह बीमारी उनके पिछले जन्मों- ईसाइयों में दीक्षाकी तीन श्रेणियां का फल है, अब भगवान का भजन होती हैं। पहली एक वर्ष की होती करो जिससे स्वर्ग मिलेगा। किन्तु है, दूसरी तीन वर्ष की और तीसरी ईसाइयों का तरीका निराला था। अजीवन सेवा करने की। उस बहन ईसाई मिशनरी कोढ़ियों के लिये. ने तीसरी दीक्षा ली। तपस्या और फल-फूल लाते, दूसरी अावश्यक चीजें ब्रह्मचर्य के साथ-साथ वे लोग सेवाभी लाकर उन्हें देते और उनके पास कार्य का भी निश्चय करते हैं। धर्म जाकर अत्यन्त सहानुभूतिसे उनका प्रचार करते समय भी किसी-न-किसी उत्साह बढ़ाते । कहते अब तुम्हारी सेवा का काम हाथ में लेते हैं। तबियत ठीक होरही है, जिस बातकी अपने कालिज जीवन में उसने हिन्दुजरूरत हो -कहो। इस तरह वे प्रेम स्तान सम्बन्धी जानकारी प्राप्त की की बातें करते। थी। वहां जो जानकारी कराई जाती है उसमें प्रायः यही लिखा रहता है . परिणाम यह हुआ कि पिछले वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष और अधिक कि हिन्दुस्तानी जंगली, मूर्ख, दुखी ईसाई बन गये। कोढ़ियों पर हिन्दू होते हैं। उनसे हिन्दुस्तान में रहकर सेवा करने का निश्चय किया और और मुस्लिम के बर्ताव की प्रतिक्रिया __ अमेरिकन मिशनरियों की ओर से इसके पहले नहीं हुई थी । जब मद्रास प्रान्त में रामचंद्रपुरम् में जो कोढ़ियोंने देखा कि ये लोग केवल थोथी बातें करते हैं, इनमें दया आदि संस्था चल रही थी उसमें जाकर काम करने इच्छा व्यक्त की । उसे कुछ नहीं है तो उनका ईसाई बनना हिन्दुस्तान की भाषाओं का तथाभूगोल स्वाभाविक था। का भी ज्ञान नहीं था। उसने लिख ईसाई मिशनरी सेवा का कार्य दिया कि मैं १७ ता० बंबई पहुचूँगी कितनी तन्मयतासे करते हैं अतः और उसी दिन रात को गांव पहँच उनका उदाहरण लीजिये। कर दूसरे दिन चार्ज ले लंगी । २. जैसे भारतीय समाज में साधु लेकिन उस दिन बंबई पहुँचने पर साध्वियां होती हैं, वैसे ही ईसाई पता चला कि मद्रास तो दो दिन का Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ *अहिंसा-वाणी रास्ता है। तीसरे दिन पहुँच कर की व्यवस्था कर दी। धीरे-धीरे उसने जार्ज लिया। . उसने वहाँ कोढ़ियों के लिये कुष्ठाचार्ज लेते ही चपरासी का श्रम (लेपर कोलनी) बनवा दी और मामला आया। उसे कोढ़ हो गया और अपने आप को इन दुखितों की था । उसे काम पर रखना या नहीं सेवा में लगा दिया। इसका निर्णय उसे करना था। क्लर्क - मिशन के नियमानुसार तीन ने बताया कि यह चपरासी मिशन में साल में तीन महीने की छुट्टी बरसों से काम कर रहा है, पर इसे मिलती है ताकि कुटुम्बियों से मिला कोढ़ हो गया है । कोढ़ छूत की जा सके । उसे छुट्टी मिली। माता बीमारी है। उस बहनने चपरासी का आग्रह भी था । उसने कोढ़ियों को अपने नजदीक बुलाकर पूछताछ की दशा का वर्णन लिखकर माता की, क्योंकि उसे इस बीमारी की पिता से . पूछा कि बताइये, इन्हें भयानकता की कल्पना बिल्कुल नहीं छोड़कर कैसे आऊँ ? बाद में वह थी। अमेरिका गई ही नहीं । जब उसे चपरासी ने बताया कि, "मझे सेवा से रिटायर होना पड़ा तब वह यह बीमारी वंशानुगत है। पहले दो कोढ़ियों में रहने लगी और अपनी भाइयों को भी हो गई थी। एक पता जिन्दगी बिता दी । जब उसका नहीं कहाँ भीख मांगता फिरता है देहान्त हुआ तब वहां पर एक सौ और दूसरा त्रस्त होकर आत्महत्या पचास कोढ़ियों के रहगे आदि की करें बैठा मुझे न निकालें, नहीं तो व्यावस्था थी। बड़ी बुरी दशा होगी।" हमारे मिशनरी यह सुनकर बहन को बड़ी वेदना मिशन तो हमने खड़ा कर लिया हुई। उसने इस बीमारी की जानकारी लेकिन मिशनरी कहां हैं ? ऊपर के एकत्र की । छूत की बीमारी होने से उदाहरणों के प्रकाश में, हमरा ख्याल कोढ़ी का सब तिरस्कार करते हैं है हमारे साधुओं से बढ़कर और और कोढ़ी को रहने, खाने पीने कोई इस काम को नहीं कर सकता आदि के लिये भीख मांगनी पड़ती अगर हम चाहते हैं कि जैन तत्वों का है, ऐसा उसे मालूम हुआ। प्रचार हो, लोग जैन धर्म और .. उस बहन ने चपरासी को काम समाज की ओर आकर्षित हों तो हमें पर रग्वना तो ठीक नहीं समझा, उनके लिये उपयोगी बनना होगा। लेकिन इसका जीवन सुख से बीते जिस प्रकार ईसाई साधु प्रत्यक्ष सेवा इसलिये पास के खेत में उसके लिये का काम करते हैं वैसे ही हमारे घर बनवा दिया और उदर निर्वाह साधुओं को भी करना चाहिये । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण* २७ इसके लिये अब वैरागय की व्याख्या प्रत्यक्ष सेवा को अपना धर्म मानने को बदलने की जरूरत है। यह खुशी लगेगे। वैराग्य का अर्थ निष्क्रियता की बात है कि हमारे साधु पिछड़े नहीं है, अनासक्ति है। और अछूत माने जानेवाले लोगों में हमारे बहुत से भाई कहते हैं मांस-मदिरा के त्याग का उपदेश जैनों की संख्या बढ़ानी चाहिये । धर्म करते हैं और वे लोग उनकी ओर को संख्या से तौलना मेरी समझ में आकर्षित भी होते हैं, लेकिन साधु नहीं आता। इस तरह जो संख्या महाराज के बिहार करने के बाद बढ़ाई जाती है उसके पीछे कोई बाहरी बात जहां की तहां रह जाती है। लाल व होती है । ईसाई और मुसल. सामाजिक दृष्टि से साधुओं का मान बनने में लोगों को बहुत सी वैराग्य इतना एकाकी हो गया है सुविधायें मिल जाती हैं। जैसे कि कि वे अब अनुपयोगी माने जाने उनमें जात-पांत का विचार नहीं रहता, लगे और गृहस्थ तो बेचारे मोह में असमानता का प्रश्न नहीं रहता और प्रत्यक्ष फंसे रहते हैं। गृहस्थों के पीछे बेकारी भी नहीं रहती। जैन बनने पूरा संसार लगा रहता है, उनसे पर भी यदि हम सामाजिक समानता त्याग की बात करना ठीक नहीं और का हक दें और मेल जोल का व्यवहार साधु इतने त्यागी होते हैं कि समाज करें तो बहुत से भाई जैन बन सकते से कोई वास्ता नहीं रखते अगर हैं। लेकिन आज की स्थिति में ऐसा हमारे साधु सेवा को वैरागय मानें नहीं सोचा जा सकता । आज तो और अनासक्त भाव से समाज की जैन बननेवाले को अपनी जाति और सेवा करें तो उनसे समाज का बहुत जैनजाति दोनों से उपेक्षित होना भला हो सकता है । इस प्रत्यक्ष सेवा पड़ेगा। जैनधर्म के वात्सल्य और से वे आदर के पात्र बनेंगे और स्थितिकरण अंग को यदि जीवन में विश्व का हित भी होगा । जो काम उतारा जाय तो संख्या वृद्धि की इच्छा कानून और पुलिस नहीं कर सकती भी पूरी हो सकती है। पर संख्यावह साधु आसानी से कर सकते वृद्धि हमारा आदर्श नहीं होना हैं। समाज त्याग की कद्र करना चाहिये । यह एक प्रकार का निचले जानती है, पर ऐसे त्याग का तिर. दर्जे का मोह है। हमारा-आदर्श तो स्कार भी कर सकती है जो भार रूप तत्त्व-पचार होना चाहिये । तत्त्वप्रचार हो जाय। हमें आशा करनी चाहिये का मूल आधार है हमारा आचरण । कि समय साधुओं को ऐसा सोचने साहित्य और उपदेश का असर भी के लिये विवश अवश्य करेगा। और होता है, पर आचरण का प्रभाव कुछ "वे भी स्वेच्छा से, आनन्दपूर्वक भिन्न ही होता है । हमें जोश, उत्तेजना, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ * अहिंसा-वाणी * मद् आदि से दूर रहकर अपने पाच- और उसमें शक्ति का उपयोग ठीकरण को शुद्ध नैतिक बनाना चाहिये। ठीक होता है, पर बड़ा नाम रखने हमारी जीवन-शुद्धि होगी तो समाज पर यदि तदनुकूल काम नहीं हुआ तो की जीवन शुद्धि होगी और इसका चारों तरफ से उँगलियाँ उठने लगती असर शनैः शनैः विश्व में फैलेगा। हैं। विश्व मिशन का उद्देश्य विदेशों गान्धोजी एक थे पर वे विश्व व्यापी में धर्मप्रचार है। यह ठीक है। वह हो गये। केवल मिशन नाम रखकर भी किया गान्धीजी राष्ट्र-पुरुष थे और जा सकता है। मिशन के कार्यकर्ता उनका एक-एक मिनट मूल्यवान होता इस बारे में गंभीरता से सोचंगे ऐसी था। उनका जनता र इतना प्रभाव आशा है। था कि वे चाहे जो काम किसी से दूसरी बात इस बारे में यह है करा सकते थे। लेकिन कई काम तो कि मिशन के नाम में "जैन" शब्द वे स्वयं अपने हाथों करते थे। परचर के ऐवज में 'अहिसा' शब्द अधिक शास्त्री का नाम बहुतों ने सुना होगा। व्यापक प्रतीत होता है। हमें अहिंसा उन्हें कोढ़ हो गया था। उनकी मालिश, कहा प्रचार करना है और इस नात सेवा-सुअषा, गांधीजी अपने हाथों हमें अधिक लोगों का सहयोग मिल करते थे। चाहते वे तो किसी धना से सकता है। उनके इलाज का बढिया प्रबंध कर अगर जैन तत्त्व का प्रचार होता सकते थे. पर ऐसे सेवा के काम वे है और जैन शब्द नहीं भी रहता है स्वयं करते थे। इसीसे वे विश्वव्यापी तो घबराने की क्या बात है। इससे, बन सके। इस मिशन को भी ऐसा हमारा क्षेत्र व्यापक होगा। ही सेवा का मिशन बनना चाहिये।। हम जैनों का संगठन बनायें और जैनों की मदद से ही कोई काम शुरू मिशन का नाम करें इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो अन्त में मिशन के नाम के बारे सकती। पर अगर वह काय केवल में दो शब्द बोलकर अपने भाषण जैनों तक ही सीमित रहे तो उसे को समाप्त करूँगा। कई बार नाम से अशुभ ही कहा जायगा। मुझे खुशी बड़ी गलतफहमियाँ फैल जाती हैं। है कि मिशन का काम संपूर्ण मानव कई संस्थायें अखिल भारतीय नाम जाति के लिये है और उसमें सबको रख लेती हैं, पर क्षेत्र उनका एक समान स्थान है। ग्राम तक भी नहीं होता। मेरी नम्र मिशन का काम इतना व्यापक मान्यता में नाम छोटा रखकर बड़ा है कि उसमें जितने भी कार्यकर्ता काम करने से हमें कोई रोकता नहीं, जुटें, थोड़े ही होंगे। समाज के कार्य Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माननीय श्री बैजनाथ जी महोदय, इन्दौर अधिवेशन में 'सर्वोदय समाज और अहिंसा' पर भाषण दे रहे हैं । इन्दौर की रथ यात्रा का सुभग दृश्य । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी G MISTAN अधिवेशन में आयोजित अहिंसा-सांस्कृतिक सम्मेलन में डा० कालिदास नाग अध्यक्ष-पद से अंग्रेजी भापण दे रहे हैं । बाई ओर श्री कामता प्रसाद जैन हिन्दी में सेनुवाद करते जा रहे हैं । अधिवेशन में आयोजित महिला-सम्मेलन, जैन उपाश्रय, इन्दौर । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * डॉ० नाग का भाषण के कर्ताओं और नेताओं को इस ओर चाहिये । हमारे साधुओं को भी इस ध्यान देना चाहिये। बाबू कामता- ओर आकर्षित होना चाहिये । और प्रसाद जो, अपने कुछ साथियों के इसमें शंका नहीं अगर काम करने बल पर इसके भार को वहन करते वाले मिलें तो साधु भी खुशी-खुशी आ रहे हैं। समाज को अपना सह- अपना जीवन इस ओर लगा सकते योग देकर इनकी सेवाओं का लाभ हैं-मिशन का काम केवल पत्र-व्यवउठाना चाहिये । मिशन का काम हार और अधिवेशनों से पूरा नहीं इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अपना हो जाना चाहिये। जीवन समर्पण करनेवाले कुछ कार्य- मिशन अपने उद्देश्य में प्रगति कर्ताओं की जरूरत है। इस काम को करता रहे और तत्त्वप्रचार से मानवयोजनापूर्वक, पूरी व्यवस्था के साथ जाति के जीवन में, विचारों में ही आगे बढ़ाना चाहिये। साहित्य अधिकाधिक शुद्धि, सफाई, और प्रकाशन, प्रत्यक्ष सेवा, प्रचार, जन- उदारता, राष्ट्रीयता आये इस अभिजाग्रति .. विद्यादान आदि अनेक लाषा के साथ मैं अपना स्थान ग्रहण प्रवृत्तियों में लगन के कार्यकर्ता करता हूँ। डॉ० नाग का भाषण (श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन के शुभावसर पर आयोजित अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन में डॉ० कालिदास नाग एम० ए०, डी० लिट्, एम०पी० के अध्यक्षपद से दिए गए भाषण का सार ) श्री कालिदास नाग ने जैन मिशन आज सारा संसार हिंसा की द्वारा आयोजित अहिंसा संस्कृतिक ओर प्रवृत्त है और उसमें कुछ ही सम्मेलन के अध्यक्षीय भाषण अहिंसा को मानने वाले हैं। जरा देते हुए अहिंसा में विश्वास प्रकट आप विचार करके देखें कि यदि इन किया और कहा कि आज से दोनों में रस्सा खिंचाई हो तो क्या २५०० वर्ष पूर्व महावीर स्वामी नतीजा निकलेगा? इसलिये यह ध्यान एक ऐसे व्यक्ति हुए थे कि जिन्होंने रखने योग्य बात है कि संख्या का अपने प्रयोग से सारे संसार महत्त्व नहीं है, महत्त्व केवल अनुभव की प्रवृत्ति और इतिहास को बदल का है। अभी आम चुनाव के बाद दिया। आपने उनके सिद्धान्तों को आप लोगों की बुद्धि में मतदान की पहले से ग्रहण कर रखा है और उन- प्रतिक्रिया हो रही है; इसलिये आप पर विश्वास किया है तो उसके अनु- उसे ही महत्त्व दिये हुये हैं। यह तो रूप ही कार्य करके दिखाना होगा। केवल धूप छायें है किन्तु अहिंसा Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वारणी ३० 1 मौलिक सत्य है और चूंकि हमारे जैन भाईयों तथा बहनों ने उसे उत्तराधिकार में पाया है इसलिये उनका उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है जैन लिट्रेचर संसार में सबसे बड़ा लिट्रेचर है। जिन आचार्यों ने -जो चीज दी है वह इसलिये दी इससे संसार का उद्धार हो जाये और हो सकता है। जैन धर्म में मौलिकता की ओर ध्यान दिया गया है । मैं यहाँ पर उन साधुओं की कल्पना करता हूँ जो कि भविष्य में होने वाले हैं और उनके द्वारा ऐसे विश्व विद्यालय बनाये जावेंगे जो आज तक कहीं भी नहीं बने हैं । बाहर के लोग विदेश से राजनीति कुछ ग्रहण करने नहीं आयेंगे बल्कि वे यहाँ से कुछ और ही वस्तु लेने आयेंगे । मैं आज तीस वर्षों से सारे संसार का भ्रमण करता आ रहा हूँ । मैंने किसी भी विश्व विद्यालय में जैन धर्म पर हिंसा का नाम नहीं सुना, केवल भारत वर्ष में ही इसका नाम सुनता हूँ। अभी विदेशों से जो विद्वान आते हैं तो हम कहते हैं कि यह आये वह आये । किन्तु हमें तो हिंसा का तोहफा सबको देना है यदि अगले पाँच वर्षों में हम इस योग्य नहीं हो सके कि हम दुनियाँ को हिसा का पाठ पढ़ा सकें तो हम निश्चय ही स्वार्थी हैं । हमारे यहाँ उदार भाव, आतिथ्य सत्कार करना अपने ही क्षेत्र में सीमित है परन्तु अब ऐसा समय आ गया है कि वह बड़ा करके सार्वभौमिक कर देना चाहिये । बौद्ध धर्म का सौ वर्ष पहिले नाम कोई नहीं जनता था आज इसके जानने वाले अधिकतर हैं परन्तु ऐसा कौन सा कारण है कि जैन धर्म आज तक प्रकट नहीं हुआ है ? इस समय संसार में इंग्लिश का स्थान प्रधान हो गया। भारत का विदेशों से संबंध स्थापित करने के लिये इसके साहित्य. का अनुवाद इंग्लिश में होना चाहिये तब ही हम संसार में अपनी आवज पहुँचा सकते हैं और अपने कार्य में सफल हो सकते हैं। मैं कुछ ही सप्ताहों में इंग्लैंड, फ्रांन्स, स्विटजरलैंड, जर्मनी और इटली जाऊँगा । वहाँ लोग मुझसे पूछेंगे कि भारत का क्या सन्देश है तो मैं उनसे यही कहूँगा महात्मा गांधी ने अहिंसा का जो सन्देश दिया है वही सन्देश है। हिसा के द्वारा ही हम एक विश्व कोष के यथार्थ विश्वव्यापी रूप दे सकते हैं आज विश्व की विविध भाषाओं में बहुत से कोष है किन्तु अहिंसा का विश्वकोष अभी तक नहीं प्रकाशित हुआ है। दुनियां के बहुत से विद्वान इससे सहमत हो जायेंगे और विदेशों से सम्पर्क आसानी से स्थापित हो जावेगा । अतः श्रहिंसा का विश्वकोष निर्माण कीजिए । [शेष भाग १३ वें पृष्ठ पर ] Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्म-सिद्धांत और मानव एकता [श्री डॉ० हरिसत्य भट्टाचार्य एम० ए०, बी० एल०, पी० एच-डी०] ... [अ० विश्वजैन मिशन के इन्दौर अधिवेशनं पर आयोजित अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन, में दिए गए, अंग्रेजी भाषण का हिन्दी अनुवाद] मनुष्य-मनुष्य में स्पष्टतया श्राम तौर से मानव-मात्र में सहपरिलक्षित होने वाली विभिन्नताओं जतया असंतोष की भावना विद्यमान - के बावजूद कुछ ऐसे बुनियादी मुद्दे रहती है । यही सत्य राष्ट्रों में भी लागू भी है जिनपर सब ही मानव एक मत होता है। रखते हुये मिलते हैं। किसी भी एक किसी भी राष्ट्र की सरकार व्यक्ति की बात ही ले लीजिये । व्यक्ति विश्वस्त रूप से यह नहीं कह सकती के बारे में यह सरलता से बिना किसी कि उसने दुनियाँ की परिस्थितियों झिझक के कहा जा सकता है कि वह को भली प्रकार समझ लिया है, उसकी वर्तमान स्थिति से कभी भी पूर्ण उसके निर्णय पूर्णतया तथा सही हैं । संतुष्ट और तृप्त नहीं रहता। प्रत्येक दिशा और उसकी शक्ति की कोई चुनौती में वह अपने आप को सीमित अनुभव नहीं दे सकता तथा उस राष्ट्र की करता है। उसकी कल्पना की दौड़ जनता सुख की चरम सीमा प्राप्त कर जहाँ तक जाती हैं, उसमें वह अपने चुकी है। आपको तात्कालिक और बाद के भिन्न भिन्न तौर-तरीकों से इस प्रश्नों और समस्याओं को हल प्रकार समग्र राष्ट्र और व्यक्ति-व्यक्ति करने में अपने आपको अपर्याप्त पाता सही मानी में एक सीमा में बंधे हुये है । यही बात उसकी शक्ति के सम्बंध हैं, इस सीमित शक्ति का कारण में लागू होती है । और इसी तरह मानव-स्वभाव पर असर डालने वाली जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का हाल है। . परिस्थितियाँ हैं। कोई भी व्यक्ति साधा___इस प्रकार मानव जीवन की रण स्थित में दुःखों में नहीं रहना चाहता । घटनाओं का कुछ ऐसा बंधा हुआ अतएव वे शक्तियां जो मनुष्य की शक्ति क्रम हो जाता है कि प्रायः दार्शनिक को सीमित करती हैं, मनुष्य की प्रकृति और-सुशिक्षित मनुष्य भी यह कहने का वाह्य रूप है और फिर वह उनको लगता है कि जीवन-दुःख क्रमिक . मानसिक विकृति की स्थिति में स्वयं --- घटनाओं की एक घटना मात्र है। . निमंत्रित करता है-जैसा कि प्रतीत होता Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी के है। मनुष्य की सीमित शक्तियों के ये दो संसारी जीवों की इस दुखद भवस्था पहलू प्राचीन समय से चली आ रही इस का कारण जैन धर्म में 'मानव' को 'उक्ति से स्पष्ट होते हैं कि "जैसा मनुष्य बताया है, जिसका अर्थ आत्मा में कमबोता है-वैसा काटता है"। इस कथन से रूपी पुद्गल परमाणुओं का आगमन है। दो मतलब निकलते हैं। एक तो यह कि इस आश्रव के दो रूप हैं-आजीवमनुष्य बाह्य निमित्त से भी अपनी करनी रिधकरण (द्रव्याश्रव ) और जीवा( सुख-दुख रूप में) का प्रतिफल पाता रिधकरण (भावाश्रय ) आत्मा, शरीर है । और दूसरा यह कि वह अपने स्वयं मन और वचन से जुड़ी हुई है जो के द्वारा अपनी करनी के बीजों को खुद कि पुद्गल की ही पर्यायें हैं। उपरोक्त बोता है। मन-वचन और काय प्रतिक्षण कार्य . उदाहरण के तौर पर नैयायिक आदि शील रहते है। कभी तो स्वयं ही अन्य दार्शनिकों ने, जो कि वैदिक परम्परा तथा वहुधा वाह्य चीजों जैसे पुस्तकेंके अनुगामी हैं, उन्होंने भी इस बात को चित्र-मूर्तियाँ के सम्पर्क के प्रभाव स्पष्ट किया है कि मानव की सभी वाह्य से परिणमन करती हैं। प्रवृत्तियाँ राग-द्वेष और मोह के द्वारा मनुष्य के शरीर मन और वचन में प्रभावित होती हैं। और ये प्रवृतियाँ जो परिणमन होता है वह अजीवरीध. मैंनुष्य में एक ऐसी अजीब प्रकृति का करण (पुद्गल का परिणाम है ) जीव. निर्माण करती है जो कि अदृश्य कहलाती रोधकरण अथवा भावानव का मतलब हैं और जो आगे चलकर उसके भिन्न-भिन्न यह है कि जीव जो कि मन-वचन-कृत्य स्वरूपों से प्रगट होती हैं । यद्यपि उसके से सम्बद्ध है, इनकी प्रवृत्तियों के कारण ये बाह्य स्वरूप उसकी स्वाभाविक प्रकृति स्वयं भी अपनी प्राकृतिक स्थिति से च्युत के विपरीत हैं फिर भी उसे अपने किये हो जाता है और प्रात्माये इस हलनचलन का फल भोगने के लिए वाध्य करती है। को ही जैन दर्श ने योग कहा है जो कि यद्यपि बौद्ध धर्म ने सभी वस्तुओं आत्मा को वाम शक्तियो से प्रभावित के स्वभाव को अत्यंत क्षणभंगुर माना होने के लिए बाह्य करता है। इस है फिर भी वह इस गंभीर सत्य को प्रकार योग ही परिणाम प्राव है। स्वीकार करता है कि जो मनुष्य की इस तरह यह स्पष्ट है कि योग का इस क्षण में अवस्था है वह उसके कार्य आत्मा को एक विशेष रूप से पिछले कार्यों का प्रतिफल है। जैन परिवर्तित करना है। दर्शन में मानव मात्र की उपरोक्त इन, आत्मा के पौद्गालिक पर्यायों के दो प्रकार की दुर्दशाओं का वर्णन और लिए उपरोक्त कारणों के प्ररितरिक्त चार उनकी यथार्थता और भी अधिक स्पष्ट कषाय क्रोध-मान-माया लोभ भी कारण रूप में जोर देकर बता दी गई है। हैं। इस प्रकार मानव की खददु Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * कर्म-सिद्धांत और मानव एकता * अवस्था के दो तरफा कारण है। इसलिए एक दूसरे से सम्बन्धित द्रव्याश्राव के कारणों में बहुत सी हैं। वे दो बातें, जैसे ऊपर बता चुके बाह्य-शारीरिक और मानसिक हैं, उनकी मौलिक सीमित दशा क्रियाओं से उत्पन्न व्यामोह हैं जो कि अर्थात् आत्मस्वभाव का परिमित आत्मा को पतितावस्था की ओर ले होकर सुखमई दशा से वञ्चित हो जाते है और साथ ही साथ आत्मा जाना है और उस सीमित दशा के को अपनी निज की दशा से च्युत वाह्य कारण भी सबके एक समान करके विक्षिप्त करते हैं। हैं। यह दोनों मानवता की एकता उस सबका परिणाम यह होता सूचित करते हैं । अब यहां पर हम है कि बहुत ही सूक्ष्म और अदृश्य एक तीसरे तथ्य की ओर भी संकेत पुद्गल परमाणु जिनको जैन दर्शन में करते हैं जो मानव एकता का पोषक कर्म पुद्गल कहा गया है, अत्मा से है । दुखी मानवता इस तथ्य के बंध जाते हैं। ये कर्म परमाणु यद्यपि आलोक में एकता का अनुभव समय समय पर क्षय होते रहते हैं किए बिना नहीं रह सकती । यह तथापि नये पुद्गल परमाणु शीघ्र ही तथ्य दुख-दर्द से मानव को मुक्ति उनका स्थान ले लेते हैं और कर्मों मिलने के उपाय में अन्तनिहित बंधन इस प्रकार आत्मा से इन है। और यह उपाय सभी मानवों के का बंधन बना रहता है जो आत्मा लिए केवल एक है। सुग्व की प्राप्ति को मुक्त नहीं होने देता और उसकी इस बात पर निर्भर है कि मानव के शक्तियों को परिमित कर देता है। भीतर जो दुखदायक वाह्य कारणों इस प्रकार मानव की एकता संबंधी का सम्बन्ध हो गया है, उन सम्बप्रकरण में यह दूसरा तथ्य है। केवल न्धों-बन्धनों को तोड़कर बाहर फेंक यह बात नहीं है कि निरंतर बने रहने दिया जावे । उन बन्धनों ने ही तो वाले संसार के क्लेश और परिताप मानव को अपने आनन्दमयी स्वाही जीवोंको संक्लेषित करते हैं और भाव से वञ्जित कर दिया है। उस उनको सीमित बनाते हैं, बल्कि इन बंधन को चाहे वैदिक ब्राह्मण 'अदृष्ट' दुर्भाग्यशाली जीवों की तकलीफ कहे, जैन 'कर्मबंध' कहे और ईसाई और दुख का एक मात्र कारण वाह्य 'गुनाह' (Sin) कहे; इससे कोई विकारों और योगों का परिणमन हानि नहीं ! हानि तो उस वाह्य कर्म पुद्गल से है जिसके बंधजन्य प्रभाव इस प्रकार हम पाते हैं कि यथार्थ के कारण, मानव अपने स्वभाव को में इस लोक के सभी मानव दो बातों खो बैठा है । इस बंध को नष्ट करके में एक ही स्थिति में एक से हैं- मानव-मानव मुक्ति दशा में अपने Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ . ॐ अहिंसा-वाणी ॐ स्वभाव को पायेगा और सुखी आवश्यकता मानवों और राष्ट्रों को होगा। _ है ! पहले 'लीग आँव नेशस्स' था नैतिक दृष्टि से सभी मानवों के और आज 'संयुक्त राष्ट्रसंग' चारित्र संबंधी नियमों में मौलिक (U.N.0.) है, जो मानवों को एकता भी साधारणतया मिलती है। युद्ध से बचाकर उनके जन्मसिद्ध परमतत्व का स्पष्ट दर्शन, शुद्ध और अधिकारों के संरक्षण का दावा निरपेक्षा शंकाओं से रहित ज्ञान और करता हैं। किन्तु फिर भी आज के चरित्र नियम, जो किसी को कष्ट न मानव को कलके आने वाले भयङ्कर दें बल्कि सब के लिए हितकर हों- विनाश के आतंक में जीवन बिताना यही तथ्य हैं जिसको सभी लोग पड़ रहा है ! क्या शान्ति चरचायें शान्ति पाने के लिए आवश्यक नहीं होती ? नहीं, नहीं, ऐसी बातों मानते हैं। किन्तु दर्शन, ज्ञान और की कमी नहीं है-चरचा वार्ता तो चारित्र को अपने से वाह्य लोक की बहुत होती हैं। तो फिर यह असफवस्तुयं न समझ कर मानव पहिचाने लता क्यों? शान्ति क्यों नहीं होती ? कि वे उसकी आत्मा से अभिन्न हैं- इसका कारण यही है कि न तो मानवों आत्मा के गुण हैं । वह उनको ने और न राष्ट्रों ने ही अनुभव किया अपने अनुभव में लावे । इस प्रकार है कि शान्ति कहीं बाहर नहीं, बल्कि यह मौलिक और यथार्थ आदर्श उनके भीतर-उनके स्वभाव का सभी मानवों के समक्ष मौजूद है ? ही एक अंग है । और उसे उन्हें प्राप्त यही वह सुदृढ़ सिद्धांत है जो मानव करना चाहिये-वे अन्तरदृष्टा नहीं एकता की अटूट आधार शिला है। हुए हैं। प्राचीन विश्व में बौद्धिक लोक में इस प्रसंग में जैनों का अनेकान्त इस सत्य का निरूपण इन उक्तियों सिद्धांत लोक को मार्ग सुझाने के में चरितार्थ किया गया थाः- लिए कार्यकारी सिद्ध होता है। मान __“Know Thyself.” (तू लीजिए एक मानव ने इन्द्रियजनित । अपने को जान) भोगों को तिलाञ्जलि दे दी। इस अथवा दशा में उसका चरित्र व्यवहार नय "आत्मानां सततं विद्धिः” से श्लाघ्य है। किन्तु वही मानव (आत्मा का अनुभव कर) कुछ ऊपर उठकर अपने हृदय से और विश्व के इतिहास में भोगों की लालसा का बीज ही मिटा शायद ही ऐसा कोई समय आया दे तो उसका चारित्र और भी निखर हो जैसे कि आज इस सत्य को पहि- जाय । वह आत्मतत्व के निकट चानने और व्यवहार में लाने की पहुँचे-अतः निश्चयनय से भी Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ कर्म-सिद्धांत और मानव एकता * ३५. उसका चारित्र प्रशंसनीय कहा जा भेदों को निबटाने के लिये शस्त्रास्त्रों सकता है। इतने से ही वह मुमुक्षु का सहारा ले रहे हैं -कोरिया, संतोष धारण नहीं करता, बल्कि मलाया और इंडोचायना में सचसाधना और अनुभव द्वारा आत्म- मुच युद्ध लड़े जा रहे हैं। इस स्वभाव में हल्लीन हो जाता है और अवस्था में यह कैसे माने कि संयम को अपनी आत्मा का एक निश्चयनयेन इन राष्ट्रों ने शान्ति अभंग गुण मानने लगता.-वैसा ही का रूप पहिचाना है ! उनके हृदय अनुभव करता है हो निस्सन्देह तो अभी द्वेष और द्रोह से जल रहे 'शुद्ध निश्चय नय' से भी वह महान् हैं। मिश्र, ईरान और जरमनी की चरित्रवान होगया है। समस्यायें इसके प्रमाण हैं। जैनों के इस प्राचीन सिद्धांत के किन्तु ऐसी परिस्थिति में भी प्रकाश में आज की · समस्या का हमें निराशावादी नहीं बनना है। हमें विचार कीजिए । मान लीजिए तो आशा करना चाहिये कि निकट संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति के प्रयास भविष्य में लोग अपनी त्रुटि को सच्चे हैं, फिर भी आतंक क्यों है ? पहिचानेंगे और क्रोध, मान, माया, सच बात तो यह है कि गत दो लोभ-कषायों से ऊपर उठकर महान विश्व युद्धों के लड़े जाने के अपने स्वरूप को पावेंगे और एकता बावजूद भी राष्ट्रों का शान्ति के के सूत्र मे बधेंगे। अपने आत्मस्वभाव लिये जो दृष्टिकोण है वह व्यवहार को पाकर ही राष्ट्र सुख-शान्ति और नय की सीमा में भी शायद ही समृद्धि का अनुभव करेंगे तथा आता है। आज भी राष्ट्र अपने मत- विरोधों को जीत लेंगे। ॐ शान्तिः। [४८वें पृष्ठ का शेष भाग] . खुदाई का कार्य प्रारम्भ कराया जाय क्षण, अध्ययन एवं प्रकाशन की ओर इससे न केवल जैन धर्म के संबंध हमारी लोकप्रिय सरकार एवं जनता में नई बातो को जानकारी होगी, शीघ्र ध्यान देगी, जिससे हम अपनी अपितु भारत के इतिहास पर नया बहुमूल्य निधि को नष्ट होने से बचा प्रकाश डालने वाली कितनी ही बातें सकें और उसके द्वारा अपने इतिज्ञात हो सकेंगी। आशा है कि प्राचीन हास का सच्चा स्वरूप जानने में समर्थ बस्तुओं के अनुसंधान, उनके संर- हो सकें। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म और योग पर एक नवीन दृष्टिकोण ( हंगेरियन विद्वान डॉ० फेलिक्स वाल्यी के अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन में दिये गये भाषण का सार ) मुझे अत्यंत हर्ष है कि आप लोगों आज पाश्वात्य विद्वानों में यह ने मुझ विदेशी को जैन धर्म जैसे बात बहुमत से मान्य हो चुकी है कि गंभीर धर्म पर अपने विचार प्रकट भगवान महावीर संसार के महान करने का सुअवसर प्रदान किया। विचारकों में अग्रणीय हैं। यहाँ तक पाश्चात्य जगत में अभी तक जैन कि यद्यपि भगवान बुद्ध और उनके धर्म के अध्ययन के विषय में उपेक्षा अनुयायीयों का जैन धर्म से मनोसी रही है । परन्तु अब कुछ पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं चिंतन में अन्तर रहा विद्वानों का ध्यान इस ओर गया है, है फिर भी उन्होंने महात्मा महावीर जिन्होंन कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म को संसार को एक अलौकिक विभूति की विशेषताओं के साथ उनका पार- · माना है। स्परिक मौलिक अंतर भी बताया है। योग के विषय में भी मेरा विचार जर्मनी के विद्वान जेकौवी वाल्टर, है कि समस्त भारतीय धर्म योग की शूधिग, हेल्मट फॉन ग्लासनां आदि आधार शिलापर ही आधारीत है। पश्चामीय विद्वान उल्लेखनीय है। एवं योग ने ही विश्व के सांस्कृतिक बौद्ध धर्म जैन धर्म से ही मूल विकास में एक महती भाग लिया है। प्रेरणा लेकर बढ़ने पाया। वह जैनों जैन धर्म की मूल भावना निश्चय ही के आत्मसुख एवं जैनेतरो के बलिदान साधनामय योग है । व्यक्तिगत साधना का मध्यवर्ती समन्वित रूप है। पर जैन धर्म में बहुत जोर दिया गया भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध है। आत्मानुशासुन योग साधना द्वारा को इतिहास से अलग नहीं किया जा ही होता है । दुख है कि आधुनिक युग सकता। ये दोनों ही भारत के उच्च- में योग का दुरुपयोग हुआ है और कोटि के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मीक वह अब केवल प्रदर्शन की वस्तु रह स्वर के स्तंभ रहे हैं। इन विभूतियों गई है। वास्तविक योग तो जैन धर्म ने वैदिक युग से आती हुई मानव की ही है। इसमें शरीर और मन दोनों परम्परागत दास्ता को निरर्थक सिद्ध के नियंत्रण का ध्यान रक्खा गया है। करके मनुष्य के आत्म स्वातंत्र्य पर यही योग जैन धर्म से आगे चलकर जोर दिया है। सब धर्मों में समा गया है। आज Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * जैन धर्म और योग पर एक नवीन दृष्टिकोण * ३७ 'उसे हम 'जैन चरित्र' के नाम से जैन धर्म की त्याग भावना की उच्चता पुकारते हैं। वर्तमान ऐतिहासिक तक कोई भी अन्य धर्म नहीं पहुँच खोजों ने जैन धर्म की प्राचीनता पर सकते है। पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। वह भारत जैनों का नैतिक स्तर शताब्दियों का श्रादि धर्म है । वैदिक आर्य भारत य भारत तक भारत में अपनी विशेषता के का में आये भी नहीं थे कि उससे पहले लिए प्रसिद्ध रहा है; परन्तु वर्तमान यहाँ जैनों की अहिंसा लोक का कल्याण समय में इस नैतिकता का अवमूल्यांकर रही थी। कन होने लगा है। सच तो यह है मेरे प्रिय मित्र स्व० हेनरी कि जैन धर्म निम्न से निम्नतर व्यक्ति ज़िम्मर ( Henri Zimmer ) ने को भी उच्चतम बनाने का अवसर भारतीय दर्शनों का गहरा अध्ययन देता है । जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त किया था। उन्होंने ही मुझे जैन धर्म अहिंसा है। यह अहिंसा मनुष्य में का अध्ययन करने के लिये प्रेरित - कायरता का संचार नहीं करती, वरन् किया। उन्होंने बताया कि प्राचीन उसकी आत्मशक्ति को प्रबल और शुद्ध भारत का पथप्रदर्शक जैन धर्म रहा है । भ० पार्श्वनाथ के बहुत पहले से बनाती है। यही कारण है कि जैन 1 धर्म को बहुत समय तक भारत के जैन धर्म भारत में सच्चे योग का न अनेक राजाओं, मंत्रियों और सेनाप्रचार कर रहा था। प्रो० जिम्मर ने पतियों ने अपनाया था। 'भारतीय दर्शनों' पर जो पुस्तक लिखी है उसमें भ० पार्श्वनाथ के आज की भटकी हुई मानवता को पूर्वभवों का रहस्योद्धाटन करके योग भी सब दिन अपने अहंभाव को चर्या के विकाश पर प्रकाश डाला है। भूलकर और व्यक्तिगत स्वार्थों को योग साधना के विषय में विद्वानों में तिलांजलि देकर अहिंसा के चरणों मतभेद हो सकता है, किन्तु यह एक में ही आना होगा और तब ही विश्व एक स्वीकृत सत्य और तथ्य है कि शान्ति संभव होगी। 'अहिंसा-वाणी' में विज्ञापन देकर लाभ उठाइए। . .... अहिंसाचाणी कार्यालय, ____ अलीगंज (एटा) उ० प्र० Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शांति-प्रस्ताव . (श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन पर आयोजित अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन में निम्न प्रस्ताव पास किया गया, जो संयुक्त राष्ट्रसंघ, भारत सरकार आदि को भेजा गया। जरमनी, इंगलैंड, जापान आदि देशों के सामयिक पत्रों में इस पर चरचा गई है। -सं०) गत् दो महायुद्धों और कोटिया- शक्ति के लोभ से उत्पन्न होने के कारण, युद्ध से यह स्पष्ट तय हो गया कि अप्राकृतिक विनाश की तैयारी है। इस भूतल पर मानव जाति के सुख- अतः, यह संयुक्त राष्ट्रसंघ से शान्ति-युग का निर्माण सशस्त्रीय अपील करता है कि वह अपनी नीति ध्वंशात्मक कार्यों से नहीं हो सकता। को इस प्रकार की बनाए जो विश्व यह सभी तरह से निर्णीत हो गया है का प्रत्येक राज्य एवं राष्ट्र उसका ज्वालामुखियों के समान युद्ध प्राकृतिक सदस्य बनने को उत्साहित हो तथा अवश्यम्भावी नहीं हैं जो मानव संघ एवं उसके मंत्र के पुनर्गठन से समाज की परिस्थितियों को सुगम उसके मत वैषम्य सुलझ सके और एवं स्वस्थ बना सकें। इसकी अपे- कठिनाइयाँ दूर की जा सकें । इन सब क्षाकृत युद्ध महाशक्तियों के वे कुशल के ऊपर यह सभा 'यूनेस्को' (सयुक्तमोर्चे हैं जो सकारण सत्य को नाम राष्ट्र संघ की शैसिक, वैज्ञानिक, पर अपने राजनैतिक स्वत्व को जमाने सांस्कृतिक संस्था) को प्रेरित करती के लिए और संसार के अन्य विभाग है कि वह सत्य एवं अहिंसा को पर तानाशाही कायम करने के लिए, राष्ट्रीय-शिक्षा का सभी व्यक्तिपों के प्रयत्न शील हैं। लिए आवश्यक अङ्ग बनाए और इस ___ इस सत्य पर विश्वास करते हुए विषय में यह विशेषकर भारत सरकार श्री अखिल विश्व जैन मिशन का यह से निवेदन करती है कि वह अपने सम्मेलन यहाँ अपने मतों पर भली देश के नागरिकों में सत्य-अहिंसा प्रकार विचार विनिमय करने के पश्- की आदतें डालने के निमित्त कुछ चात यह मत प्रस्तुत करता है कि युद्ध रचनात्मक योजनाएँ बनाए। "पीड़ा की गोदी में सोया, खेला दिल के अरमानों से । विहँसा तो हा-हाकारों में, रूठा तो अपने प्राणों से ॥ आध्यात्मिक पथ पर बढ़ने को, अब क्रान्ति चाहता मानव । सुख शान्ति चाहता है मानव ॥" -स्वर्गीय श्री 'भागवत' Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक संध्या ( श्री सुरेश चन्द्र अग्निहोत्री, साहित्यरत्न) छोड कर निज तेज की महिमा चला रवि,.. ताप जिससे था तपाया इस जगत को, और शोषण था किया निरुपाय- जल का, हो गया अब दूर उससे । और शोकातुर बना निज गमन से प्राची दिशा को, चल दिया वह दूसरी दुनिया बसाने के लिए। पेट के मारे, श्रमिक जो व्यस्त बेचारे रहे दिन भर, . - चले ले साथ पूँजी जो पसीने . की कमाई - जो रुधिर को शुष्क कर दिन भर उन्होंने है कमाई। और जिसके ही सहारे चल रही है एक दुनियाआठ-दस प्राणी न जिनका पेट पूरा भर सकेगा, चार-ग्रासों की प्रतीक्षा में बिताया दिन जिन्होंने । किन्त वे संतोष का हैं छोड़ते फिर भी न आश्रय । नित्य ही हैं खोदकर पानी सदा ये प्राप्त करते। जान पाये हैं न ये आनन्द दुनियाबी नये नित। मस्त पंछी लौटते हैं जो श्रमिक की भाँति दिन भर अन्न-चिन्ता से रहे व्यावृत्त हैं, पर हैं नहीं जो, चूर उतने कठिन-श्रम से, क्लान्त हैं बिल्कुल नहीं वे । और जिनको हैं न चिन्ता लेश कल क्या शेष करना। मुक्त नभ में हैं विचरते, गान गाते हैं अमर जो। और जिनकी भांवना की उच्चता है पूर्ण अनुपम । मधुरतम संगीत का आवास जिनका कलित स्वर है। और जिनका रात्रि का विश्रामस्थल सुरभित-सुतरुवर। कुछ सुमन मुरझा रहे हैं और कुछ अति उल्लसित हैं, लिए इच्छा हृदय में खिल देखने की इस जगत को। हँस रहे हैं सुमन-सूखे देख उनका मुस्कराना जान यह उल्लास ऐसा रह न सकता है सदा ही, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * आ निराशा दूर कर देगी सभी मस्ती दिलों की, और सूखेंगे सुमन-गण के सु-मनजो आज हैं उल्लास से, उत्साह से अापूर्य अति ही । रूप का लावण्य उनसे दूर होगा और कोमलता, मिटा देंगे झकोरे-कुटिल झंझा के। सुरभि भी तज साथ उनसे दूर होगी, जा कहीं अन्यत्र, बसने के लिए। _ और उनकी भाँति ही वे भी करेंगे कटु प्रतीक्षा एक झोंके से गिरा जो मिला मिट्टी में उन्हें दे । आ रही श्यामा-तमा है, दूर करने क्लान्ति जग की, .. मेंटने को श्रीति श्रमिकों की पुनः देने उन्हें, वह शक्ति जिससे फिर जुटें वे मूक-पशु की भाँति अपने कार्य पर। वह स्वप्न की दुनिया लिए है साथ में आती; न जिस पर है नियन्त्रण बुद्धि का, जो पूर्ण करती, सुप्त इच्छाएँ युगों से जो अपूरित । है वही निज-कोड़ में आश्रय सदा देती दलित को, दुखित-जन का है एक है वह ही सहारा, जो उषा निज आगमन से छीन लेगी। पह जगत है केन्द्र कटुता का न मादकता यहाँ है, क्रूर-बलि-वेदी यही उन शावकों की है कि जिनकोज्ञान जग की। कुटिलता का, नीचता का । यही है उत्थान जीवन का, यही अवसान भी है, 'मधु-उषा' से हुलसते आ 'मौन-संध्या' वत तजो जग, छोड़कर अवसाद के कुछ चिह्न-निर्मम । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्रकाशचन्द्र जी टोंग्या ( संयोजक इन्दौर शाखा ) डा० फैलक्स वाल्यी को उनके इन्दौर-अागमन पर, हार पहना रहे हैं । माननीय श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल द्वारा दिए गए प्रीति-भोज के पश्चात जैन मिशन के प्रमुख प्रतिनिधियों और सम्बाददाताओं का सामूहिक दृश्य Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दार्शनिक एवं धार्मिक चर्चा करते हुए फैलिक्स वाल्यी और श्री हुकुम चन्द्रजी काशलोवाल श्री कृष्णदत्त जी बाजपेयी एम० ए०, पुरातत्वाधिकारो, उत्तर प्रदेश अधिवेशन में 'जैन कला का महत्व' शीर्षकात्मक भाषा दे रहे हैं । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर भारत की जैन मूर्ति कला (श्री कृष्णदत्त बाजपेयी एम० ए० पुरातत्व अधिकारी, उत्तर प्रदेश) - [इन्दौर अहिंसा सम्मेलन के लिये लिखित] भारतवर्ष ने प्राचीन काल में इस दिशा में आवश्यक कार्य बहुत जीवन के विविध क्षेत्रों में जो उन्नति समय तक नहीं किया जा सका । इस को उसमें जैन धर्म का महत्वपूर्ण योग उपेक्षा का परिणाम यह हुआ कि है इस धर्म की छत्रछाया में जिस भारतीय इतिहास के अनेक युगों की साहित्य और कला का विकास शता. जानकारी अधूरी ही रह गई। ब्दियों तक होता रहा उसके अध्ययन यहाँ हमें उतर भारत की जैन की ओर अभी तक अपेक्षित ध्यान मूर्ति कला के सम्बन्ध में कुछ विचार नहीं दिया जा सका । कुछ समय करना है । बास्तव में जैन कला का पहले तो कितने ही विदेशी एवं देशी विस्तार इतना बड़ा है कि उसके विद्वान यह मानते थे कि जैन धर्म विषय में एक विस्तृत विवरण की हिन्दू या बौद्ध धर्म की ही एक शाखा आवश्यकता है। यह निश्चित रूप है और उसमें ऐसी कोई विशेषता से बता सकना कठिन है कि जैन मूर्ति नहीं जिसके कारण उसे महत्व दिया कला का प्रारम्भ कब हुआ। मथुरा, जा सके । १७८४ ई० में कलकत्त में उदयगिरि, खण्डगिरि आदि स्थानों रायल एशियाटिक सोसायटी के स्था- से जो प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं पन-काल से लेकर उन्नीसवीं शती उनसे पता चलता है कि ईस्वी सन् के अंत तक भारतीय इतिहास के के पहले उत्तर भारत में कई जगह अनेक अंगों पर अनुसन्धान हुए, जैन स्तूपों, विहारों तथा तीर्थकरपरंतु जैन धर्म एवं जैन साहित्य के प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हो गया के विषय में बहुत कम खोज की गई। था। उड़ीसा की हाथी गुफा से मिले अधिकांश विदेशी विद्वानों का ध्यान हुए जैन राजा खारवेल के अभिलेख बौद्ध तथा वैदिक साहित्य की ओर से ज्ञात होता है कि इसकी पूर्व चौथी ही लगा रहा । यद्यपि याकोबी, ब्यूलर शताब्दी में मगध के राजा नन्द आदि कतिपय विद्वानों ने जैन साहि- (महापदमनन्द) तीर्थकर की प्रसिद्ध त्य और दर्शन के महत्व की ओर प्रतिमा कलिंग से पाटलिपुत्र उठा ले लोगों का ध्यान आकृष्ट किया, तथापि गए थे। इस मूर्ति को खारवेल मगध Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ * अहिंसा-वाणी* से फिर ले आए और उसे अपने इसकी पुष्टि साहित्यिक प्रमाणों से राज्य में प्रतिष्ठापित किया । इस भी होती है, जिन्हें ब्यूलर, स्मिथ उल्लेख से पता चलता है कि तीर्थङ्कर आदि पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार प्रतिमाओं का निर्माण महापद्मनन्द किया है। सबसे पहले ब्यूलर ने के भी पहले प्रारम्भ हो चुका था। जिन प्रभ-रचित, 'तीर्थकल्प' नामक मथुरा के प्रसिद्ध कंकाली टीले की ग्रन्थ की ओर लोगों का ध्यान आकखुदाई में मिली हुई बस्तुओं में एक र्षित किया, जिसमें प्राचीन प्रमाणों के तीर्थकर मूर्ति की भग्न चौकी भी है, आधार पर मथुरा के देवनिर्मित जिस पर ई० दूसरी शताब्दी का एक स्तूप की नींव पड़ने तथा उसकी मरब्रासी लेख उत्कीर्ण है। इसमें लिदा म्मत का वर्णन है। इस ग्रन्थ के है कि शक सम्बत् ७६ (१५७ ई०) में अनुसार यह स्तूप पहले स्वर्ण का मुनिसुव्रतनाथ को इस प्रतिमा को था और उस पर मूल्यवान् पत्थर जड़े 'देवताओं के द्वारा निर्मित बौद्ध हुए थे । सातवें तीर्थंकर सुपाश्वनाथ स्तूप' में प्रतिष्ठापित किया गया। की प्रतिष्ठा में इस स्तूप को कुबेरा इससे पता चलता है कि ईसवीं दूसरी देवी ने बनवाया था। २३ वें जिन शती मे मथुरा के इस प्राचीन जैन पार्श्वनाथ के समय में इस स्तूप स्तूप का आकार-प्रकार ऐसा भव्य को चारों ओर ईटों से आवेष्टित तथा उसकी कला इतनी दिव्य थी किया गया और उसके बाहर एक कि मथुरा के कुषाण कालीन कला पाषाण-मन्दिर का भी निर्माण किया मर्मज्ञों को भी उसे देखकर चकित गया। तीर्थकल्प से यह भी ज्ञात हो जाना पड़ा । लोग यह मानने होता हैं कि भगवान महावीर के लगे कि 'बौद्ध स्तूप संसार के किसी ज्ञान-प्राप्ति के तेरह सौ वर्ष बाद प्राणी की कृति न होकर देवताओं मथस के इस स्तूप की मरम्मत वप्पकी रचना होगी, इसी लिए उन्होंने भट्ट सूरि ने कराई । तदनुसार मरम्मत उसे 'देवनिर्मित' स्तूप की संज्ञा दी। का समय ईसवीं आठवीं शताब्दी के ___ उपर्युक्त लेख के मिलने के पूर्व मध्य में आता है। अतः कम से कम विद्वानों की यह धारणा थी कि भारत इस काल तक वर्तमान कंकाली टीले में सबसे पहले बौद्ध स्तूपों का निर्माण की भूमि पर उक्त स्तूप का अस्तित्व हुआ। परन्तु प्रस्तुत लेख के द्वारा रहा होगा । यद्यपि बौद्ध स्तूप के सर्व यह धारणा. भ्रांत सिद्ध हो गई है। प्रथम निर्माण की तिथि निश्चित रूप अब विद्वान यह मानने लगे हैं कि से नहीं बताई जा सकती तो भी बौद्ध स्तूपों के बनने के पहले जैन साहित्यिक उल्लेखों के आधार पर स्तूपों का निर्माण हो चुका था। इतना कहा जा सकता है कि उसका Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * उत्तर भारत की जैन मूर्ति कला निर्माण ईसवी पूर्व ६०० के काफी पहले निष्पन्न हुआ होगा । ईसा की दूसरी शताब्दी में स्तूप का पुनर्निर्मित रूप जनता के समक्ष था, जिसके कला- -सौंदर्य पर मुग्ध होकर लोगों ने उसे 'देवनिर्मित' संज्ञा प्रदान की । 'रायपसेनिय सूत्र' नामक जैन ग्रन्थ में प्राचीन जैन स्थापत्य एवं मूर्तिकला से सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन मिलता है । इस ग्रन्थ में देव विमान तथा स्तूप का ऐसा जीताजागता वर्णन है कि लेखक की सूक्ष्म पर्यवेक्षण शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाना पड़ता है । स्तूप के प्रकारों एवं उनके विभिन्न भागों का सूक्ष्म वर्णन मनोरंजक ढंग से इस ग्रन्थ में दिया है । उतर भारत में जैन कला के जितने प्राचीन केन्द्र थे उनमें मथुरा का स्थान अग्रगण्य है । सोलह शताब्दियों से ऊपर के दीर्घ काल में मथुरा में जैनधर्न का विकास होता रहा । यहाँ के चित्तीदार लाल, बलुए पत्थर की बनी हुई कई हजार जैन कलाकृतियाँ अब तक मथुरा और उसके आस-पास के जिलों से प्राप्त हो चुकीं हैं । इनमें तीर्थकार आदि प्रतिमाओं के अतिरिक्त चौकोर आयागपट्ट, वेदिकास्तंभ, सूची, तोरण तथा दवारस्तंभ आदि हैं । मथुरा के जैन आयागपट्ट विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। इन पर प्रायः बीच में तीर्थंकर मूर्ति तथा उसके चारों ओर विविध 1 ४३ प्रकार के मनोहर अलंकरण मिलते हैं। स्वस्तिक, नन्दयावर्त, वर्धमानक्य, श्रीवत्स, भद्रासन, दर्पण, कलश और मीनयुगुल इन अष्ट मंगल द्रव्यों का प्रयागपट्टों पर सुन्दरता के साथ चित्रण किया गया है। एक आयागपट्ट पर आठ दिकुंकुमारियाँ एक दूसरे का हाथ पकड़े हुये आकर्षक ढँग से मंडल नृत्य में संलग्न दिखाई गई हैं। मंडल या चक्रवाल अभिनय का उल्लेख रायपसेनिय सूत्र में भी मिलता है। एक दूसरे आयागपट्ट पर तोरणद्मर तथा वेदिका का अत्यंत में ये आयागपट्ट प्राचीन जैन कला सुन्दर न मिलता है । वास्तव के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । इनमें से अधिकांश अभिलिखित हैं, जिन पर लेकर ईसवी प्रथम शती के मध्य तक ब्राह्मीलिपि में लगभग ई० पू० १०० के लेख हैं । 1 मथुरा कला में तीर्थंकर तथा अन्य जैन प्रतिमाएँ एवं इमारती पत्थर सैकड़ों की संख्या में प्राप्त हुए हैं। शुंग काल से लेकर गुप्त काल तक का ऐसी मूल्यवान् जैन सामग्री भारत में अन्यत्र कहीं नहीं मिली । इस सामग्री के द्वारा विभिन्न युगों की वेषभूषा, आमोद-प्रमोद तथा अन्य सामाजिक पहुलओं पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा है । कुषाण काल की मूर्तियों में बहुत सी अभिलिखित हैं । इन लेखों की लिपी ब्राह्मी है, तथा Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * हिंसा-वाणी ४४ भाषा संस्कृत और प्राकृत का मिश्रण है । इन लेखों के द्वारा तत्कालीन जैन धर्म के सम्बन्ध मे बहुत जानकारी प्राप्त हुई है, जिसकी पुष्टि प्राचीन साहित्य से भी होती है । मथुरा कला की मूर्तियों में हाथ में पुस्तक लिए हुये सरस्वती, अभय मुद्रा में देवी तथा नैगेमेश की अनेक मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं । तोर्थंकर प्रतिमाएँ प्रायः ध्यानमुद्रा में बैठी हुई मिली हैं । कुछ कायोसर्ग मुद्रा में भी हैं । कुषाण गुप्त तथा मध्यकाल की अनेक सर्वतो - भद्रिका प्रतिमाएँ भी उपलब्ध हुई हैं । कलाकारों ने विभिन्न तिथंकर मूर्तियों से निर्माण में दिव्य सौंदर्य के साथ आध्यात्मिक गंभीर्य का जैसा समन्वय किया है उसे देखकर पता चलता है कि भावाभिव्यक्ति में ये कलाकार कितने अधिक कुशल थे ! प्राचीन बौद्ध एवं जैन स्तूपों के चारों ओर वेदिका की रचना का प्रचलित था । वेदिका स्तंभों आदि के ऊपर स्त्री-पुरुषों, पशु-पक्षियों लता - वृक्षों आदि का चित्रण किया जाता था । कंकाली टीले से प्राप्त जैन वेदिका स्तंभों पर ऐसी बहुत सो मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, जिनमें तत्कालीन आनन्दमय लोकजीवन की सुन्दर झाँकी मिलती है। इन मूर्तियों विविध आकर्षक मुद्राओं में खड़ी स्त्रियों के चित्रण अधिक हैं। किसी खम्भे पर कोई वनिता उद्यान में फूल चुनती हुई दिखाई गई है तो किसी पर कंदुक क्रोडा में व्यस्त युवती प्रदर्शित है । कोई सुन्दरी भरने के नीचे स्नान का आनन्द ले रही हैं तो दूसरी स्नान करने के उपरांत कपड़े पहन रही है या अपने गीले केश सुखा रही है । किसी स्तंभ पर बालों के सँवारने का दृश्य है तो किसी पर कपोलों पर लोध्रचूर्ण मलने या पैरों पर अलता लगाने का । कहीं कोई रमणी पुष्पित वृक्ष की छाया में बैठकर वीणा या वांसुरी बजाने में तल्लीन है तो दूसरी नृत्य में । वास्तव मैं मथुरा के ये वेदिका स्तंभ कलात्मक शृंगार और माधुर्य के जीते-जागते रूप हैं, जिन पर कला - कारों ने सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रकृति और मानवजगत् की सौंदर्य राशि उपस्थित कर दी है । ईसवी सन् के प्रारम्भ से लेकर ई० पांच की शती के अन्त तक का युग मथुरा की मूर्तिकला का 'स्वर्णयुग' कहा जा सकता है । इस युग का प्रथमार्ध विशेष महत्व का है । इस काल के कुषाण शासकों को कला के सौंदर्य पक्ष ने अधिक आकृष्ट किया । मथुरा के कलाकारों ने अपने संरक्षकों को इस भावना का स्वागत किया और उसकी पूर्ति के लिए कला के शृङ्गार को उन्नत किया । कुण काल के जो तोरण, वेदिका स्तम्भ, सूची, आयागपट्ट आदि तथा मिट्टी की जो बहुसंख्यक मूर्तियाँ मिली हैं Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * उत्तर भारत की जैन मूर्ति कला ४५. स्नान । कहीं सुन्दरियों के द्वारा मंजरी, पुष्प या फल दिखाकर शुक्रादि पक्षियों को लुभाने का दृश्य है तो कहीं वनिताओं के केशों में गुंथे हुए मुक्ताजालों अथवा उनकी दन्त पंक्तियों के लोभी हंसों का । इसी प्रकार अशोक चम्पक, बकुल, कदम्ब आदि वृक्षों की डाली थामे सन्नतांगी रमणियों के ललित अंग विन्यासों के भी चित्रण देखने को मिलते हैं । सौंदर्य के निंद्य साधन के रूप में नारी की उपस्थिति प्राचीन जैन कला में विशेष रूप से उल्लेखनीय है । हमारे कलाविदों ने कला के उस रूप की अभिव्यक्ति को आवश्यक माना, जिसके द्वारा न केवल लोकरंजन की सिद्धि हो अपितु समाज और धर्म को निष्क्रिय एवं निर्जीव होने से बचाया जा सके । मूर्ति कला में नारो के श्री रूप की अभिव्यक्ति कर उन्होंने अपने इस स्पृहणीय उद्देश्य को चरितार्थ किया । उन पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं । कलाकारों ने प्रकृति तथा मानव जीवन इन दोनों से अलंकरण की सामग्री को जिंस खूबी से छांटकर अपनी कृतियों पर उसका उपयोग किया है वह नितांत सराहनीय है । कला के दिव्य आदर्शों के प्रेरित होकर उन्होंने सृष्टि की अपार रूप सामग्री से अपनी रचनाएँ विभूषित कर उन्हें शाश्वत रूप प्रदान किया प्राकृतिक सौंदर्य से सम्पन्न नदी, पर्वत और भरने, कमल, अशोक, नागकेशर, कदम्ब, चम्पक आदि लता वृज्ञ तथा बनों में सानन्द विच रण करने वाले पशु-पक्षी ये सभी कनाकारों द्वारा आवश्यतानुसार ग्रहण किए गए हैं । इन प्राकृतिक उपकरणों के साथ मानवी रूप का सामजस्य भारतीय शिल्पियों और विशेष कर मथुरा के कलाकारों की एक अनोखी देन है । जिस प्रकार भारतीय साहित्य में संसार को पूर्णरूप से समझने तथा जीवन का वास्तविक आनन्द प्राप्त करने के लिए प्रकृति को एक अनि वार्य अंग माना गया है उसी भाँति यहाँ के कलाविदों ने भी अपने क्षेत्र में इस तत्व को अभिव्यक्त किया है । मथुरा की कला में वेदिका स्तंभों आदि पर हमें इसके प्रत्यक्ष उदाहरण मिलते हैं । कहीं वनों में स्त्री-पुरुषों द्वारा पुष्प संचय क्रिया जा रहा है, तो कहीं fri और जलाशयों में 1 यहाँ हम एक बात का उल्लेख और कर देना चाहते हैं । वह है जैन धर्म और कला के उत्थान में महिलाओं का योग । हमारे धर्म की रक्षा एवं उसके प्रसार में समय-समय पर स्त्रियों ने जो क्रियात्मक भाग लिया वह पुरुषों से न्यून नहीं है । बल्कि कुछ बातों में तो स्त्रियों का योग पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक है । मथुरा की जैन कला मै - जो सैकड़ों कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, उनमें अधि Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * कांश कुटुंबिनी श्राविकाओं द्वारा मित्रा, कौशिकी, गृहरक्षिता, गृहश्री, ही बनवाई गई हैं। ये कलाकृतियाँ जया, जिनदासी, जीवनन्दा दत्ता, हमारी मूल्यवान निधि हैं और जब धर्मघोषा, धर्मसोभा, बलहस्तिनी, तक विद्यमान रहेंगी तब तक उन मित्रा, यशा, विजयश्री, शिवमित्रा, उदारचेता महिलाओं की मधुर स्मृति शिवयशा; सोना आदि । जिन उपजागृत किए रहेंगी जिन्होंने इहलोक देशिका भिक्षुणी आर्याओं की प्रेरणा और परलोक में कल्याण का विस्तार से कटुम्बिनी स्त्रियों ने धर्म और कला करने के हेतु धार्मिक कृत्यों को के प्रसार में भाग लिया उनके नाम निस्स्वार्थ रूप से अपनाया । मूर्तियों अभिलेखों में सादिता, वसुला, जिन- । का निर्माण कराने वाली स्त्रियों के दासी, श्यामा, धार्थी; दत्ता, धान्यलेखों में उनके परिवार वालों के श्रिया आदि मिले हैं। नाम, गुण, कुल तथा शाखा के . गुप्तकाल के बाद भी जैन कला सहित दिए हुए हैं। ये दानदात्रियों का प्रसार उत्तर भारत के अनेक ने केवल उच्च परिवारों की थीं स्थानों में जारी रहा । मथुरा के बल्कि सभी वर्ग इनमें सम्मिलित कंकाली टीले से ग्यारहवीं शती के थे । बणिक, कारूक, गन्धि, मणिकार, अन्त तक की तीर्थङ्कर मूर्तियाँ प्राप्त लोहिकार आदि विभिन्न वर्गों की हुई हैं। अन्तिम मूर्ति पर विक्रम गृहणियों ने सर्वसत्वों के हितसुख के सम्वत् ११३४ (१०७७ ई०) का लेख लिए दान देकर अपने नाम अमर है। इसके पहले की एक मूर्ति पर किए । इतना ही नहीं, नर्तकों तथा सम्बत् १०८० (१०२३ ई०) लिखा है। गणिकाओं ने भी पूरी स्वतंत्रा के इससे पता चलता है कि १०१८ ई० साथ विविध धर्मकार्यों में भाग . में महमूद गजनवी के मथुरा पर लिया। मथुरा के एक अत्यन्त संदर दुर्दान्त आक्रमण के बाद भी प्रायः आयागपट्ट का निर्माण वसु नामक ६० वर्षों तक बौद्ध स्तूप की पावन गणिका की पुत्री लवणशाभिका भूमि पर जैनकला विकसित होती द्वारा कराया गया । इसी प्रकार रही। फल्गुयश नामक नर्तक की भार्या मथुरा के अतिरिक्त उत्तर भारत शिवयशा ने एक दूसरे आयागपट्ट में अन्य अनेक केन्द्र थे, जिनमें की रचना करवाई। उत्तर गुप्तकाल तथा मध्यकाल में मथुरा के अभिलेखों में इन दान- जैन कला का विस्तार होता रहा। दात्री स्त्रियों के नाम बड़ी संख्या वर्तमान विहार तथा उत्तर प्रदेश में में मिलते हैं । इनमें से कुछ नाम ये अनेक स्थान तीर्थङ्करों के जन्म, हैं :-अमोहिनी, अचला, कुमार- तपश्चयी तथा निर्वाण के स्थान रहे Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * उत्तर भारत की जैन मूर्ति कला * ४७ हैं। अतः यह स्वाभाविक ही था कि तथा पाडस वंश के अनेक राजाओं इन स्थानों पर धर्म, कला तथा शिक्षा ने जैन कला को संरक्षण एवं प्रोत्सासंस्थाओं की स्थापना होती । हन दिया। इन वंशों के कई राजा कौशाम्बी, प्रभास, श्रावस्ती, काम्पिल्य, जैन-धर्मानुयायी थे। इनमें सिद्धराज अहिच्छत्रा, हस्तिनापुर, देवगढ़, जयसिंह, कुमारपाल, अमोघवर्ष राजगृह, वैशाली, मन्दारगिरि, पावा- अकालवर्ष तथा. गंगवंशी, मारसिह पुरी आदि ऐसे ही स्थान थे। इन द्वितीय के नाम उल्लेखनीय हैं। इन स्थानों से जैक कला की जो प्रभूत शासकों को जैन धर्म की ओर प्रवृत्त सामग्री उपलब्ध हुई है उससे पता करने का श्रेय स्वनामधन्य हेमचन्द्र, चलता है कि जैन धर्म ने अपनी जिनसेन, गुणभद्र; कुन्दकुन्द आदि विशिष्टता के कारण भारतीय लोक जैन आचार्यों को है। राज्य-संरक्षण जीवन को कितना अधिक प्रभावित प्राप्त होने एवं विद्वान आचार्यों द्वारा कर दिया था। जैन धर्म की अजस्र धार्मिक प्रचार में क्रियात्मक योग धारा उत्तर भारत तक सीमित नहीं देने पर जैन साहित्य तथा कला की रही, बल्कि वह भारत के अन्य भागों बड़ी उन्नति हुई। मध्यकाल में प्रायः को भी आप्लावित करती रही । मध्य समस्त भारत में जैन मंदिरों एवं भारतमें ग्वालियर, चंदेरी, सोनागिरि प्रतिमाओं का निर्माण जारी रहा । खजुराहों, अजयगढ़, कुण्डलपुर, इनमें से कुछ तो ललित कला की जसो, अहार और रामटेक एवं राज- दृष्टि से तथा तत्कालीन भारतीय पूताना तथा मालवामें चन्दाखेड़ी, संकृति की व्याख्या करने की दृष्टि आबू पर्वत, सिद्धवरकूट तथा उज्जैन से बड़ी महत्वपूर्ण कृतियाँ है। प्रसिद्ध जैन केंद्र रहे हैं। इसी प्रकार मध्यकालीन जैन कला में अलसौराष्ट्र, गुजरात तथा बम्बई प्रदेश करण की मात्रा विशेष मिलती है। में गिरनार, बलभी, शत्रुजय, अण- इस काल की देवी-देवताओं की प्रतिहिलवाड़ा, एलोरा और बादामी माओं में प्रधान मूर्ति के चारों ओर तथा दणिण में बेलूर, श्रवणवेलगोला परिचारक गण तथा अन्य विविध तथा हलेवीड आदि स्थानों में जैन अलंकरण बहुलता के साथ उकरे स्थापित, मूर्तिकला तथा चित्रकला मिलते हैं। तीर्थङ्कर मूर्तियों में उनके एक दीर्घकालतक प्रवर्धित होती रही। लांछन भी पाये जाते हैं, जिससे यह ___ भारत के अनेक राजवंशों ने भी जानने में आसानी होती है कि अमुक जैन कला की उन्नति में योग दिया। मूर्ति किस तीर्थङ्कर की है। अनेक गुप्त शासकों के बाद चालुक्य, राष्ट्र- तीर्थङ्कर मूर्तियों में हिन्दू देवी-देवता कूट, कलचुरि, गंग, कदम्ब, चोल इन्द्र, कुवेर, गणपति, सरस्वती, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी* . लक्ष्मी-आदि भी मिलते हैं। मध्य- संग्रह एवं प्रकाशन अभी तक नहीं कालीन कुछ जिन प्रतिमाओं में प्रभा- हो सका। मंडल तथा छत्र अत्यंत सुन्दरता के भारत में जैन कला के केन्द्रों की साथ उत्कीर्ण -िले हैं। मध्यकालीन संख्या बहुत बड़ी है । उतर भारत में सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ भी बड़ी संख्या तो ऐसे प्राचीन स्थान बहुत कम में प्राप्त हुई है। कुषाण एवं गुप्तका- मिलेंगे जहां जैन कला के अवशेष न लीन मूर्तियों की तरह मध्यकाल में मिलते हों। मुझे उत्तर भारत के भी अभिलिखित तीर्थङ्कर मूर्तियां बड़ी अनेक प्राचीन स्थानों को देखने का संख्या में मिली है। इन अभिलेखों अवसर प्राप्त हुआ है, और प्रायः के द्वारा तत्कालीन धार्मिक स्थिति सर्वत्र जैन कला को कुछ न कुछ पर बहुत-कुछ प्रकाश पड़ता है। सब कुछ सामाग्रो पड़ी मिलती है। मध्यकाल के बाद मुस्लिम शासन हाल में बिजनौर जिले के 'पारसनाथ में भारतीय कला का जो ह्रास हुआ किला' नामक स्थान में मुझे यह उससे जैन कला भी अछूती न रह देखकर आश्चर्य हुआ कि कई मील सकी। उत्तर भारत के उपयुक्त प्रायः विस्तृत इस अरण्य प्रदेश में जैन सभी कलाकेन्द्र बरबाद हो गए और कला कृतियां बड़ी संख्या में बिखरी कला का जो प्रवाह शताब्दियों से पड़ी हैं। बुंदेलखंड तथा राजस्थान चला आ रहा था वह अवरुद्ध हो के कितने ही इलाकों में सैकड़ों जैन गया। यद्यपि पश्चिम तथा दक्षिण मूर्तियां पड़ो मिलेंगी। अब आवश्यभारत में इस काल में भी स्थापत्य कता इस बात की है कि देश के एवं मूर्तिकला जीवित रह सकी, परंतु विभिन्न भागों में बिखरी हुई इस उसमें वह सजीवता तथा स्वाभा- विशाल सामाग्री को शीघ्र सुरक्षित विकता न रही जिसके दर्शन हमें किया जाय, अन्यथा इनमें से बहुत प्रारम्भिक युगों में मिलते हैं । पाषण, से अमूल्य अवशेष नष्ट हो जावेंगे। एवं धातु की बहुत सी जैन मूर्तियां जैन कला की कितनी ही सामाग्री तेहरवीं शती से लेकर अठारवीं शती अभी जमीन के नीचे दबी पड़ी है। तक की मिली हैं, जिनमें से अनेक अभी तक हमारे यहाँ उत्खनन का अभिलिखित भी हैं। इन लेखों में कार्य बहुत कम हो सका है और प्रायः विक्रम संवत् मिलता है तथा उनमें भी जैन धर्म एवं कला से संबंदाताओं के नाम, उनके गोत्र, कुल धित स्थानों पर खुदाई का काम तो प्रवर आदि भी मिलते हैं। इन लेखों नाम मात्र को ही हुआ है । अब यह में कुछ तो प्रकाशित हो चुके हैं, पर बहुत जरूरी है कि मुख्य स्थानों पर ऐसे बहुत से अभिलेख पड़े हैं जिनका [शेष भाग ३५वें पृष्ठ पर Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन, इन्दौर में स्वीकृत हुए प्रस्ताव ... प्रस्ताव सं० १ जैन मिशन का यह अधिवेशन श्री डा० कामताप्रसाद जी जैन द्वारा लगभग तीन वर्ष से देश और विदेश से किये गये जैन सिद्धान्तों के प्रचार की रिपोर्ट को तथा आय व्यय के हिसाब को स्वीकार करता है। प्रस्तावक : प्रकाशचन्द्र जी टोरिया . सर्व सम्मति से स्वीकृत समर्थक्र : मोहनलाल जी जौहरी - ह. रिषभदास रांका . ६-४-५२ ई० प्रस्ताव सं०२ जैन मिशन का यह अधिवेशन प्रस्ताव करता है कि वर्तमान समय में बिरोध, हिंसा और अनैतिकता से बढ़ती हुई अशान्ति को दूर करने के लिये सारे विश्व में अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त सिद्धान्तों का अधिकाधिक प्रचार किया जाय, जैन जनता से निवेदन करता है कि वह इन सिद्धान्तो अपने जीवन में उतारते हुए इस सम्प्रदायिक पुनीत कार्य में तन-मन-धन से सहयोग प्रदान कर मिशन के कार्यक्रम को प्रगति दें और सफल बनायें। प्रस्तावक, सत्यन्धरकुमार जी सेठ सर्व सम्मति से स्वीकृन समर्थक, मिश्रीलाल बोहरा ह० रिषभदास रांका अनुमोदक, पं० भगवानदास जी जैन ६-४-५२ ई० प्रस्ताव सं०३ अहिंसा संस्कृत के प्रचार के लिये और जनता में सांस्कृतिक भावनायें जागृत करने के लिये यह आवश्यक है कि ऐसी संस्थायें स्थापित हों जो जैन संस्कृति के वर्तमान रूप के अनुकूल हों और जो प्रचार में पूरा-पूरा सहयोग दे सकें। जिस स्थान के महानुभव इस प्रकार की संस्थायें स्थापित करें मिशन उनके कार्य में पूरा सहयोग दे। .. प्रस्तावक, पं० सुमेरचन्द शास्त्री सर्व सम्मति से स्वीकृत समर्थक, मंगलदास सेठ ह० रिषभदास रांका ६-४-५२ ई० Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी प्रस्ताव सं०४ - देश और विदेश के लोगों में जैन धर्म की जिज्ञासा बढ़ रही है और उसका वे अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें किस रूप में किस प्रकार से पत्र व्यवहार द्वारा शिक्षा दी जाय इसलिये यह अधिवेशन निम्नांकित सज्जनों की एक समिति नियुक्त करती है जो जनवरी १६५३ ई० के प्रथम सप्ताह में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी कि वह शिक्षा क्रम अमुक प्रकार का बनाया जावे । १ श्री मेथ्यू मैके इंगलैंड २ ,, लोथर वेण्डैल जर्मनी ३ , उग्रसेन जी जैन दिल्ली ,, कामताप्रसाद जो जैन अलीगंज . ,, नानकचन्द जी साधे रोहतक ६ ,, रिषभदासजी रांका। वर्धा ,, डा० मूलचन्द जी जैन इन्दौर ,रमणीर जी शाह बम्बई ६ ,, जयभगवानजी जैन, एडवोकेट पानीपत , प्रो० अनन्तप्रसाद जी जैन पटना ,, मंगलदास जी सेठ . इन्दौर ,, प्रकाश चन्द जी टोंग्या इन्दौर १३ ,, महात्मा भगवानदीन जी दिल्ली १४ ,, प्रो० श्याम सिंह जी जैन लखनऊ। १५ ,, मोहनलाल जी लूकड़ प्रस्तावक प्रकाशचन्द्र टोंग्या समर्थक, सत्यन्धरकुमार जी सेठी - -ह० रिषभदास जी रांका सर्व सम्मिय से स्वीकृत दिनांक ६-४-५२ ई० प्रस्ताव सं०५ जैन मिशन के कार्य के सुचारु चलाने के लिये इसके विधान की आवश्यकता है अतः निम्नलिखित महानुभावों की एक समिति नियुक्त करता है जो चार माह में विधान तैयार करेगा जिसे सदस्यों के पास भेज कर स्वीकृत कराया जायगा नवीन विधान स्वीकृत होने तक पहले के अनुसार जिस प्रकार कार्य हो रहा है उसे यह अधिवेशन मान्य करता है। १ श्री जयभगवान जी पानीपत २ , कामता प्रसाद जी संयोजक ३ ,, रिषमदास जी रांका mour 9 " 02424 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथम अधिवेशन के प्रस्ताव * ५१ ४ श्री रमणीक लाल जी शाह ५ ,, गुलाबचन्द जी टोंग्या प्रस्तावक-नाथूलाल जी शास्त्री सर्व सम्मति से स्वीकृत समर्थक-शान्ती भाई जी ह० रिषभदास जी रांका , मोहनलाल जी दिनांक ६-४-५२ प्रस्ताव सं०६ मिशन अपने आगामी प्रोग्राम के लिये दो बातों को अधिक आवश्यक समझता है। १-विदेशों में एक मिशन भेजने की आवश्कता २-उत्तम साहित्य के लिय प्रेस की स्थापना सं० १ विदेशों से नित्यप्रति इस प्रकार का मांग बढ़ती जा रही है, कि भारतीय विद्वानों को अहिंसा धर्म से प्रचार के लिये भेजिये इसलिये मिशन आवश्यक समझता है कि चार महानुभावों का एक मिशन विदेश जावे जो प्रत्यक्ष में वहाँ की जानकारी प्राप्त करे और जो विदेशी विद्वान अहिंसा का प्रचार कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहन दे; और अहिंसा प्रचार के लिये कार्यक्रम निर्धारित करे, उत्तम साहित्य के प्रचार के लिये यह आवश्यक है कि मिशन एक प्रेस की स्थापना करे जिसमें ट्रेक्टों का प्रकाशन और पत्रिकाओं का प्रकाशन हो । बिना प्रेस के मिशन के कार्य की वृद्धि नहीं हो सकती, इसलिये शीघ्र ही एक प्रेस की स्थापना की जाय । प्रस्तावक-रमणीक बी० शाह सर्व सम्मति से स्वीकृत समर्थक-प्रकाशचन्द टोगिया ह० रिषभदास रांका ६-४-५२ प्रस्ताव सं०७ श्री बा० अजितप्रसाद जैन एडवोकेट प्र० संपादक 'बाइस आफ अहिंसा' व 'जैन गजट', लखनऊ और श्री सेठ रावजी नेमचन्द जी शाह सोलापुर के आकस्मिक स्वर्गबास पर हार्दिक शोक प्रदर्शित कर उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट कर उनकी आत्मा को शान्ति मिशन चाहता है। ह० रिषभदास जी संका दिनांक ६-४-५२ इस प्रस्ताव को सबने मौनावस्था में खड़े होकर पारित किया। . Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्दौर-प्रवास के संस्मरण (श्री कामता प्रसाद जैन) " श्री अ० विश्व जैन मिशन को अधिवेशन करने के लिये ठीक हैं। कार्य करते हुये तीन वर्ष हो चुके थे। तेरस का जन्मोत्सव मनाकर हमारे सहयोगी संयोजक मित्रों का हर कोई उसमें सम्मिलित हो सुझाव था कि उसका एक अधिवेशन सकेगा । इन्दौर में कई स्थानों कर लिया जावे, जिसमें सभी कार्य के भाइयों ने आगे का अधिवेशन कर्तागण मिलें और समाज-नेताओं अपने-अपने यहाँ कराने की भावना से परामर्श करके आगे बढ़े। तद- प्रकट की। उन्हें चाहिये कि वे ३-४ नुसार मध्य प्रान्त के उत्साही संयो- महीने पहले से अपना निमंत्रण जक श्री प्रकाशचन्द्र जी टोंग्या ने यह भेज दें, जिससे अधिवेशन का काफी आयोजन जुटा दिया । गत महावीर प्रचार किया जा सके ! जयंती से दो दिन पहले ता०६ व ७ परिषद के जबलपुर अधिवेशन अप्रैल ५२ को इन्दौर में मिशन का के पश्चात् शारीरिक स्थिति कुछ पहला अधिवेशन और अहिंसा सांस्कृ- ऐसी हो गई कि बाहर प्रवास में जाना तिक सम्मेलन हुआ। किन्तु हमें रुक गया । इसलिये इन्दौर जाना खेद इस बात का रहा कि हमारे एक समस्या थी। उस समय जब कि वे संयोजक भाई जो एक सम्मेलन गर्मी ऊपर, घर पर कोई दूसरा पुरुष करने की बार-बार प्रेरणा कर नहीं और रोग घुसा हुआ ! फिर भी रहे थे, उसमें उपस्थित न हो, जाना तो था ही ! कर्तव्य पालना सके । कुछ तो दूरी के कारण था। डॉ० काली चरण जी सक्सेना न आये और अधिकांश वीर जयंती भी चलने को तैयार हो गये । हम की बजह से आने में असमर्थ रहे। दोनों प्रातः घर से चल दिये और अतः आगे जो अधिवेशन किया जावे शाम को मथुरा पहुँच गये । वहां से वह वीर जयंती पर न हो तो सबसे जनता एक्सप्रेस रवाना होकर प्रातः अच्छा और यदि सुविधा के लिहाज होते होते नागदा जंकशन पहुँचे । से वीर जयंती पर हो तो तेरस के जन साधारण की सुविधा और पश्चात् चौदस, पूर्णिमा और प्रति- आराम के लिये यह जनता-गाड़ियाँ पदा को रक्खा जावे | मिशन के. बहुत ही उपयोगी हैं । रेलवे कार्यकालीन वर्ष के यह अन्तिम बोर्ड इनकी संख्या और बढ़ा दे और प्रारम्भिक दिन हैं और तो ठीक है । नागदाके होते हुये Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण के પુરૂ हम लोग उज्जैन पहुँचे और गाड़ी हिन्दुत्व की लाज निवाही है। भारबदल कर दोपहर को इन्दौर पहुंच तीय वीरों ने अपने रक्त से सींच कर गये। मालव भूमि ब्रजभूमि से कुछ इस धरती की स्वाधीनता को सुरक्षित विलक्षण है और पांचाल की भूमि तो रखने का प्रयास किया। मातृ-भूमि दोनों से ही निराली है। सौभाग्य से . की छाती लाल तो हुई पर वह इतनी मुझे पाँचाल भूमि का आवास मिला विकल भी हुई कि विदीर्ण हो रही है । तीर्थङ्कर विमल श्री पावन जन्म- है-आज भी उसमें दरारें पड़े तो भमि और तपोभूमि की छाया मे आश्चये क्या ? पर उज्जैन के पास रहना सुखद और पूतकर है । यहाँ पास उसका सौन्दर्य कुछ और ही हो की भूमि हरी भरी है-आम्रवाटि- जाता है। उसके पास में नदी जो कायें उसमें ऐसी फब रहीं हैं जैसे बहती है और वह विक्रमादित्य की ताबीज में पन्ने जड़े हों। चार-चार लीलाभूमि भी है ! मुसलमानों के पाँच-पाँच मील की दूरी पर यहाँ आने के बाद तक वहाँ जैन श्रमणों गाँव बसे हुये हैं। नदियाँ बहती हैं का केन्द्र भी रहा है ! आगे इन्दौर और नहरें चलती हैं। किन्तु मथुरा अहिल्या वाई की पवित्र नगरी है की ओर बढ़ने पर यह बातें बदलने और सुन्दर भी; किन्तु उसे यूरोपीय लगती हैं। गांव भी इतने नजदीक भौतिक वाद के विषैले नाग ने डस बसे नहीं मिलते और आम्रवाटिकाओं लिया है। मिलों की चिमनियों से का स्थान करीलके वृक्ष ले लेते हैं। निकले हुए धुये के काले बादलों ने भमि भी कुछ रूप बदले हुये मिलती. उस पर अपनी छाया डाल रक्खी है। किन्तु नागदा से १-२ स्टेशन है। मुझे तो ऐसा लगा कि इसके पहले जो आँख खुली और रेल की कारण वहाँ के सामाजिक जीवन खिड़की से बाहर झांका तो मालव में विषमता अधिक है। काश मेरी भूमि की छटा ही निराली थी-आंखों यह धारणा गलत हो । वहाँ मुझे एक के सामने एक विशाल मैदान फैला नर रत्न मिला । वह मिल एरिया के हा था, जिससे दूर क्षितिज में एक चौराहे पर पानों की दुकान करता विंध्य की पहाड़ियों की एक लड़ है। सीधा-सच्चा जैनी है। सत्यप्रहरी-सी खड़ी हुई भासती थी। हिसा-अपरिग्रह को उसने मूर्तमान धरती का रंग कुछ लाल था और बनाया है-उसके चरित्र का प्रभाव उसकी छाती में दरारें बड़ी हुई थीं। लोगों पर पड़ता है, क्योंकि वह व्रत करील की झाड़ियों नहीं थीं-जहाँ पालने में दृढ़ है। अपने नियम से तहाँ एक्का दुक्का पेड़ खड़े थे। अधिक मूल्य के पान वह नहीं बेचेगा मन ने सोचा, मालव ने अन्त तक चाहे एक पान के लाख टके कोई Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ * अहिंसा-वाणी क्यों न दे ? आज की विषमता इस रात के ग्यारह बजे तक रहे ?' वह प्रकार व्रतनियमों का पालन करने हमारे तार को ठीक न समझे, यह से ही दूर हो सकती है उसका परि- अच्छा हुआ ! दिखावटी बातें चय मुझे एक अजैन वन्धु से मिला। जितनी कम हों उतना अच्छा ही है। . इन्दौर स्टेशन पर हम पहुँचे तो भाई ईश्वरचन्द जी भी आ गये। चारों ओर देखा-कौतूहल से और वे एक सेवा-भावी युवक हैं-उदीयजिज्ञासा से भी। माथा ठनका कि मान; उनका उच्च निर्मल भविष्य क्या मिशन केन्द्र में सेवा धर्म का उनके व्यक्तित्व में से झाँक रहा है। मूल्य नहीं आंका है ? यह बात हमारे डाँ० सा० इन युवकों की दिमाग में यों और आई कि साथ में लगन और कार्यतत्परता से प्रभावित डॉ० सा० थे, जो जैनधर्म की ओर हुये-विशेषतया प्रकाशचंद जी की आकृष्ट हुये हैं। सोचा, न जाने संलग्नता उनको मोह लेती थी। वह वह क्या समझेगे ? तांगावाला बार-बार कहते, 'लड़का बहुत लगन दीत वारिया ले गया, परंतु हमें ज्ञान का और उत्साही है।' । न था कि कहाँ उतरें? किन्तु भाई डॉ० हरिसत्य भट्टाचये भारप्रकाशचंद जी की सूझ ने हमारी तीय दर्शन शास्त्र के उद्भट विद्वान कठिनाई हल कर दी। मिशन की हैं। जैनदर्शन पर उन्होंक एक दो स्वागत समिति का साइनबोर्ड अपनी पुस्तकें भी लिखीं हैं। उनसे साक्षदुकान पर लगा रखा था। उसे देख त्कार भी यहाँ हुआ। उनमें क्रिया कर हम ठीक ठिकाने पहुँच गये। कांड की निष्ठा अब भी है। वह प्रकाश जी ही पहले मिले-मिलना हमसे पहले आ गये थे। उन्होंने भी वही चाहिये थे। उनके पिता जी आचार्य प्रभाचंद्र जी के 'सूत्र ग्रंथ' तो प्रेम की मूतिं मालूम हुये-तीन का अनुवाद अँग्रेजी में किया है, दिन तक उन्होंने जिस वात्सल्य और जो प्रकाशित होने को है। श्रवणके आत्मीयता का परिचय दिया वह लगोल के गत महामस्तकाभिषेकोउन्हीं के अनुरूप था। वहीं विद्वद्वर्य त्सव (सन् १६४०) के उपरान्त यहाँ पं० नाथूलाल जी शास्त्री भी मौजूद ही हमें समाज के पुराने और सच्चे थे ! बिल्कुल सीधे सादे, मैं तो कार्यकर्ता सेठ मूलचंद किसनलाल जी उनको जल्दी पहिचान भी न पाया। कापड़िया के दर्शन भी हुये। मिलते उन्हें मथुरा संघ के शिविर में देखा ही वात्सल्य उमड़ आया और हम था। भाई प्रकाशचंद जी बोले, 'आप एक दूसरे के गले लगे हुए थे। उनके कल शाम नहीं आये ? स्टेशन पर साथ चिं० डाह्याभाई और उनकी हम सब लोग आपकी प्रतीक्षा में बहू तथा बेबी बालक भी था। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * ५५ दूसरे दिन हम लोगों ने स्टेशन ज्ञान-गोष्टि में जब आप से कर्म जाकर श्रद्धेय राँकाजी और डॉ० सिद्धांत पर प्रकाश डालने को कहा नाग का स्वागत किया दोनों ही गया तो आपको कुछ अटपटा उसी ट्रेन से आये थे । रांका जी लगा-बोले 'इतिहास के विद्वान से बहुत ही सौभ्य और निर्मलस्वभाव से सिद्धांत की बात का क्या वास्ता ? के जंचे । उनको रुचि निवृतिपरक किन्तु जब आपने इस विषय पर है-जीवन के अनुभव में वह गहरे अपनी हास्यरस से छलछलाती पैठे हैं -उनकी सूझबूझ सुलझी हई वाणी का प्रयोग किया तो सभी है। इसी कारण जमनालाल जी जैसे लोग चेकित और प्रसन्न हो गये । युवक उनको घेरे रहते हैं। पहले इतिहास की रीति से ही उन्होंने गुरुओं के साथ शिष्य मंडली चला कर्म सिद्धांत का व्यवहारिक रूप करती थी। राँकाजी ने उसका स्पष्ट कर दिया। यह ज्ञान-गोष्टि आभास अपनी गोष्ठि से करा बड़ी ही मनोरंजक और शिक्षाप्रद दिया। सभी सेवा-भावी और रही-इन्दौर के कुछ अजैन विद्वान् जिज्ञासु थे और कुछ करने की लालसा जैसे प्रो० पटवर्द्धन आदि इसमें रखते थे। जमनालाल जी के मुख सम्मिलित हुए थे। पर मीठी मुस्कान उनके हृदय की जब ज्ञान गोष्टि हो रही थी तभी मिठास का आभास कराती थी और डॉ० फेलिक्स वैल्यो (Dr. Felix उनकी उग्रता युग की प्रतीक बन Valyi) भी आ गये । वह मैत्री को रही थी। साथ में भाई फकीरचंद प्रतिमा ही भासे! आते ही उन्होंने पूछा भी थे। और डाँ० नाग की सरलता कि 'मेरे मित्र डाँ० बूलचंद भी यहाँ हैं तो आश्चर्य में डालनेवाली थी। या नहीं ! और फिर वह सबसे ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का वह उद्भट घुलमिल गये जैसे अपने ही हों। विद्वान जिसे कल ही राष्ट्रपति ने विदेशी गोरा होने पर भी उनके साथ संसद का सदस्य घोषित किया, पराये जैसा व्यवहार नहीं किया गया केवल साधारण-सी वेषभूषा-कुड़ता, हमारी उदारता का प्रभाव उन के चादर और धोती में आगे आया! हृदयपटल पर हमेशा के लिये अङ्कित उनके मुखकी प्रतिभा उनके पाण्डि- हो गया है। श्रीमान् वयोवृद्ध सेठ त्य को मुखरित कर रही थी, वह सर हुकुमचंद जी से भी आपने ज्ञानबात-बात में प्रौढ़ हास का परिचय चरचा की और पूछा कि 'जब तक देते थे-बड़े ही खुश मिजाज है बच्चों को सांप से डसे जाने की वह । उनके भाषण में भी हास्य का अशंका हो और सांप को मारने से पुट लोगों का मन मोह लेता है। ही वह टल सकती हो, तो हम क्या Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिंसा-वाणी करें ? सेठ जी जैन अहिंसा का वैज्ञा- भी हो, एक मेहमान से अधिक कोई निक स्वरूप बताते हुए कहा कि और सम्बन्ध उनका मिशन से नहीं 'गृहस्थ संकल्प करके हिंसा नहीं है । अतः समाज उनको मिशन करेगा। आरंभी, उद्योगी और विरोधी का कार्यकर्ता समझने का भ्रम न हिंसा के दोष से वह बच नहीं करे। अलबत्ता मिशन यदि कहीं सकता; परंतु इनमें भी उसका भाव पर केन्द्र खोल सका तो वह डाँ० अहिंसा परक रहता है। हमारा भाव वेल्यी की विद्वत्ता से लाभ अवश्य बच्चों की रक्षा करना है-सांप को उठावेगा। मारना नहीं। अतः हमें बच्चे के सर सेठ हुकुमचंद जी का जीवन प्राणों को रक्षा हर तरह करना निवृत्तिमय हो रहा है। जब हम उचित हैं। प्रेसरिपोटरों के सम्मेलन उनसे कापड़िया जी के साथ मिले, में भी आपने भारतीय प्रेस को चेता- तब वह शास्त्र प्रवचन करके लौट वनी देते हुये कहा कि 'उसे विदेशी रहे थे। आपका सारा समय धर्मप्रेस की नकल नहीं करना चाहिये। ध्यान में बीतता है। आप की सरउसका आदर्श तो सत्य और अहिंसा लता और वात्सल्य व्यक्ति के हृदय परक होना चाहिये । उसे 'सौन्दर्य में घुस जाता है । आपने मिशन के प्रतियोगिता' जैसी खबर को महत्व प्रचारकार्य को सुनकर सराहना की। नहीं देना चाहिये-वह भारतीय आपके सुपुत्र भैय्या जी श्री राजसंस्कृति के विरुद्ध है। भारतीय प्रेस कुमारसिंह जी को नम्रता-विनयको तो अपने आदर्श से लोक को वात्सल्यादि गुण आपसे उत्तराधिकार चकित कर देना चाहिये ।” जैनधर्म में मिले हैं। हम गये तो आप बाहर पर डाँ वैल्यी के बहुत ही सुलझे हुए आकर हम सब को ले गये और प्रेमविचार हैं। अन्य यूरोपीय विद्वानों पूर्वक वार्तालाप करते रहे। समय की तरह आप भी जैनधर्म को ही की विषमता के कारण आप मिशन भारत का आदि धर्म मानते और के कार्य को, इच्छा होते हुए भी घोषित करते हैं। मिशन को वह अभी अपने हाथ में नहीं ले सके हैं। अपनी सेवायें देने को तैयार हैं। फिर भी आप मिशन के संरक्षक बने इन्दौर के पश्चात् उन्होंने बम्बई, हैं। भविष्य में मिशन के कार्य को हैदराबाद, सिकन्दराबाद और बेंग- आगे बढ़ाने में आप से पूरा सहयोग लोर में कई भाषण जैनधर्म पर दिये मिलेगा, यह हमें पूर्ण विश्वास हैं ! और लोगों को मिशन का परिचय आप के सुपुत्र भी आपके समान ही कराया। वह बेंगलोर में जैन केन्द्र वात्सल्य भावी हैं। प्रीतिभोज में आप खोलने के लिये लालायित हैं। जी सब लोग जिस प्रेम भाव से आदर Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * सत्कार में व्यस्त थे, वह बताता के शीश महल में जहाँ हम लोग था कि आप हमारे अपने ही हैं ! ठहरे थे, वहाँ से पास में ही उनका ___ मिशन की अंतरङ्ग कमेटी में शीशे का मन्दिर अपूर्व दर्शनीय है। सदस्यों और प्रतिनिधियों का उत्साह मारबाड़ी पंचालयती मन्दिर में हमें अपूर्व था। सबके हृदयों में धर्म- तपोधन परमपूज्य आचार्य अभिप्रचार की पुनीत भावना हिलोरे ले नन्दन सागर जी के दर्शन पाने का रही थी। साथ ही उनमें अपने उत्साह सौभाग्य मिला । आपका तेज और को नये नये प्रस्तावों को आगे शान्तमुद्रा मन पर अनायास ही लाकर व्यक्त करने की होड़-सी लग बीतरागता की छाप लगा रही थी। रही थी। कदाचित् प्रस्तावों के स्थान आपने आशीर्वाद दिया और मिशन पर वह प्रचार करने का उत्साह व्यक्त ' के प्रचार कार्य को सराहा । खेद है करते और स्वयं अहिंसक जीवन को कि इच्छा होते हुए भी, हम आपके उत्तरोत्तर बढ़ाचढ़ा कर विताने की उपदेशामृत का पान न कर सके ! . क्षमता तो ज्यादा अच्छा रहता! सैतवाल जैन कोलोनी में महायहां हमे उज्जैन के भाइयों के दर्शन राष्ट्रीय जैन युवकों का उत्साह सराहहुये। श्री पं० सत्यंधर कुमार जी नीय है । आप लोगों ने हिन्दी पद्य सेठी ने हमारा सब से परिचय में कीर्तन के ढंग से जैन गौरव कराया। सेठी जी उत्साह की मूर्ति गाथाओं का संकलन किया है, जिन्हें हैं और कार्य पटु भी ! यही हमें मन्द- बारी बारी से वे गाते हैं। जनता सौर के श्री पं.भगवान दास जी के पर प्रभाव डालने के लिये उनकी दशन हुये । और भी बहुत से भाई यह शैली उपादेय है। मिले परन्तु इन्दौर के भाइयों से सरसेठ जी सा० को पारमार्थिक इच्छा होते भी हम मिल न पाये- संस्थायें सुचारु रीति से चल रही खासकर श्री मित्तल जी से ! मित्तल. हैं। हमने चाहा था कि बोर्डिङ्ग हाउस जी स्व०रा० जे० एल० जैनीट्रस्ट के के छात्रों से सम्पर्क स्थिापित करें; ट्रस्टी हैं और श्रीमान् सेठ लालचंद किन्तु जब हम वहाँ पहुँचे तो छुट्टी जी सेठी के साथ उसके कार्य को के कारण छात्रगण उपस्थित न थे। आगे बढ़ा रहे हैं। मिशन के कार्य में वहाँ हमें वयोवृद्ध पं० अमोलक चंद आप सक्रिय भाग-ट्रस्ट से सहायता जी के दर्शन हुये । आप समाज के देकर-लेरहे हैं। मिशन इसके लिए पुराने कार्यकर्ता हैं-महासभा में श्राप का आभारी है। आप वर्षों पदाधिकारी रहे हैं। आप — इन्दौर के जैन मन्दिर विशाल, से छात्रों के नैतिकस्तर और धर्मभाव सुंदर और निर्मल हैं। सरसेठ जी को उठाने के विषय में चरचा हुई। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * मारने कहा कि ज़माने ने छात्रों में लेखों को पढ़कर आपने उनकी ऐसी तर्कबुद्धि जागृत की है कि प्रतिलिपियाँ तैयार कर रक्खीं हैं। उनके लिए नये ढंग का साहित्य शिवजी की एक मूर्ति बिल्कुल जैन सिरजा जाये तो भले ही वे प्रभावित तीर्थङ्कर की मुद्रा में बनाई गई है। हों। मिशन का ध्यान उस ओर है! आपसे मिलकर हमें बड़ी प्रसन्नता खुले अधिवेशन काफी सफल हुई । डॉ० वेल्यी को आपने मूर्तियों रहे। जैन और अजैन जनता पर्याप्त का महत्व बड़े अच्छे ढंग से बताया। सिंख्या में उपस्थित होती थी। विश्व- किन्तु एक बात देखकर हमें दुख शांति का जो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, हुआ कि संग्रहालय का स्थान बहुत 'उसकी गूंज भारत के बाहर जरमनी ही संकुचित है-कुछ मूर्तियां तो इगलैंड आदि देशों के प्रेस में रही। खुले में पड़ी हुई है । शासन का यहां हमें मध्य प्रान्त के प्रमुख राज कर्तव्य है कि शीघ्र ही एक नया मन्त्री श्री मिश्री लाल जी गंगवाल भवन संग्रहालय के लिए निर्माण दर्शन हये । आप बहत ही सरल कराये । साथ ही एक फोटो ग्राफर और मिलनसार है। प्रभुता की गंध भी रखे । जानता को सत्प्रेरणा देने भी आप में नहीं है-सेवाभावी हैं का यह साधन है-उसकी ओर 'आप। आप के कर कमलों द्वारा उपेक्षा नहीं होना चाहिये। अधिवेशन का . उद्घाटन किया इन्दौर में हमारे साथ दिगम्बरगया था। श्वेताम्बर-स्थानकवासी-तेरहपंथी अधिवेशन में हमें म० भा० आदि सभी जैनी सहयोग दे रहे थे। पुरातत्व विभाग के उपाध्यक्ष और सेठ मंगलदास जी आदि का उत्साह इन्दौर संग्रहालय के क्यूरेटर श्री उल्लेखनीय है। आज हम मिलकर डॉ० हरिहर जी त्रिवेदी के दर्शन ही आगे बढ़ सकते हैं। हुये । आप शिष्टाचार और प्रेम की वहां हमने यह भी अनुभव मूर्ति हैं। दूसरे दिन छुट्टी होते हुये किया कि हमारे यहाँ अच्छे वक्ताओं भी आपने हमें संग्रहालय दिखाने की की कमी है । रतलाम, मंदसौर, कृपा की ! संग्रहालय में मालव की भुसावल, खंडवा आदि के भाई अमूल्य प्राचीन कीर्तियाँ एकत्रित चाहते थे कि हम उन्हें वीर जयंती की गई हैं और उनका चयन क्रम उत्सव के लिये वक्ता दें ; परन्तु इतने और परिचय डॉ० सा० की विद्वता वक्ता नहीं थे जो सब स्थानों को 'और सूझबूझ को पद पद पर बता भेजे जाते । फिर भी रतलाम, खंडवा, रहा है। आप निरन्तर उनपर भुसावल आदि स्थानों पर विद्वान अन्वेषण करते रहते हैं, कई शिला पहुंचे थे। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * ५४ अधिवेशन में कोई अपील फंड की रथयात्राओं में हम लोग सम्मिके लिये नहीं की गई । वयोवृद्ध काप- लित हुये। डॉ० वैल्यी को हाथी पर ड़िया जीने कई दफा यह सुझाव बैठा दिया था, जिससे सब लोग रखा कि अपील की जावे, परन्तु उसे देखते थे। स्थानीय कार्यकर्ता ने उसका भार इन्दौर के सब भाइयों से विदा अपने ऊपर ले लिया । अतः अब होकर हम प्रो० श्यामसिंह जी, डॉ. उनका कर्तव्य है कि वे मिशन को सक्सेना और पं० सुमेरचन्द्र जी के अर्थसंकट से मुक्त करने का उद्योग साथ उज्जैन होते हुये वापस घर करें। __आये । उज्जैन में डॉ० नाग का सार ___ इन्दौर में सेठ कल्याणमल जी गर्भित भाषण हुआ। हम और डॉ. के उत्तराधिकारियों द्वारा चालित सक्सेना भी बोले थे । उज्जैन के मान्टेस्सरी ढङ्ग का विद्यालय अनूठा भाइयों का आग्रह था कि हम ठहरें; है। इसे देखकर हम सब को प्रसन्नता किन्तु हम ठहर न सके। इसके लिए हुई और हम लोगों ने सेठ जी की वह हमें क्षमा करेंगे। इस प्रकार सूझ की प्रशंसा की। वीर जयंती हमारा यह प्रवास सुखद रहा! अहिंसा (रचयिता-श्री महेन्द्र सागर जैन, प्रचण्डिया, 'मधुकर', बी० ए०, साहित्यालंकार) हिंसक क्रूर कुचाली मनुष्यों को, प्रेम का शान्ति से पंथ दिखाती।. . पीडित-प्राणियों को बड़े प्रेम से, पाठ सुधीरता का सिखलाती। हो न प्रसन्न कभी सुख में दुख में, दुखी होना कभी न बताती ॥ पावन मानव आतम ज्ञान के हेतु, मनुष्यों के चित्त चुराती॥ भीषण क्रोध की पोंड ती अग्नि को, शान्ति का आशव देती अहिंसा। मान से लिप्त मनुष्य को नित्य, सु-ज्ञान का भान कराती अहिंसा। लोम के बन्धन को निशि-वासर, पाठ अलोभ का देती अहिंसा ॥ माया से युक्त अँधेरे को शीघ्र, प्रभाकर-सा हर लेती अहिंसा-॥टूटे हुए उर तारों को मोद. से, जोड़ने के अनुकूल अहिसा ।। खिन्नता लाती सदा है विपन्नता, है इसके प्रतिकूल. (अहिंसा ।। प्रेम का पंथ पयान के योग्य, बताती मिटाती है शूल अहिसा॥ 'जीना जिलाना सभी को यहाँ', सिखलाती सदा यह मंत्र अहिंसाः।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन । (अहिंसा प्रचार संघ) ... मंगल-भावना कवलि-पएणतो-धम्मो मंगलं । केवलि-पएणतो-धम्मो सरणं पवजामि !' 'सारे ही देश धारें जिनवर वृष को जो सदा सौख्यकारी !' १. जैन मिशन क्या है ? के सभी देशों और लोगों से हमें मानव सामाजिक प्राणी है । सम्बन्ध स्थापित करना पड़ता है। इसलिये वह लोक के जीवों के साथ युद्ध होते हैं दूर-दूर यूरुप में अथवा पारस्परिक व्यवहार सम्बन्ध स्था- सुदूर पूर्व में, परन्तु उनके प्रभाव से पित करता है। जैनाचार्यों ने हम अछूते नहीं रहते ! इधर अंग्रेजों 'परस्परोपगृहो जीवानां' सूत्र द्वारा के शासन में रहकर हम अपने-पन इस सत्य को ही घोषित किया है। को बहुत कुछ भूल गए हैं। हमारी दैनिक जीवन में मानव को न केवल भेषभूषा और आचार-विचार एवं मानव की बल्कि पशु जीवों की भी शिक्षा-दीक्षा पाश्चात्य सभ्यता के रंग सहायता लेनी पड़ती है । अपने में रंग गए हैं। उस सभ्यता के रंग पड़ोसी से तो हमारा निकट का में जो हिंसा से ओतप्रोत है जिसका सम्बन्ध होता ही है, परन्तु अज्ञात पथ प्रदर्शन खून की प्यासी रणचंडी भाव से हमारा सम्बन्ध सात समुद्र कर रही है !: किन्तु आज पाश्चात्य पार के उन गोरे और काले लोगों से लोक इस हिंसा से घबड़ा गया है, भी होता है जो हमारे लिये दैनिक उसकी आत्मा कांप उठी है। वहाँ के जीवन की अनेक वस्तुयें बनाकर शासक नहीं, बल्कि जनता शान्ति भेजते और अपने लिए मंगाते हैं। चाहती है । वह भारत की ओर आशा अतएव हम अपने दैनिक जीवन के भरे नेत्रों से देख रही है। हमारा सम्पर्कों में न केवल अपने ही समुदाय कर्तव्य हो जाता है कि हम अपनी के लोगों के सम्पर्क में आते हैं, बल्कि 'आत्मा' को पाने के लिये और लोक आज विज्ञान के इस युग में विश्व को शान्ति का मार्ग बताने के लिये Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ६१ सच्चे ज्ञान का अर्जन और प्रसार २. हमारा प्रचारकार्य सार्वभौमिक लोक में करें। लोक को भौतिकवाद और के अंधकूप से निकाल कर अध्यात्मवाद के सुख-समतामई प्रकाश में ले इस प्रकार मिशन का उद्देश्य स्पष्ट आवें । स्वयं नमूना बनकर दिखावें। है। वह सम्यज्ञान का प्रचार करके हम नित्यप्रति भावना करते हैं कि लोक में अध्यात्मवाद को सिरजना 'सारे ही देश धारें जिनवर वृष को चाहता है, क्योंकि मानव जब तक जो सदा सौख्यकारी !' इस भावना वस्तु तत्व को नहीं जानेगा तब तक को मूर्तमान बनाने के लिये ही इस वह सुखी नहीं हो सकता ! विश्वजैन मिशन का जन्म हुआ है ! बंधुत्व की पुनीत भावना उसके भीतर १६४८ में इंगलैन्ड के दो अंग्रेज तभी जागृत होगी जब वह जानेगा बंधुओं ने लिखा कि आज यूरोप की कि वह शरीर से भिन्न चैतन्यरूप भौतिकवादी सभ्यता का दिवाला परमप्रभू परमात्मा है। सुख उसके निकल चुका है-लोग सुख और भीतर मौजूद है-दुनियाँ की बाहरी शान्ति पाने के लिये छटपटा रहे हैं! चीजें उसे सुखी नहीं बना सकती। जैन सिद्धान्त ही उनको सुख और केवल रोटी कपड़ा के प्रश्न ही उसकी शान्ति दे सकता है; आप एक जैन समस्या नहीं है। उसकी सबसे बड़ी गुरू को यहाँ भेजिये और जैन समस्या तो उसका वह अज्ञानभाव साहित्य का प्रसार कीजिए तदनुसार है जिसने मानव को दानव बना दिया 'श्री अ० विश्व अहिसा प्रचार संघ' । है और वह स्वार्थ में अंधा होकर अथवा 'दी वर्ल्ड जैन मिशन' की संग्रह करने पर तुला हुआ हैस्थापना की गई ! महान् सन्त पूज्य असंतोष की भट्टी में वह जल रहा वर्णी जी ने जब अंग्रेज बंधुओं के है । आर्थिक विषमता को वह बाहरी पत्रों को सुना तो उनका हृदय दयाद्र उपायों द्वारा दूर करना चाहता है। हो गया ! यहाँ तक कि वह स्वयं किन्तु समस्यायें सुलझती नहींविदेशों में अहिंसा का प्रचार करने उलझती जा रही हैं! कारण स्पष्ट के लिये तैयार हो गये ! किन्तु समाज है; मानव का हृदय तो कलुषित है। ने उनकी इस भावुकता का आदर संयुक्तराष्ट्र संघ में सभी राष्ट्रों को करना अपना कर्तव्य नहीं माना! प्रतिनिधित्व तक प्राप्त नहीं है। अब काश, आज जैन दर्शन के दिवाकर सोचिये, शान्ति की स्थापना कैसे बैरिस्टर चम्पतराय जी अथवा हो ? आज अहिंसा और अनेकान्त धर्मभूषण ब्र. शीतत प्रसाद जी के अचूक सिद्धान्तों द्वारा हमें मानव 'जीवित होते! के अज्ञान की धज्जियाँ उड़ाकर Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिंसा-वाणी ६२ उसका हृदय परिवर्तन करना है। जैन मिशन का जन्म इसीलिये हुआ है । वह जीवमय के सार्वभौमिक आत्मकल्याण का साधन लोक में फैलाना चाहता है - संकुचित साम्प्रदायिकता का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है। तीर्थङ्कर भ० महावीर का आदर्श उसके सम्मुख है लोक के किसी भी विश्व विद्यालय में अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया जाता ! मिशन लड़खड़ाती दुनियाँ को अहिंसा का पाठ पढ़ाकर उसके अस्तित्व को सुदृढ़ बनाने में संलग्न है । ३. यह स्वर्ण अवसर है । आप पूछेंगे कि क्या लोक अध्यात्मवाद की बात सुनने के लिये तैयार भी है ? केवल मैके और टाल्बोट का लिखना ही पर्याप्त नहीं ? इस शंका के उत्तर में हमें अपना सिद्धांत याद आता है जिसमें कहा है कि नरकों की पीड़ा का चिन्तवन भी मानव को सत्य के दर्शन कराने में कारणभूत होता है । यूरुप के भौतिकवाद ने वहाँ के जीवन को दुखी बना दिया है - यह आज सारा लोक जानता है । अतः संतृस्त लोक यदि अध्यात्मवाद (Spiritual Progress) की ओर ऋजु होवे तो यह स्वाभाविक है । यहाँ केवल एक उदाहरण पर्याप्त है । अमेरिका में बैरिस्टर चम्पतराय जी सन् १९३३ में गये थे और उन्होंने Congress of world faiths विश्वधर्मसम्मेलन में कई भाषण दिये थे, जिनके द्वारा उन्होंने सिद्ध किया था कि बाइबिल को शब्दार्थ में नहीं पढ़ना चाहिये, बल्कि उसके रहस्य को समझना चाहिये । उन्होंने बताया कि प्रत्येक जीवात्मा मूल रूप में परमात्मस्वरूप है । इसीलिये बाइबिल में परमात्मा का एक नाम 'TAM' भी है और उसमें हिंसा की शिक्षा भी श्रोतप्रोत है । उनके पश्चात् अमेरिका में उनकी शिष्या श्रीमती क्लीनस्मिथ ने School of Jain Doctrines भी चालू रक्खा था । वह स्कूल यद्यपि अधिक समय तक न चल सका, क्योंकि भारत से किसी ने उनके उत्साह को नहीं बढ़ाया । फिर भी इसका सुफल यह अवश्य हुआ कि वहाँ “I Am " Movement नामक एक संस्था को जन्म दिया गया, जिसकी शाखायें आज सारे संसार में हैं । मिसेज़ क्लीनस्मिथ लिखती हैं कि उसके सदस्यों की संख्या लगभग तीन करोड़ है । उनका विश्वास है कि वह स्वयं परमात्मरूप हैं । एवं प्रत्येक प्राणी में आत्मोन्नति करके परमात्मदशाको प्राप्त करने की क्ति मौजूद है । अतः हम सबको प्रेमपूर्वक रहना उचित है । यह लोग मांस-मदिरा, अंडे-मुर्गी नहीं खाते ! इन्होंने आत्मध्यान करने के नये नये साधन भी निकाले हैं । कहने का तात्पर्य यह कि विदेशों में सत्य की खोज नैसर्गिक रूप में हो रही हैं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ६३ और उनसे आदान प्रदान का सम्पर्क में ढूँढने में शायद ही इस धर्मनिष्ठा स्थापित करके हम अपने धर्म की का कोई व्यक्ति मिले । अतः उस महत्ता और गौरव स्थापित कर सकते समय-प्रत्येक हृदय में ज्ञान की हैं। यह सुवर्ण अवसर है। ज्योति जगा देना उचित है; उसके ४. अहिंसा प्रचार आवश्यक है। प्रकाश में वह ममुक्ष अपना दैनिक इस यग के लिये अहिंसा राम- जीवन स्वयं निर्माण करेगा। आज वाण है और उसका प्रचार किया प्रत्येक राष्ट्र नये जीवन की ओर बढ़ जाना आवश्यक है। प्रारंभ में ही रहा है। नई नई योजनायें चल रही पूना के जैन सेठ श्री धरजी भाई है। इस अवसर पर हमारा कर्तव्य जीवन मि० मैक्के से मिलने ब्राहटन यह है कि हम सम्यक ज्ञान का गये और उनके साथ रहकर उन्होंने प्रसार करें। भारत में भी नव निर्माण ट्रेक्ट बांटकर प्रचार किया। मैक्के हो रहा है। किन्तु हमारा राष्ट्र गांधी सा० के धर्मभाव और चरित्र पालन से जी की शिक्षा को भूल गया हैवह प्रभावित हुये और उन्होंने लन्दन औद्योगी करण के पीछे पागल होकर में जैन कान्फ्रेंस का आयोजन किया पश्चिम की नकल कर रहा है। यह था; किन्तु दुर्भाग्यवश कान्फ्रेंस के स्थिति भयंकर हो सकती है । हमें दो दिन पहले ही उनका लन्दन के भौतिकता की भांति extreme में अस्पताल में स्वर्गवास हो गया। नहीं फंसना है और नहीं ही अध्याउनके अतिरिक्त दिल्ली के श्री युगुल त्मवाद में ही महब हो जाना है। हमें किशोरजी, सूरत के श्री जे० टी० तो आदर्श गृहस्थ रूप में अपने नागमोदी आदि जन बन्धुगण जो विदेश रिकों को देखना है। बर्मा और लंका गए वह इन नव दीक्षित जैन बंधुओं की सरकारों ने अपने यहाँ धर्म की से मिले हैं और वे सब उनके धर्म- शिक्षा की व्यवस्था की है। भारत में भाव की प्रशंसा करते हैं। स्वंय हमारे भी शिक्षा प्रणाली बदलने की आवरस्वागताध्यक्ष महोदय श्रीमान् सेठ यकता है। गांधीजी के अहिंसावाद राजकुमारसिंह जी वयोवृद्ध जैनबंधु को जो उन्होंने जैम कधि रायचन्द्र हवंट वेरन सा० से मिलकर आये जी से पाया, आज हमारे देश को हैं। डॉ० टाल्वोट तो इतने प्रभावित अत्यावश्यक है। अतः हमें अहिंसा है कि उन्होंने एलोपैथिक डाक्टरी- धर्म का प्रचार विदेशों के साथ-साथ दवा देना ही अपने रोगियों को बंद “भारत में भी करना उचित है। जैन कर दिया है। वह प्राकृतिक चिकित्सा मिशन अपने देश को भुला नहीं के सहारे अपने अध्यात्मवल से सकती । आप देखेंगे कि उसके द्वारा रोगियों को अच्छा करते हैं। जैनों भारत में भी प्रचार किया गया है। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ अहिंसा-वाणी * ५. प्रचार साधन श्रावस्ती, श्रवणबेल्गोल, आयिका, - मिशन ने प्रचार के आधुनिक जैनीज्म ऐंड वर्ल्ड प्राँवलेम्स जैसे बड़े पुस्तकाकार ट्रेक्ट भी हैं। प्रायः साधनों का उपयोग किया है। प्रेस, सभी ट्रेक्ट समाप्त हो चुके हैं। अतः प्लेटफार्म, और रेडियो के द्वारा प्रचार का उद्योग किया गया है। उनको फिर से छपाने की आवश्यकता है। हम लेखकों और दातारों के मिशन प्रचार की विशेषता यह रही आभारी है। है कि वह अवैतनिक सेवाभावी कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया हैं। इस आगे बड़े-बड़े ग्रंथ प्रकाशित शैली से हमें कई एक उत्साही नये करने की योजना है। 'समाधि तंत्र' कार्यकर्ता मिले हैं और जैन छात्रों में प्रेस में देने के लिये तैयार है, जिसका उत्साह जगा है । जब हम स्वयं अंग्रेजी अनुवाद स्व० श्री रावजी अहिंसा आदि सिद्धांतों का पालन नेमचंद जी शाह ने किया था। उसके करेंगे तो उनका प्रभाव अन्य लोगों अतिरिक्त श्री जयभगवान जी ने पर अनायास पड़ेगा । मिशन के 'इष्टोपदेश' का अंग्रेजी में पद्यानुवाद कार्यकर्तागण केवल 'कथनी' तक बहत ही संदर किया है। श्री बी. डी. ही नहीं रहे, बल्कि 'करनी' को भी जैनी लखनऊ ने 'भक्तामर स्तोत्र' का उन्होंने अपनाया है। अँग्रेजी में पद्यानुवाद किया है । प्रो० ६. ट्रेक्ट और पुस्तक प्रकाशन अनन्त प्रसाद जी ने जैन सिद्धांत पर एक मौलिक ग्रंथ अंग्रेजी में लिखा है। ___छोटे-छोटे ट्रेक्टों द्वारा प्रचार यह सब प्रकाशित किये जाने के लिये करेने में सफलता मिली है.। प्रथम दातारों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वर्ष में ४० हजार, दूसरे में ७२ हजार वरन सा० की पुस्तक "जैनीज्म" भी और इस तीसरे वर्ष में लगभग २० छप जाती, परंतु श्री मल्लिनाथन जी हजार ट्रेक्ट छपाकर वितरण किये ने ५००) एडवांस मगांकर भी उसे गये । इनके अतिरिक्त लगभग अभी तक नहीं छपाया है। ३००००+ ३०००० = ६०००० लीफलेट भी वितरित किये गये । यह ट्रेक्ट ट्रेक्ट प्रकाशन में सर्व श्री रूपहिन्दी और अंग्रेजी भाषा के अति. चंद, जी गार्गीय, पनीपत, श्री मंदररिक्त गुजरातको बंगला, चीनी और दासजी कलकत्ता, प्रकाशचंदजी टोग्या जर्मन भाषाओं में भी छपाए गये हैं। इन्दौर , रत्नेशकुमार जीरांची, नेमिअब तक कुल ५० प्रकार के लगभग चन्द्र जी जैन बैद्य जबलपुर और दो लाख ट्रेक्ट छपे हैं, जिनमें सामा- रननजी एटा ने सक्रिय भाग लियायिकपाठ, मेरी भावना के अतिरिक्त अतः मिशन उनका आभारी है। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन के ६५ ७. पत्रिकायें जिनके नाम अन्यत्र छपे हैं । हम ___इस वर्ष मिशन ने अपनी मुख्य- इनके आभारी हैं। इसके साथ ही पत्रिकायें अहिसा वाणी और इन्दौर से भाई प्रकाशचंद जी टोंग्या वाइस आँव अहिंसा प्रकाशित की। ने 'अहिंसावाणी' पत्रिका चाल की 'वाइस' जनवरी १९५१ से आरंभ थी; किन्तु वह उसके तीन अंक ही की गई। इस एक वर्ष में ही उसने निकाल सके थे-अस्वस्थता के अपना विशिष्ट स्थान विदेशों में प्राप्त कारण उसे वह आगे न चला सके। कर लिया है । उसके लेख भारतीय इसी कारण यह पत्रिका अनियमित पत्रों जैसे 'थियोसोफिकल मूवमेंट' रूप से निकलती है। अब दो मास में उद्धत और विदेशी पत्रों में अनु. से वह ठीक समय पर निकल रही वादितकिये गये। जरमन पत्रों में है। इसका एवं वाइस का विशेषांक काफी चरचा रही। अभी स्वीटजर "ऋषभदेवाङ्क" दर्शनीय प्रकाशित लैंड के एक पत्र में भी एक लेख का किये गये हैं जो अपनी मौलिकता अनुवाद प्रकाशित हुआ है। देशी के कारण स्थायी और संग्रहणीय और विदेशी चोटी के विद्वान उसमें हो गए हैं, इसे 'कल्याण' जैसा बराबर लिखते हैं। लंदन की ब्रिटिश लोकप्रिय बनाना अभीष्ट है। म्युजियम लायब्रेरी और वाशिंगटन आगे छोटी साइज़ में और की सरकारी कांग्रेस लायब्ररी ने भी कम मूल्य में वह प्रकाशित की उसको संग्रह करने के लिये मंगाया · जावेगी और समय पर पाठकों के है। इस प्रकार की यह सचित्र पत्रि- हाथों में पहुँचेगी। उसमें १०६७॥ का एक ही है, परंतु फिर भी इसके का घाटा मुख्य केन्द्र द्वारा वहन ग्राहक कुल ३१४ हैं। यदि १००० किया गया। ग्राहक हो जावें तो इसमें घाटा न रहे । इसे १००० से १५०० की संख्या ८. जैनग्रन्थ भेंट किये गये और में छपाकर विदेशों में खूब वितरित विश्वविद्यालयों को भेजे गये। किया गया है। ग्राहकों की कमी इस वर्ष भी विविध विद्वानों के कारण इसमें केवल २६६४॥ और संस्थाओं को ग्रंथ भेजे गये; का घाटा रहा। श्री रा० ब० J. जिनमें मुख्य (१) इटली का रोम 1. Jaini Trust इन्दौर ने विश्वविद्यालय (२) अमेरिका का ३००) रु० प्रदान करके इसकी ४० न्यूमेक्सीको विश्वविद्यालय और प्रतियां देश विदेश के पुस्तकालयों , (३) जरमनी की जैन लायब्रेरी है। को भेंट में भेजी हैं ऐसे ही अनेक विद्वानों में उन सब को मिशन सेट भाइयों ने भी इसे फ्री भिजवाया है, भेंट किया गया जो भारत आये थे। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * हिंसा-वाणी ६६ बेंगलोर केन्द्र से अभिधान राजेन्द्र कोष जैसा बहुमूल्य ग्रंथ जरमनी और अमेरिका भेजा गया है । ६. साहित्य निर्माण और अन्वपेण के लिये भी साहित्य भेजा । आज नये शैली के साहित्यनिर्माण की आवश्यकता है । अतः अन्वेषणरत विद्वानों को साहित्य भेजा गया: (१) प्रो० आर्ची बह्म को 'स्याद्वाद मंजरी' आदि ग्रंथ भेजे, जिनके आधार से उन्होंने स्याद्वाद सिद्धान्त की उपयोगिता को घोषित किया है और वह Existen - ce नामक आपकी पुस्तक में उसका उल्लेख कर रहे हैं । (२) हालैंड के प्रो० बुएस "बौद्धतत्वज्ञान” पर जो पुस्तक लिख रहे हैं उसमें उन्होंने जैनधर्म पर लिखना भी आवश्यक समझा है । अतः उन्हें ब्रह्मचारी जी का "जैन बोद्धतत्वज्ञानः” आदि ग्रंथ भेजे हैं । (३) जरमनी के डॉ० बेकर को भी ग्रंथ भेजे हैं। जरमनी में प्रो० मुब्ल (Prof Gruble) मनोविज्ञान के अद्वितीय विद्वान् हैं । जरमनी की जैनलायब्रेरी से उनमें साहित्य दिया गया है । उन्होंने जैनधर्म और मनोविज्ञान पर लिखना स्वीकारा है भारत में प्रो० श्यामसिंह जी जैन, प्रिंसिपल कंचनलता शब्बर वाल आदि विद्वानों को जैन ग्रंथ " भेजे हैं प्रो० ज़िम्मरमैन ने भ० पार्श्वनाथ पर नया प्रकाश डाला है । १०. वेडगोडेसवर्ग जैन लायब्रेरी का कार्य 'सुचारु रीति से चल रहा है, जिसकी रिपोर्ट पत्रिकाओं में निकलती रही है अभी गर्मियों में जरमनी के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० हेल्मथ फॉन ग्लासनाँ भारत पधारे थे । श्री दि० जैनाचार्य सूर्य सागर जी यक्ष और आचार्य तुलसीराम जी से वह मिले थे और शंकासमाधान किया था । उन्होंने इस लायब्रेरी के महत्व को बड़े अच्छे शब्दों में बताया जिसे सुनकर आचार्य द्वय बहुत प्रसन्न हुए । फ्रेंच सरकार व जरमन सरकार ने भी इस लायब्रेरीको साहित्य भेंट किया है, जिसके लिए हम उनके आभारी हैं लायब्रेरी का अपना भवन न होने के कारण कठिनाई हो रही है । कोई दातार इसको बनवा दे तो महती प्रचार हो । ११. पश्चिमी अफ्रीका में एकरोयांग (गोलकोस्ट ) नामक स्थान पर मिशन का केन्द्र भवन बनने का आयोजन सफल हो रहा है । इसके लिए सेठ जबरचंद फूल - चन्द्र जी गोधा चेरिटेबिल ट्रस्ट के माननीय अध्यक्ष श्री फूलचंद जी गोधा ट्रस्ट फंड से पांच सौ रु० एवं श्रीमती गुलाबबाई जी ने प्रदान करना स्वीकार किये हैं । अफ्रीका के संयोजक श्री डेविड बुड Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ६७ ने केन्द्र भवन बनाने के लिये भूमि में वह ट्रेक भी पात्रों को भेंट करते का दान देना स्वीकार किया है। है । और जहाँ अवसर मिलता है. जिस समय श्री वुड महोदय अपना वहाँ भाषण भी दे देते हैं । किन्तु दानपत्र (Deed of Gift) भेज प्लेटफार्म से नियमित प्रचार तभी देंगे, उस समय श्री स्व० रा०व० जे० हो सकता है जब अपना केन्द्र हो एल० जैनी ट्रस्ट से भी भवन-निर्माण और मैक्के सा० को आजीविका की कार्य में आर्थिक सहायता प्राप्त होगी। चिन्ता से मुक्त कर दिया जावे । यह आश्वासन ट्रस्ट के सुयोग्य मंत्री जरमनी में श्री लूथर वेन्डेल सा० ने श्रीमान् बाबू जौहरीलाल जी मित्तल और अमेरिका में श्री ज्ञानेन्द्र जी ने सा० ने दिया है। हम मित्तल सा० भाषण दिये थे। पश्चिमी अफ्रीका के अत्यन्त आभारी हैं। एवं उपरोक्त में श्री वुड ने कई मीटिंग करके दातारों की दान शीलता की प्रशंसा अहिंसाधर्म पर भाषण दिये, जिस करते हुये उनका आभार मानते हैं। से २० व्यक्तियों ने शाकाहार करना यदि अन्य धनिक भाई इनका अनु- स्वीकार किया। करण करें तो लन्दन में भी केन्द्र भवन १३. भारत में भी प्रेस और बन जावे और जरमनी की जन प्लेटफार्म से प्रचार किया गया लायब्रेरी का अपना भवन हो जावे ! १२. विदेशों में प्लेटफार्म से पुस्तकालय खोले गए। प्रचार। . यद्यपि भारत में भी मिशन का यद्यपि अर्थभाव में मिशन मि० एक भी पेड प्रचारक नहीं है तो भी मैक्के को अजीविकोपार्जन की चिंता अवैतनिक स्वेच्छा से सेवारत युवक से मुक्त करके प्रचार कार्य में निरत संयोजक महोदयों ने प्रचार किया; न कर सकी; फिर भी मैक्के सा० के जिसकी तालिका निम्न प्रकार है:अहिंसक जीवन व्यवहार का प्रभाव (१) पटना में प्रो० अनन्तलोगों पर पड़ा। डॉ० टाल्वोट, कवि प्रसाद जी जैन मिशन कार्य में सदा मैन्सेल, श्री हडसन आदि बंधुगण जागरूक रहे और प्रचार किया । जैन जीवन का अभ्यास कर रहे हैं। आपके ही सुझाव पर बनारस विश्व उनका समाज में यह अहिंसामय विद्यालय के उदीयमान स्नातक जीवन निराला है; इसलिये हर किसी बाबू श्री प्रकाश जी जैन ने बारा, - का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट होता गया आदि स्थानों में जाकर प्रचार है। लोग उनसे चरचा करते हैं और किया। कोई कोई अहिंसक जीवन विताने (२) झूमरी तलैया में श्री पं० का प्रयत्न करता है। इन चरचाओं गोविन्दराय जी शास्त्री जैन और Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * अजैन जनता में अहिंसा भाव जागृत है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। करने के लिये प्रयत्नशील रहे। इन्दौर में मिशन का जो सफल अघि (३) नवाई-(जयपुर) में श्री वेशन हुआ, वह आप लोगों की लगन पं० राजकुमार जी शास्त्री, चेयरमैन का द्योतक है। आप ही की प्रेरणा म्यु० बोर्ड ने मीटिंग करके प्रचार से हमारे श्वे. जैन बन्धुगण सेठ किया और देहात में घूम कर भी मोहन भाई जी जोरी, मङ्गलदास जी अहिंसा का महत्व बताया । अजैन सेठ, एवं इन्दौर के प्रमुख रईस भाइयों को भी अपने प्रचार में योग श्रीमान् दानवीर रा०व० सेठ राज देने के लिए आकृष्ट किया। कुमार सिंह जी प्रभृति सज्जनों का (४) जयपुर-में श्री हर्षचन्द जी सहयोग मिशन को प्राप्त हुआ ? उन्हीं ठोल्या ने कुछ प्रचार किया । यहाँ के कारण अधिवेशन विशेष सफल काफी प्रचार हो सकता है। हुआ। (५) रांची-(विहार) में श्री (६) सिरोंज (राज.) के उत्साही रत्नेशकुमार जी और श्री गुलाबचंद कार्यकर्ता श्री निर्मल कुमार जी ने जी ने प्रचार किया और मीटिग की। ग्रामों में घूम-घूम कर प्रचार किया देहात के लोगों से मांस-मदिरा और लोगों से मद्य-मांस का त्याग छुड़ाया। कराया। श्री जयकुमार जी वैद्य ने भी (६) उज्जैन में श्री पं० सत्य- सहयोग प्रदान किया। श्री स्वतंत्र न्धरकुमार जी सेठी ने प्रचार किया जी के सभापतित्व में एक आम सभा और घूम कर पुरातत्व का पता करके प्रचार किया गया । जैन लाय. लगाया एवं गावों में प्रचार किया । ब्रेरी चालू की गई। (७) मन्दसौर में श्री पं० भगवान (१०) दिल्ली में श्री पं० सुमेर दास जी एवं सेठ लक्ष्मी लाल जी चंद जी जैन शास्त्री ने प्रचार किया। सेठी ने प्रचार किया। जो विदेशी विद्वान जैसे डॉ० ग्लास्नय (E) इन्दौर में श्री प्रकाशचन्द्र आदि आए उनसे चरचा की और जी टोंग्या के अपूर्व उत्साह से मध्य साहित्य भेंट किया। नई दिल्ली में भारत मिशन केन्द्र का संगठन जैन बुक एजेन्सी के मालिक श्री एस० हुश्रा । श्री ईश्वर चंद जी बड़जात्या पी० जैन ने बड़े उत्साह से लोगों के सहयोग से आपने इन्दौर एवं को मिशन की ओर आकृष्ट किया। आस पास के स्थानों में प्रचार अपील छपवाकर वितरण की और किया । आपके पिता जी श्रीमान् वाइस एवं अ० वा० के ग्राहक बनाये। सेठ गुलाब चंद्र जी टोंग्या सा० ने हंगोरियन ट्रेड कमिश्नर प्रभृति महानुमिशन कार्य में जो सहयोग दिया भावों की अहिंसा-विषयक शंकाओं Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन का समाधान कराया । आपका उत्साह पूर्व है । श्री जे० पी० जैन ने भी सहयोग प्रदान किया । (११) पानीपत के उत्साही संयोजक श्री रूपचंद जी गार्गीय ने प्रचार में पूर्ववत् भाग लिया, यद्यपि आप का स्वास्थ्य इस वर्ष ज्यादा ठीक न रहा । श्री जयभगवान जी ने साहित्य निर्धारण में पूर्ण सहयोग दिया । (१२) मेरठ में श्रीमती शान्ति कुमारी जी ने अपनी सखियों में साहित्य वितरण किया एवं विशेष जिज्ञासुत्रों जैसे डॉ० ऐहबे और श्री मेहरा को जैन सिद्धान्त के गहन ग्रंथ मिशन केन्द्र से मँगवा कर पढ़ने के लिये दिए । (१३) रोहतक में श्री बाबू नानक चन्द्र जी एडवोकेट ने 'वायस' का प्रचार करने में सहायता दी एवं प्रचार किया । (१४) बनारस में श्री नेमि कुमार सम्मेलनों में साहित्य वितरण किया । (१५) एटा में उत्साही युवक श्री रतन जी ने उत्साह से प्रचार किया और पंचकल्याणकोत्सव पर मिशन केन्द्र का उद्घाटन उत्सव रा० सा० श्री सेठ मटरूमल जी बेनाड़ा के सभापतित्व में सम्पन्न कराया । उसी समय अपनी साहित्य प्रदर्शनी भी रक्खी थी, जिसका प्रभाव शिक्षित जैन जनता पर अच्छा पड़ा था । (१६) कासगंज में श्री गिरीचंद्र ६६ जी पूर्ववत् कार्य कर रहे हैं । प्रचार प्रगति बढ़ाने की आवश्यकता है । (१७) टूंडला में श्री जिनेन्द्र प्रसाद जी B. Sc. उत्साह से कार्य कर रहे हैं। आपने आस पास जाकर प्रचार किया तथा टूंडला में जैन मिशन लायब्रेरी स्थापित कर के उसके द्वारा प्रचार किया है। (१८) शिकोहाबाद में श्री पुष्पेन्द्र जी उत्साह पूर्वक प्रचार कर रहे हैं । आपके उत्साह से कई जैन बंधुत्रों ने मांसमदिरा का त्याग किया है। एक काछी नियमित रूप से जैन नियमों का पालन करता है । (१६) आगरा श्री राजकुमार जी जैन और श्री मोती चन्द जी जैन प्रचार करने में संलग्न रहे । रा० सा० सेठ मटरूमल जी पहले से ही मिशन की ओर आकृष्ट है । (२०) कानपुर में श्रीमान् बाबू इन्द्रजीत जी वकील के उत्साह से सदस्य संख्या बढ़ रही है । श्रीमान् ला० कपूर चंद जी पहले ही से मिशन को सक्रिय सहयोग प्रदान कर रहे हैं। आशा है, कानपुर में मिशन का नियमित केन्द्र कार्य करने लगेगा और जैन मिशन लायब्रेरी भी स्थापित हो सकेगी । (२१) देहरादून में श्री नरेन्द्र कुमार जैन ने ट्रेक वितरण करके प्रचार किया । (२२) जियागंज ( मुर्शिदाबाद) के Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० . * अहिंसा-वाणी* जैन युवक मंडल ने सहयोग प्रदान प्रोग्राम होता है, उसे रोचक और करके प्रचार किया। आकर्षक बनाने के लिए प्रयत्न किया (२३) कलकत्ता में श्री जयकुमार गया । योग्य जैन विद्वान अपनी जी और श्रीमंदरदास जी ने ट्रेक्ट रचनाओं के द्वारा इस प्रसार कार्य में वितरण किये । श्री डूंगरमल जी सहयोग दें। श्री भूषण प्रसाद जी ने डुंगरेश ने भी ट्रेक्ट छपवाये और हिलवर सम (हालेंड) रेडियो से वितरण किये। एवं प्रो० रामसिंह जी तोमर ने रोम (२४) बेगलौर में श्री के० पारस रेडियो से प्रचार किया। मल और भूरमल जी जैन ने प्रचार (१५) सहयोग और सदस्य ।। . किया और उत्सवों में साहित्य वितरण किया। श्री भूरमल जी ने बाहर ___ संक्षेप में सन् १९५१-५२ के प्रवास में घूम घूमकर प्रचार किया। तृतीय वर्ष के प्रचार की यह ऊपर (२५) कलपट्टा (मलाबार) में श्री रेखा है, जिसका विशेष विवरण डी० जिनचन्द्रय्य जी ने मिशन का समय २ पर पत्रिकाओं में पाठकगण केन्द्र स्थापित करके प्रचार किया। पढ़ते रहे हैं। यह पहले ही बताया - जा चुका है कि यह प्रचार कार्य अवैत (२६) धर्मस्थल (द० कनाड़ा) में श्री मा० वर्द्धमान हेग्गडे ने प्रचार निक सेवाभावी कार्यकर्ताओं द्वारा किया। किया गया है। निस्सन्देह मिशन के (२७) उदयपुर में श्री मोती लाल कार्य की सराहना प्रत्येक व्यक्ति ने जी ने सदस्य बनाये। की है; परन्तु सक्रिय सहयोग मिशन __(२८) दोघट (मेरठ) में श्री धर्म को बहुत ही थोड़े लोगों से मिला है। यदि समाज ने पूरा सहयोग दिया पाल जी ने प्रचार किया। , इस प्रकार इन सेवा भावी सह होता तो इससे कहीं ज्यादा कार्य किया योगियों द्वारा मिशन का प्रचार किया गया होता। गत महावीर जयन्ती गया। जिसके लिए हम उन सब के (ता० अप्रैल ५२) तक साधारण सदस्यों की संख्या कुल १६०+२८आभारी हैं। मिशन का एक व्यापक कार्यक्रम बन गया है-संयोजक गण २१८ के लगभग रही । इन्दौर और एवं सदस्य महोदय उसको कार्य रूप पानीपत केन्द्रों के सदस्यों की संख्या इसमें सम्मिलित नहीं है। इस वर्ष में लायें तो स्वयं उनका एवं दो लोक . निम्नप्रकार विशेष सदस्य बने :-- का कल्याण हो। (१४) रेडियो द्वारा प्रचार (१) विशेष सहायक गणः आल इंडिया रेडियो के प्रायः १. श्रीमान् जगत सेठ बसन्तलाल सभी केन्द्रों पर जो वीर जयन्ती- जी जैन, बाँकीपुर, पटना ४, ३५०) Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ७१ २. श्रीमान् प्रागदास कामता प्रसाद जैन, अलीगंज (एटा), रु० ५०७) (२) आजीवन सदस्य गण:१. श्री सेठ हीरालाल जी जैन, नवाई (जयपुर)-२६-४-५१ रु० १५१) २. श्री सेठ गणपतराय जी सेठी, लाडनं (राज०) २७-४-५१ रु० १०१) , प्रो० श्यामसिंह जी जैन, लखनऊ २४-६-५६ ,, १५१) । ४., दि० जैन पंचायत, मारवाड़ी टोला, गया ८-११-५१ ,, १५१) ,, सेठ सर भागचंद जी सोनी, अजमेर २३-१२-५१ ,, १५१) ,, भंवरलाल जी डोल्या, बम्बई २५ १६-२-५१ ,, ३०) (शेष रु० आने को है) ७. ,, इन्द्रजीत जी जैन, वकील, कानपुर , १४-३-५२ ,, १५०) - इस प्रकार गत वर्ष से सदस्यों लाखों पशुओं को प्राणदान दे रहा की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है, बल्कि है,. उसका श्रेय भी तो सदस्यों को पुराने सदस्यों में से अधिकांश है। कुल रु० की नन्ही-सी आय में दूसरे व तीसरे वर्ष सदस्य नहीं रहे। उच्चकोटिकी दो पत्रिकाओं का यह ठीक है कि पहले वर्षों में जितना प्रकाशित करना, दस प्रकार के ट्रेक्टों साहित्य उनको दिया जा सका, को, छपाकर वितरण करना केन्द्रों उतना तीसरे वर्ष में नहीं भेजा जा' पुस्तकालय खुलवा कर साहित्य सका। 'अहिंसावाणी' भी नियमित खरीद कर भेजना एवं विदेशी रूप में प्रकाशित नहीं हुई । किन्तु विद्वानों और विश्वविद्यालयों को मिशन की यह कमियां क्षन्तव्य हैं, उच्च जैनग्रंथ भेजना आदि अनेक क्योंकि मिशन के पास कोई फंड ठोस कार्यों का किया जाना, अपनी नहीं है जिससे वह मनमाना साहित्य विशेषता रखता है। अतः मिशन के छापे । और तो और मिशन कार्यालय, सदस्य तो अधिक से अधिक संख्या के लिये एक नियमित क्लर्क रखने में बनना चाहिये । सदस्य बनने से में भी वह असमर्थ है। संचालक आपको स्वयं भी ज्ञानार्जन और महाशय ही को यह सब व्यवस्था चारित्रपालन की ओर अग्रसर होना करनी होती है। उस पर सदस्यता पड़ता है । केवल 'कथनी' नहीं, शुक्ल की तुलना साहित्य से करना 'करनी' भी वाञ्छनीय है। सदस्यों भी नहीं चाहिये । सदस्य तो प्रचार की संख्या बढ़ाने में केन्द्रों के संयोके लिये बनता है- अहिंसा की जक, महोदयों एवं अन्य महोदयों ने ज्योति देशविदेश के लोगों के हृदयों -जो सहयोग दिया है, उसके लिए में मिशन जगा रहा है और अनेक मिशन उनका आभारी है । शेष व्यक्तियों को निरामिषभोजी बनाकर रोकड़ भी 'वाइस' और 'श्रा० वा०' Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी * के ऋषभदेव विशेषांकों में व्यय हो चुओं ने संयमी जीवन धारण किया गई है। मिशन के पास कोई निधि और अनेक शाकाहारी बने । नहीं है। अतः सहयोग देकर उसे (१७) आवश्यकतायें आगे बढ़ाइये। मिशन का 'अखिल विश्व' नाम (१६) प्रचार का परिणाम । सार्थक हो एवं लोक की सची सेवा मिशन प्रचार का अच्छा परिणाम हो, इसलिए निम्न आवश्यकताओं दृष्टिगोचर होने लगा है। भारत की पूर्ति होना आवश्यक है :में वे जैन युवक एवं अजैन बन्धुगण, (१) भारत में दिल्ली, बम्बई जो जैन सिद्धान्त से अपरिचित थे आदि स्थानों एवं विदेशों में लन्दन, और उसके नाम से मह बिचकाते न्यूयार्क आदि नगरों मे मकान खरीद थे, अब जैनधर्म का अध्ययन करने कर जैन केन्द्र खोले जावें; जिनमें के लिये ऋजु हुये हैं। उनमें श्रद्धा पुस्तकालय, औषधालय, सभा भवन और ज्ञान पिपासा जागृत हुई है। और प्रार्थना मन्दिर हों। विदेशों में जैनसिद्धांत का ज्ञान भी (२) भारत के किसी भी केन्द्र फैलने लगा है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्मे- में 'अहिंसा विश्वविद्यालय की स्थालनों में अब जैन धर्म की गिनती पना की जावें। 'प्रमुख' Major धर्मों में की जाने (३) जैन विद्वानों और त्यागी लगी है। मिशन काये का एक परि- महानुभावों का मिशन सभी देशों में णाम यह भी हुआ कि अंग्रेजी चीनी, अहिसा धर्म का प्रचार करने के लिये जरमन आदि भाषाओं में भी जैन भेजा जावे। विद्वानों को विशेष रूप साहित्य उपलब्ध हुआ है। विश्व में प्रचारक तैयार किया जावे। . साहित्य में जैनधर्म विषयक मौलिक . (४) श्री मैथ्यू मैक्के, श्री लोथर रचनायें रची गईं और अहिंसा ,वेन्डल आदि नवदीक्षित जैन बन्धुओं सिद्धांत का ऊहापोहात्मक विवेचन को भारत बुलाकर जैनधर्म की विशेष भी किया गया। हिन्दी में भी नया शिक्षा दी जावे तथा. उन्हें World साहित्य सिरजा गया। देश-विदेश Missionary विश्व - प्रचारक के छात्रों एवं विद्वानों में अन्वेषण नियुक्त किया जावे। ( Research ) के लिये जैन इसके अतिरिक्त एक जैन शिक्षा सिद्धांतों को अपनाया तथा न्यूमेक्सि- कोर्स चालू किया जावे, जिससे को के विश्वविद्यालय आदि में जैन- जिज्ञासु लोग घर बैठे डाक द्वारा फिलासफी का अध्ययन सुविधा से जैनधर्म और अहिंसा संस्कृति का होने लगा है। इंगलैंड, इटली, अमे- ज्ञान प्राप्त कर सके। इस कोर्स की रिका जरमनी आदि में कई मुमु- रूप रेखा विद्वज्जन बनावें । यह श्राव Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन श्यक कार्य हैं जिनकी पूर्ति से स्थायी और ठोस धर्म प्रभावना हो सकती है । दातारों को ध्यान देना उचित है। जैन मन्दिरों में संचित फंड इस कार्य में व्यय किया जावे तो और भी अच्छा है 1 मिशन का सङ्गठन मिशन के विधान में समाज के सच्चे सेवक अनुशासन और संगठन द्वारा सेवा धर्म का पालन करें, इस बात का ध्यान रक्खा गया है। प्रमुख संचालक के नेतृत्व में प्रादेशिक एवं स्थानीय संयोजकगण सभी कार्य करते हैं, जिनके कार्यकाल की अवधि तीन वर्ष है । सदस्यगण बहुमत से कार्यकर्ताओं का चुनाव आदि करने अधिकारी हैं। तृतीय वर्ष निम्न० कार्यकर्त्ताओं ने मिशन कार्य को आगे बढ़ाया : – सम्माननीय संरक्षक - श्रीमान् दानवीर सेठ गुलाब चन्दजी टोंग्या, इन्दौर प्रधान संचालक श्री कामता प्रसादजी जैन, अलीगंज, श्री इन्द्रजीत जी वकील, कानपुर । प्रादेशिक संयोजक गण : [१] उत्तर प्रदेश - श्री शान्ति चन्द्रजी बिजनौर, श्री रतन जैन एटा, श्रीमती शान्तिकुमारी जी मेरठ, श्री प्रेमचन्दजी खतौली, श्री शिखरचन्द जी बड़ौत, श्री प्रो० सुल्तानसिंहजी, शामली, श्री गिरीशचन्द्र जी कासगंज श्री नरेन्द्र कुमार जी देहरादून, इन संयोजक महानुभावों ने अपने अपने क्षेत्रों में सदस्य बनाये व प्रचार किया। १० उनके अतिरिक्त राय साहब सेठ मटरूमलजी बैनाडा, आगरा, श्री प्रो० श्यामसिंहजी जैन लखनऊ एवं श्री नेमीचन्दजी वकील सहारनपुर ने भी प्रचार ने पूर्ण सहयोग दिया । मिशन उनका अभारी हैं। [२] दिल्ली प्रान्त - पं० सुमेरचन्दजी जैन शास्त्री और श्री राजारामजी जैन, नई दिल्ली । [३] पंजाब - श्री रूपचन्द जी . गार्गीय जैन, पानीपत । बाबू श्री जय भगवानजी का सहयोग उल्लेखनीय रहा । [४] राजपुताना श्री पं० राजकुमारजी जैन, शास्त्री, चेयरमैन म्युनिसिपल बोर्ड नवाई, श्री कुंवर हीराचन्दजी बोहरा, बी० ए०, प्रजमेर, और श्री हरिश्चन्द्रजी ठोल्या जयपुर । श्री निर्मलकुमार जी जैन सिरोंज । श्री माणिकचन्द्र जी नसीरा बाद | [५] मध्यभारत - श्री प्रकाशचन्द्र जी टोंग्या एवं श्री ईश्वरचन्दजी बड़जात्या, इन्दौर; श्री सत्यंधरकुमारजी सेठी, उज्जैन । श्री नाना लाल केशरी मलजी मेहता, एडवोकेट, झाबुआ, श्री सेठ लक्ष्मीलाल जी सेठी मंदसौर और श्री लाडली प्रसादजी, सवाई माधोपुर - स्थानीय संयोजक गण रहे । [६] सौराष्ट्र- प्रथम वर्ष में सेठ मूलचन्द किसानदास जी कापड़िया, सूरत रहे । उपरान्त उनको अव Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___* अहिंसा-वाणी के कास नहीं । उनके स्थान पर अब स्तीपुर), श्री रत्नेश कुमार और श्री श्री पं० सिद्धसेन जी गोपलीय ने गुलाब चंदजी रांची। प्रचार कार्य संभाला है। इन कर्मठ वीरों के सहयोग और [७] महाराष्ट्र-श्री प्रो० डा० सेवाभाव के लिए मिशन अाभारी विलास संघवे ने उनका धारवाड़ हैं। सेवा-भावी जैनों के लिये कार्य श्री तवनप्पा की क्या सनवर, हलो। करने के लिये यह क्षेत्र है। मिशन 17 हैदराबाद स्टेट-श्री वी०- उनको निमंत्रण देता है कि वे आगे पी० कोठारी, वकील गुलवर्गा। आवें और कार्य करें ! [६] बम्बई प्रान्त-श्री रमणीक विदेशों में मिशन के प्रतिनिधिगण र० शाह, वकील, बम्बई ने प्रतिनिधि विदेशों में प्रचार करने के लिये रूप में यथासंभव सेवा करने का मिशन का कोई वैतनिक कार्यकर्ता उत्साह प्रगट किया है। नहीं है। बल्कि नवदीक्षित जैन बन्धु(१०) मध्यप्रान्त-श्री ज्ञान चन्द्र गण अथवा प्रवासी भारतीय जैनाजी जैन, वकील नागपुर और श्री जैन बन्धुओं के मिशन को प्रचार शान्तिकुकार डवली देवगांव राजा। करने में पूर्ण सहयोग दिया-अतएव (११) दक्षिण कर्णाटक-श्री के० मिशन इन सभी महाभावों का अत्यभुजवली शास्त्री, मूढविद्री । श्री वर्द्ध- न्त आभारी है:मान हेगड़े ने भी प्रचार किया। (१) अफ्रीका में श्री चैतन्यलाज एतदर्थ मिशन उनका अभारी है। जी, और, श्री के० पी० शाह नैरोवी (१२) मद्रास-मैसूर-स्टेट-श्री तथा गोल्त-कोस्ट के श्री डेविड बुड । के० पारसमलजी बैंगलोर और श्री (२) अमरीका के संयुक्त राज्य डी० जिन रोजेया कलपट्टा उत्साह में श्री ज्ञानेन्द्रजी, प्रो० बम, श्रीमती पूर्वक प्रचार कर रहे हैं। क्लीनस्मिथ और . कुमारी वीणा . (१३) बङ्गाल-श्री कैलाशचन्द्रजी बूलचन्द । जैन, एम० ए० कलकत्ता और श्री . (३) आस्ट्रेलिया-श्रीमती मैकश्रीमन्दर दासजी जैन, कलकत्त।। ड्गल, इप्सविच ।। श्री जयकुमारजी कलकत्ता ने भी सह- (४) इंगलेन्ड-श्रीमती चीयनी योग प्रदान किया है । धन्यवाद। श्रीमती कमलावती जैन, श्रीमती मैथ्यू (१४) विहार-श्री अतन्त प्रसाद मैक्के डा० टाल्वोट ओर कवि फ्रन्क जी जैन, B. Sc. ( Eng.) पटना। मैन्सेल! श्री पं० गोविन्दरामजी जैन शास्त्री (५) इटली-श्री रिचर्डो रिचर्डली झूमरीतलैया श्री परमेश्वर लालजी (६) जरमनी-श्री लोथर वेल्डेल जैन 'सुमन' साहित्यालंकार, (सम- बैड गोड्सवर्ग . HEARTHHTHER Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * (७) फ्रान्स-श्री फ्रान्सिस, होना स्वीकार किया। इसी अवसर पर नेनटिस श्रीमती गुलाब बाई सा० डोसी इन्दौर () हालेन्ड-ती भूषण प्रसाद ने भी अफ्रीका केन्द्र के लिए १.०१) जी जैन, हेग । दान स्वीकृत किया है। इसके पूर्व इस उपसंहार वर्ष में श्री जवरचन्द फूलचन्द गोधा ___ संक्षेप में मिशन के कार्य का यह . . ट्रस्ट इन्दौर ने हमें ५००) अफ्रिका में तीसरे वर्ष का सिंहावलोकन प्रसतुत केन्द्र स्थापनार्थ प्रदान करके हमारे है। लोक कल्याण के लिये कितना उत्साह को बढ़ाया है। अधिवेशन के विशाल क्षेत्र पड़ा हुआ है। अतः : समय १६५६॥) प्राप्त हुए हैं। हम सभी मिशन को सहयोग दीजिये और महावीर के सिद्धान्त प्रसार मे सहा- दान दाताओं को धन्यवाद देते हुए आगे भी इसी प्रकार सहायता प्रदान यक बनिये। करते रहने की आशा रखते हैं । गत वर्ष हमने अहिंसा सप्ताह भी मनाया के लिये क्षमा चाहते हैं। . विनीतः- था । अहिंसा-वाणी के खर्च एवं कामता प्रसाद जैन अधिवेशन खर्च के कारण सा० रिपोर्ट मध्यभारत शाखा __ आखिर में ३७३॥) का घाटा रहा। -- (अ० विश्व जैन मिशन इन्दौर)। - मैं श्रीमान् मशीर बहादुर जैन रत्न तृतीय वर्ष में म० भा० जैनमिशन सेठ गुलाबचन्दजी टोंग्या का पूर्ण ने काफी प्रचार कार्य किया। मध्य- आभारी हूं जिनकी देखरेख एवं निर्देशन भारत शाखा ने 'अहिंसावाणी' को में मध्यभारत शाखा इतनी जल्दी जन्म देकर उसके तीन अंकों का प्रगति करती जारही है। सेठ मंगलदास , प्रकाशन-व्यय स्वयं वहन किया । जी, जाहेरी मोहन भाई जी, रतनमिशन के प्रथम अधिवेशन का आयो- चन्द जी काठोरी एवं सभी सहायक जन भी उसने किया, जिसमें ६६४) को धन्यवाद देता हूँ। विशेष रूप रु० आमदनी से अधिक खर्च हए में भाई ईश्वर चन्द जी बडजात्या है । यह अधिवेशन काफी सफल रहा B. Com. साहित्य रत्न का आभारी और उसकी सफलता का श्रेय श्रीमन्त हूँ जिन्होंने पूर्ण रूप से नगर संयोजक भैय्या सा० राजकुमारसिंह जी का काम निभाया है।। काशलीवाल को हैं, जिन्होंने हमारी - मैं मध्यभारत की जैन एवं अजैन प्रार्थना को स्वीकार करके स्वागता. समस्त सत्य-अहिंसा प्रेमी जनता से निवेदन ध्यक्षस्त भार वहन कर हमारे कार्य करता हूँ कि 'मिशन' को अपनावें तथा को सुचारु रूप से पूर्ण किया। इसी हमारे कार्यों को अपना कार्य समझ कर अवसर पर आपने मिशन का संरक्षक विश्व में अहिंसा-प्रचारार्थ तन-मन-धन Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी* से योग दें। १०. ,, मदनमोहन सहाय सिनगव - एक बार में पुनः समस्त सहायक तथा इंसपेक्कर सहयोगी बन्धुत्रों का श्राभार मानता हूँ। ११. ,, एस० एस० कापूर, डिप्टी प्रकाशचन्द्र टोंग्या, संचालक म० भा० ___कण्ट्रोलर आदि। कार्य विवरण टँडला केन्द्र समय समय पर फिरोजाबाद, (989-4) सिकोडाबाट आदि स्थानों पर पचार सिकोहाबाद आदि स्थानों पर प्रचार दिनांक ६ अक्टूबर ५१ को कार्य भी किया और मिशन के सदस्य स्थानीय मेले के सुअवसर पर जैन तथा V. O. A. के ग्राहक बनायें । मेला पंडाल में सी अखिल विश्व महावीर जयन्ती जैन मिशन, टंडला केन्द्र का प्रथम वर्षिक अधिवेशन हुआ । उपस्थित दिनांक ८ अप्रैल ५२ को स्थाजन समूह को मिशन के उद्देश्य व नीय श्री दि० जैन वीर सेवा मंडल के नीति से परिचित कराया गया तथा सहयोग से खूब शानदार ढंग से स्थानीय केन्द्र द्वारा किये गये कार्यों मनाई, प्रातः काल प्रभातफेरी निकाली तथा सांय पबल्कि धर्मपर प्रकाश डाला गया, जनता बड़ी प्रभावित हुई। सभा में श्री जी० पी० नियोगी A. - निम्नलिखित अजैन महानुभावों M. O. की अध्यक्षता में एक सभा को उनकी जैन धर्म विषयक जिज्ञासा हुई। जिसमे जैन जैनेतर विद्वानों ने को पूर्ण करने के लिये जैन ग्रंथ, भगवान महावीर एवं जैनधर्म पर. . साहित्य आदि निरंतर पढ़ाया गया। अपने उद्गार प्रकट किये। बाहर से समय-समय पर मिशन के ट्रैक्ट भी- आये वक्ताओं में से श्री बलभद्र जी भेंट किये गये । इन्हें पढ़ कर निम्न० जन का नाम उल्लेखनीय है। अजैन सज्जन अत्यन्त प्रभावित हुये :- . वक्ताओं में सर्वश्री बीरबल दीक्षित M. १. श्री जी० पी० नियोगी A. लज्जाराम शर्मा M..A. तथा श्री २. ,, गौरीशंकर घोष प्रिंसीपल रेलवे हरिश्चन्द्र वर्मा M.A. ने बड़े रोचक - इंटर कालेज टँडला भाषण दिये-जिनेन्द्र (संयोजक) ३. ,, पी० के० भट्टाचार्य प्रिंसीपल वार्षिक प्रचार रिपोट नवाई केन्द्र - वीरीसिंह स्कूल टूंडला . (१) टोंक जिले व जयपुर जिले के ४.,, गोपाल चन्द्र बनर्जी २७ गांवों में जाकर अहिंसा विषयक ५., श्रार० एस० गुप्त । प्रचार किया व ट्रेक्ट बांटे। ३६७ ६., देवेन्द्र प्रताप कुल श्रेष्ठ ७. सतीशचन्द्र एम० ए० आदमियों ने मदिरा व मांस सेवन ८., सरदार पृथ्वीपाल सिंह BSc.. का त्याग किया। ३६ आदमियों ने ६. श्रीवास्तव I. O. W. रात्रि भोजन का त्याग किया। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन ( २ ) श्री वापना साहब सिटी मजिस्ट्रेट टोंक बा० सुजानमल जी M. A. L. L. B. वकील बा० बहादुरमवजी B. A. टोंक एवं रीजनल इन्सपेक्टर साहब म्यु० डिस्ट्रिक्ट बोर्ड जयपुर डिवीजन राजस्थान आदि ३४ सभ्रान्त सज्जनों को मिशन का साहित्य भेंट किया : और वे अत्यन्त प्रभावित हुये, व जैन मिशन के उद्देश्यों व कार्य प्रणाली की अत्यन्त प्रशंसा की 1 (३) जैन मिशन को बिवाहशादी के शुभअवसर पर यथा शक्ति सहायता देने का प्रचार किया गया फल स्त्ररूप कुछ रकम निकालने भी लगी हैं । आगामी वर्ष में सफलता मिलेगी १६-३-५१ राजकुमार शास्त्री रांची (विहार) मिशन केन्द्र ( गतवर्ष का कार्य विवरण - ) (१) ईसाई मिशनरियों को साहित्य भेंट किया गया । उनको प्रत्यक्ष में जाकर उसका महत्व समझाया गया । कई कई महानुभाव ऐसे प्रभावित हुये कि वे समय मिलने पर जैन मन्दिर आकर दर्शन करते हैं एवं जैन तत्व पालने की चेष्टा में हैं वे जैन धर्म को अखिल विश्व में व्याप्त होने की पूर्ण इच्छा कर रहे हैं । (२) रांची के जैन मन्दिर की बनावट एवं सुन्दरता बड़ी प्रसिद्ध है तथा इसकी प्रसिद्धि के फलस्वरूप रांची एव ं बाहर के काफी संख्या ७७ में जैन बन्धु दर्शनार्थ पधारते हैं । उनको धर्म का तत्व बताने एव ं अहिंसा का महत्त्व उनके हृदयों में बैठाने के हेतु बराबर मिशन साहित्य भेंट किया जा रहा है तथा साहित्य बांटने का कार्य मन्दिर का दरवान करता है । उस साहित्य के पढ़ने वाले इसकी बड़ी सराहना करते हैं । (३) अंग्रेजी पढ़े लिखे छात्रों एवं महानुभावों को अंग्रेजी एवं हिन्दी वालों को हिन्दी का साहित्य उनकी इच्छानुसार निरन्तर दिया जा रहा है । (४) कलकत्ता रथयात्रा में वितरणाथ मिशन साहित्य भेजा गया तथा वहाँ से बदले में प्राप्त बंगला साहित्य यहाँ वितरण किया गया समिति कलकत्ता के हम पूर्ण इसके लिये श्री दिगम्बर जैन युवक आभारी हैं। (५) गौशाला एवं गुरुनानक दिवस पर साहित्य वितरण किया गया जो कि सिक्खों एवं. अन्य समाजों द्वारा सराहा गया । (६) उत्साही जैन छात्रों द्वारा अपने अपने अध्यापकों एवं छात्र मित्रों में वितरण किया गया तथा उन्हें मिशन से परिचित कराया गया । (७) अन्त चतुदर्शी के दिन रथ यात्रा में मिशन साहित्य बाँटा गया। (८) श्री महावीर जयन्ती मनायी गयी। रांची के इतिहास में यह जय Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ . अहिंसा-वाणी म्ती का प्रारंभ है। प्रभात फेरी ध्वनि की चेष्टा से यह कार्य इतना बढ़ विस्तारक यंत्र द्वारा नाटक, सभायें पाया है। हुयीं। इसमें स्थनीय जैन कन्या पाठ रतन कुमार जैन शाला का पूर्ण सहयोग रहा। अतएव सयोजक प्रधानाध्यापिकाजी एवं मंत्री जी के हम पूर्ण आभारी हैं। उदयपुर केन्द्र के प्रचार कार्य का __() जशपुरनगरादि स्थानों में संक्षिप्त विवरणजाकर प्रचार किया। वहाँ पर सबको . अपने संबंधित भाइयों को मिशन इसका महत्व बताया गया। उनमें के सदत्य बनाने तथा सहयोग देने पूर्ण प्रभावना जारी की जा रही है। के लिये लिख कर प्रेरणा की गई (१०) अखिल भारतीय गृह उद्योग एवं निर्माण प्रदर्शिनी में भी जिसमे से कुछ भाई सदस्य बने। साहित्य दर्शकों को बांटा गया था। - मिशन का जैन साहित्य अपने (११) श्री महावीर जयन्ती पर सम्पर्क में आने वाले जैन व अजैन अखिल भारतीय छात्र निबन्ध प्रति बन्धुत्रों को पढ़ने के लिये दिया और योगिता रक्खी गयी। निबन्ध विषय सरकारी तथा गैर सरकारी-अफसरों था 'भगवान महावीर' बाहर से आये को व ऊँचे अधिकारियों को मिशन हुये लेखों पर ३ विद्यार्थियों को का जैन साहित्य भेंट किया व पढ़ने कमशः १५) १०) व ५) पुरस्कार को भी दिया, जिसके फलस्वरूप स्वरूप भेजे गये। अन्य विद्यार्थियों बहुत से जैन व अजैन बन्धु जो जैन को मिशन साहित्य भेजा गया। श्री अहिंसा में विश्वास नहीं रखते थे विद्यार्थी नरेन्द्र सर्वप्रथम रहे जो कि पर जैन साहित्य की पुस्तकें पढ़ने की Jain Hostel Allahdad के रुची करने लगे और अजैनों में बहुत एक छात्र हैं। ... से भाई जिसमें अधिकतर कायस्थ (१२) श्री महावीर जयन्ती पर और राजपूत जाति के हैं जिन्होंनेवितरणार्थ मिशन साहित्य सम्पूर्ण मांस मछली अंडे खाना व शराब भारत की जैन संस्थाओं को उनकी पीने का त्याग कर दिया। कुछ भाइयों माँग के अनुसार भेजा गया। ने तो लिखित प्रतिज्ञा पत्र भी दिये __इसी प्रकार यहाँ मिशन कार्य हैं। इसी प्रकार आँफिसर्स आदि निरन्तर प्रगति कर रहा है। इसका बन्धुओं ने मिशन का साहित्य तथा श्रेय स्थानी जैन समाज विशेषतः श्री 'अहिंसा वाणी' एवं वायस आफ गुलाबचंद जी श्री सुमेरमत्य जी एवं अहिंसा आदि पढ़कर विशेष अध्ययन बाबू सूरजमल जी जैन को इन्हीं करने को रुची उत्पन्नाकी और जैन Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन धर्म व हिंसा मार्ग की ओर आकर्षित हुए । मिशन का साहित्य कुछ सार्वजनिक पुस्तकालयों में भेंट दिया जिसके द्वारा आम जनता भी साथ उठा रही है पुस्तकालओं के संचालकों से 'अहिंसावाणी' मनाने के लिये निवेदन किया गया है। मोतीलाल जैन संयोजक अखिल विश्व जैन मिशन नागपुर शाखा का सांक्षिप्त कार्य विवरण ---- अखिल विश्व जैन मिशन की एक शाखा नागपुर में दो वर्षों से स्थापित हो गई है और वह अपना कार्य सुचारु रूप से चला रही हैमिशन द्वारा भेजा गया साहित्य गत वर्ष तथा इस वर्ष महावीर जयन्ती उत्सव की आम सभा में बांटा गयाजबलपुर को तारण जयन्ती उत्सव पर भी साहित्य बाँटा गया— अमेरिका की क्रेट मिशन के एक कार्यकर्त्ता वर्ग रेवरेन्ड ग्रूम साहिव को मिशन के उद्देश्य को समझाया और उन्होंने यह कार्यक्रम बहुत पसन्द किया । मध्यप्रदेश की हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की माननीय सिन्हा, मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मन्त्री माननीय डा० बालिंग, पी० डब्ल्यू डी के मन्त्री माननीय की अभिभोज - अर्थ मंत्री माननीय श्री त्रिजलाल जी बियाणी संह 3 आदि को ट्रेक्ट तथा voice of Ahenisa की प्रतियाँ भेंट की गई । नागपुर के पास खापरखेड़ा विधुन केन्द्र के इंजीनियर श्री शाह तथा श्री केवलचन्द्र जी जैन को भी साहित्य दिया गया - आप लोग शीघ्र ही उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाने वाले हैं वहाँ आप साहित्य वितरण करेंगेश्री. खुशालचन्द जी जैन एम० ए० एल० एल० बी०, बी० काम० अभी लंदन से वापिस आये है आपको भी साहित्य दिया गया- आपने वचन दिया कि अब जब वे विदेश जावेंगे अवश्य वहाँ जाकर मिशन का प्रचार करेंगे - साहित्य नागपुर विश्वविद्यालय की लायब्रेरी को भी दिया गया । रामटेक की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर भी साहित्य बाँटा गया - यहाँ पर श्री जोहरापुस्कर जी वकील डा० - सी० बी० जोगी, श्री चापसी भाई शान्त बी० ए० एल० एल० बी० विजय किरण जी जैन एम० ए० श्री लालचन्द जी बी० ए० आदि उत्साही कार्यकर्त्ता हैं । - ज्ञान चंद जैन संयोजक मेरठ केन्द्र का प्रचार विवरण मेरठ में श्रीमती शान्तिकुमारी जी के अपूर्व उत्साह से कुछ उल्लेखनीय कार्य हुआ । उन्होंने सदस्यादि बनाने के प्रतिरिक्त अपनी सहेलियों को जैन साहित्य Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अहिंसा-वाणी के पढ़ने को दिया। कई ने सामयिक पाठ (१) सभापतिः-जयकुमार जी वैद्य कंठस्थ कर लिया । श्री पद्मसिंह जी (२) संयोजकः-निर्मलकुमार जैन वकील ने भी 'सामयिक पाठ' कंठ याद (३) उप संयोजकः -राजेन्द्र कुमार ठेकेकरके पाठ करना प्रारंभ किया। उन्हें दार उसके हिन्दी पदों में गीता का आनंद (४) विद्यार्थी-संयोजक:-निर्मल कुमार श्राता है । कई बहनों ने 'मेरी भावना' जैन को पढ़ना स्वीकारा । श्राविका-धर्म शिक्षा (५) शंका समाधान कर्ताः-पं० सरदार सदन मेरठ में अापने एवं श्री केवती जी मल जी जैन ने 'अहिंसावाणी' और सामयिक पाठ इसी बीच में हमने कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों एवं मेरी भावना आदि ट्रेक्ट भेंट किये से मुलाकात की, साहित्य दिया । इस पर थे, जिससे बहनों में प्रचार हुा । दिल्ली उनसे हमने मिशन की प्रशंसा, धर्म की के श्री गणपति राम जी मेहरा एक तत्वज्ञ, बड़ाई और शुभ-सम्मति और आर्शीवाद विद्वान् हैं । उन्होंने एक पुस्तक "Say. प्राप्त किए। ings of Sages & Scholare" सिरोंज शाखा की ओर से नीचे . लिखी है। उसमें जैन धर्म पर भी एक लिखे उत्सव मनाये गये और साहित्य नोट दिया है, जिसे उन्होंने श्री शान्ति इनाम श्रादि बाँटा गया :-महाबीर कुमारी जी द्वारा हमारे पास भेजा था--- जयन्ती, अहिंसा-सप्ताह, दश लक्षण उसका संशोधन किया गया। उन्होंने पर्व, इत्यादि । इनमें उत्सवों में भी भाग जैन कर्मसिद्धांत का अध्ययन करना लिया-शिक्षा-सप्ताह बाल-दिवस, हनुचाहा। अतः उनको अंग्रेजी में कर्म मान जयन्ती, गांधी जयन्ती, शान्ति सागर सिद्धांत की पुस्तके भेजी गईं। उनसे हीरक जयन्ती आदि और सिरोज से वापस पाने पर वह पुस्तक डा. एव्वे संयोजक को जैन कार्य-कर्ता सम्मेलन पढ़ रहे हैं । इस प्रकार श्री शान्तिकुमारी गाजियाबाद में भाग लेने को भेजा । सब जी द्वारा सक्षेप रूप में ठोस प्रचार किया कार्य सफल रहा। गया है। जिसके लिए मिशन उनका अाभारी है । अन्य वहनें उनका अनुकरण . ऐसे समय में लोगों से अपील की करें तो अच्छा है। कि मिशन को आर्थिक सहायता और --:रिपोर्ट:-- प्रचार कार्य में सहयोग दें। अ० व० जैन मिशन शाखा सिरोज हिन्दुओं के बड़े-बड़े उत्सवों में - श्री अखिल विश्व जैन मिशन सिरोज जैसे:-दशहरा, होली, दिवाली इत्यादि शाखा ने अपना कार्य दिनाङ्क ६-३-५१ पर लोगों से बुरी बातों का त्याग कराया। से शुरू किया, इस शाखा के निम्नलिखित गावों में जाकर प्रचार कियाः-देवपुर कार्यकर्ता सर्व-सम्मिति से चुने गये। में विमानोत्सव पर जाकर जन-गणना Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * .८१ में जैन-लिखाओं का अन्दोलन और पूरी करने के लिये हर इतवार को भाषण मिरान का साहित्य बाँटा । मिशन केन्द्र में शंका सावधान के लिये ___ सन् १९५२ में अहिंसा-सप्ताह के आयोजन किया। समय धर्म-सम्मेलन बुलाया जिस में प्रचार का परिणाम करीब-करीब सब धर्म वालों ने भाग लिया। सिगेंज-काँग्रेस कमेटी के द्वारा दिवाली पर जैन विधि में पूजा की। सिरोज डिवीजन में कुछ पंचायत बोर्ड लोगों ने कुछ न कुछ त्याग किया । काँग्रेस कमेटियों को श्रादेश जारी कराया , कुछ ने तो, रात्रि-भोजन, शिकार कि वह अपने यहाँ अहिंसा-सप्ताह का खेलना, पाँच-उदम्बर, तीन मकार, प्रायोजन करें तथा सिरोज में नगर- जुआ खेलना, बलि चढ़ाना माँस खाना पालिका की ओर से एलान कराया कि नशीली चीजों आदि का त्याग किया। इन पुण्य तिथियों पर महाबीर-जयन्ती, जैनों से निवेदन किया गया कि के स्वाअनन्त-चतुदर्शी, गाँधी जयन्ती, जन्म ध्याय प्रतिदिन करें । इससे लोग जैन धर्म अष्टमी पर पशु-हत्या बंद रखी जाय को जानने लगें। इज्जत की निगाह से ऐमा श्रादेश सब गावों में भिजवाया। देखने लगे। कुछ जैन लोगों ने मरण इस वर्ष मिशन केन्द्र सिरोज की ओर भोज, पाखण्डी देवताओं की पूजा का --से राजस्थान के वाचनालय पुस्तकालय, त्याग, शादी में खर्चा की कमी की प्रतिज्ञा शिक्षक सस्थात्रों को मिशन का साहित्य की। मेट कर रहे हैं। नीचे लिखी संस्थानों मेरी-भावना को बहुत अच्छा बताया को साहित्य दिया गया है:- "गया । पाठशाला में मेरी भावना का (१) ग. हाई स्कूल पुस्तकालय सिरोज पाठ होने लगा और भी लोग प्रतिदिन मेरी (२) महात्मा गांधी रीडीग रूम, सिरोज भावना का पाठ करने लगे। सिरोज के पास (नगर पालिका) पास शाखा खोलने के विषय बात चीत चल (३) हिन्दी साहित्य परिषद वाचनालय, रही है। लोगों ने Voiee of Ahinsa सिरोज और 'अहिंसा-वाणी' की काफी प्रशंसा की (४) राज मिडिल स्कूल पुस्तकालय और कहा कि “कल्याण" जैसा प्रमुख लटेरी पत्र बने । इस-वर्ष वाचनालय से काफी (५) महाबीर वाचनालय, बॉरा लोगों ने लाभ लिया । और हरिजन को (९) इन्टरमीजियट जैन कालेज वाचना- अच्छा बनाने के विषय में बात चीत लय मेलसा.. . ---------चल रही है। (७) हिन्दी मिडिल स्कूल भेलसाः . विनीत . जैन समाज में वक्ताओं की कमी निर्मल कुमार जैन, संयोजक Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ edeo . समादकीय. जैन-जीवन की जरूरत है 'जीवन एक कला है और जो भली प्रकार जीना जानता है वही सफल कला. कार है। वस्तुतः जीवन सफल करना श्रासान बात नहीं है । जिसका जीवन आदर्श जैसा हो गया वह निश्चय ही सच्चा कलाकार भी कहा जाएगा। जैनजीवन भी एक कला है । यह संस्कृत है साथ ही उपयोगी भी । जैन-जीवनानुसार व्यक्ति जन-कल्याण एवं प्राणी मात्र के त्राण को ओर अग्रसर होता है। अ० विश्व जैन मिशन जैन युवको को उस ओर ले जाना चाहता है। इन्दौर अधिवेशन इसका एक प्रयोग भी था। अाज विश्व में विषमता फैली हुई है। एक ओर कुछेक मनुष्य मस्ती एवं मटरगस्ती कर, सुख की रंगरलियाँ कर रहे हैं; वहाँ दूसरी ओर एक वृहत जनसमूह कठिन काम की चक्की में पिसकर भी भूखों मर रहा है। बहुतों को दो रूखी-सूखी रोटी भी मुयस्सर नहीं । यह विषमता दूर होनी चाहिए । यदि जगत जैन-जीवन को अपना सके तो ये सारी समस्याएँ ही हल हो जावें । जैन-जीवन संयम से संयुक्त है। सच पूछा जाय तो उच्छङ्खलता से या स्वच्छन्दता से ही विच्छङ्खलता अथवा विषमता होती है। इसीलिए जैन-जीवनानुकूल जीवन में समय को विशिष्ट स्थान दिया गया है। और यह संमय बाहर से लादा हुश्रा नहीं है, स्वज. नित है। समय सर्वभौम एवं सर्वकालीन है अतएव उसका महत्व भी सब के लिए और सब कालों के लिए है। मानव जीवन भी सिविध कालों से गुजरता है अस्तु जीवन में समय अपना महत्व रखने योग्य है । जैन-जीवन के अनुरूप मनुष्य को किन्हीं अंशों में अपरिग्रही बनना पड़ता है। यदि अाज जग अपरिग्रही हो जाए तो यह भी निश्चित है कि विश्व की विषमता दूर हो जायगी । जब मनुष्य में परिग्रह अधिक बढ़ाने की इच्छा होती है तो उसका परिणाम यह होता है कि कुछ तो मनुष्य परिग्रह की वृद्धि करने में सफल हो जाते हैं और कुछ विफल । इस प्रकार विषमता का सूत्रपात होता है। यह तभी होगा जब मनुष्य किञ्चित अंशों में भी अपरिग्रह का पालन करने लगता है। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सम्पादकीय ८३ 1 मनुष्य में पाशाविक वृत्तियाँ जन्म जात होती हैं । उसमें सुगुण भी होते हैं । त्याग, करुणा इत्यादि इसी कोटि की सत्यवृत्तियाँ भी मनुष्य में अन्तर्हित रहती है । जैन-जीवन पाशविक वृत्तियों पर अंकुश रखने की विधि बताता है और त्याग, मैत्री, दया प्रभृति नर वरेण्य गुणों का उद्घाटन करता है। दूसरे शब्दों में जैन - जीवन पशु-नर के जीवन के बीच की रेखा खींचता है । वह पशु को पुरुष बनाता है । अस्तु यह निर्विवाद है कि जैन-जीवन की आवश्यकता है । जैनमिशन इस सत्य का लोक में प्रचार करना चाहता है । अतः मिशन के कार्यकर्त्ताओं का जीवन तो आदर्श जैन जीवन होना ही चाहिए । वस्तुतः तभी 'मिशन' का उद्देश्य पूरा हो सकता है । नहीं तो केवल कागजी तलवार चलाना जैन-जीवन के प्रतिकूल होगा अनुकूल नहीं । एक संस्था के कार्यकर्त्ता के व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक जीवन में यदि देखा जाय तो कोई विशेष अन्तर नहीं रहता । एक मनुष्य का जीवन तो एक ही होता है उसके पहलू विविध होते है और वे एक दूसरे पर श्राश्रित रहते हैं । इस प्रकार उनका घनिष्ट एवं श्रभिन्न सम्बन्ध होता है । इसीलिए यदि किसी कार्यकर्ता का जीवन उस संस्था के सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं होता जिससे कि उसका सम्बन्ध है वास्तव में उस पंस्था को लाभ पहुंचाने के स्थान पर अनजाने में हानि ही पहुंचाता है। इसी भाँति यदि भी अखिल विश्व जैन मिशन के सदस्य जैन-जीवन के अनुरूप नहीं रहते और उसके अनुसार रहने की कोशिश भी नहीं करते तो वास्तव में वे कभी 'मिशन' के अवनति के कारण या स्पष्ट शब्दों में जैन-जीवन प्रसार में बाधक बन सकते हैं । अतएव हमारा सभी कार्यकर्ताओं से सानुरोध निवेदन हैं कि वे अपने जीवन को जैन-जीवन के निकट लाएँ । इससे न केवल वे ही उन्नत हंग प्रत्युत वे अपने आस-पास के समाज का नैतिक स्तर भी उठा सकेंगे । तथा तभी वे सच्चे अर्थो में हिंसक हो सकेंगे और तभी हिंसा का प्रसार कर सकेंगे । इसलिए जैन-जीवन की जरूरत है। उस जीवन की जो सत्य और अहिंसा से श्रोत प्रोत है । म० गांधी ने उसे मूर्तमान कर दिखाया था । ऐसे आदर्शवादियों का मिशन ही लोक पथ प्रदर्शन करने का अधिकारी है । अतः मिशन ले जाने के लिए सबसे पहले आदर्श पुरुष और विद्वान् मिशन को चाहिये ! क्या हम इस ओर अग्रसर होने का सक्रिय प्रयत्न भी करेंगे ? Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारे सुरुचिपूर्ण प्रकाशन १. मुक्तिदूत [ पौराणिक उपन्यास ] २. दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ ३. पथ चिह्न [ स्मृति- रेखाएँ] ४. शेर-ओ-शायरी [ द्वितीय संस्करण ] ५. मिलनयामिनी [गीत ] ६. वैदिक साहित्य ७. मेरे बापू [ महात्माजी के प्रति श्रद्धाञ्जति ] ८. पंच प्रदीप [ गीत ] ६. भारतीय विचारधारा [ दर्शनिक विवेचन ] १०. ज्ञान गंगा [ श्रेष्ठतम सूक्तियाँ ] ११. गहरे पानी पैठ [ ११८ मर्मपर्शी कहानियाँ ] १२. वर्द्धमान [ महाकाव्य ] १३. शेरो- सुखन [ उईशायरी का इतिहास ] १४. जैन - जागरण के अग्रदूत [ ३७ संस्भरन ] १५. हमारे आराध्य १६. आधुनिक जैन कवि १७. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास १८. कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रन १६. जैन शासन [ द्वितीय संस्करण ] २०. महाबन्ध [ महाथवल सिद्धान्त शास्त्र ] २१. मदन पराजय २२. कन्नडप्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थसूची २३. तत्त्रार्थवृत्ति [ हिन्दीसार सहित ] २४. न्यायविनिश्चय विवरण [ प्रथम भाग ] २५. सभाष्य रत्नमंजूषा बोलনদমকজकलकले ३) ३|| २||1=) ३) १२) ८) १३) १६) १५. २) २६, नाममाला सभाष्य ३५) २७. केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि [ ज्योतिष का अपूर्व ग्रन्थ ] १) २८. आदिपुराण [ प्रथम भाग ] १०) २६. आदिपुराण [ द्वितीय भाग ] १०) م ३०. समयसार [ अंग्रेजी ] 引 ३१. कुरल काव्य [ तामिल भाषा का पंचम वेद, तामिल लिपि ]४) ३२. जतकट्ठकथा सा.वि. ६) भारतीय ज्ञान पीठ, पो० ब० नं० ४८, बनारस १, Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अहिंसा वाणी' के विषय में १–'अहिंसा-वाणी' का उद्देश्य सत्य-अहिंसा द्वारा विश्व में सुख, समृद्धि, शान्ति ___की सृष्टि के लिए तदनुकूल स्वस्थ ज्ञान सामग्री देना है। २–'अहिसा-वाणी' प्रत्येक माह के द्वितीय सप्ताह में प्रकाशित होती है। पत्रिका नहीं पहुंचने की शिकायत ३०वीं तारीख तक पहुँचना आवश्यक है। ३–पत्र व्यवहार में अपनी ग्राहक संख्या अवश्य लिखें ! ४ -किसी भी माह से ग्राहक बन सकते हैं । अप्रैल से बनना सुविधाजनक होगा। ५-आलोचनार्थ पुस्तकों की दो प्रतियाँ सम्पादक जी को भेजनी चाहिए । अालोचना करना सम्पादक के सर्वाधिकार में है। ६-पत्र में शिष्ट अादर्श एवं स्वस्थ विज्ञापन ही लिए जावेंगे । विज्ञापन दर पत्र द्वारा पूछ सकते हैं। ७-अहिंसा-संस्कृति एवं जैन-दर्शन को व्यवहारोपयोगी बनाने के लिए तत्सम्बन्धी शंकायों का समाधान भी यथासम्भव पत्रिका में किया जावेगा । पाठक शंकाएँ सम्पादक को भेजें। ८-प्रकाशनार्थ रचनाएं पत्र के उद्देश्य से सम्बन्धित होनी चाहिए तथा सम्पादकजी के पास भेजनी चाहिए। निबन्ध, कहानी, एकांकी, कविता, गद्य गीत, के गद्य काव्य आदि सभी प्रकार की रचनाओं का स्वागत किया जायेगा । रचनाएँ साफ सुथरी तथा पृष्ठ के एक ही पोर लिखी जानी चाहिए। अस्वीकृत रचना की वापिसी के लिए डाक खर्च संलग्न होना आवश्यक है। -समस्त पत्रव्यवहार का पता--'अहिंसा-वाणी' कार्यालय, अलीगञ्ज (एटा) उ० प्र०॥ “दी वायस आव अहिंसा” THE VOICE OF AHINSA विश्व-शान्ति एवं मानवता का सर्वोच्च स्वर देश-विदेश के ख्याति-लब्ध लेखकों की अमूल्य कृतियों से अलंकृत अहिंसा संस्कृति एवं जैन-दर्शन की एक मात्र सचित्र द्विमासिक पत्रिका यदि आप अभी तक इस पत्रिका के ग्राहक न बने हों तो अहिंसा-प्रसारार्थ अविलम्ब ही छः रुपए ६) का मनीआर्डर भेजकर ग्राहक बन जाइए। व्यवस्थापक दी 'वायस श्राव अहिंसा'-कार्यालय अलोगञ्ज, (एटा) उ० प्र० Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Regel. No. A. 576. इन्दौर रेलवे स्टेशन पर सभाध्यक्षों का स्वागत HINI 200awwan280053 88888888888888 8885 8888888888888880 830888 श्री रिषभदास जी राँका सभाध्यक्ष, अधिवेशन, जैन मिशन BBCI 8 88888888000 डॉ० कालिदास नाग, सभाध्यक्ष अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन प्रकाशकः- पं० रेवतीलाल अभिहोत्री, अ० वि० जैन मिशन अलीगञ्ज (एटा) मुद्रकः-राजेन्द्रदत्त बाजपेयी, हिन्दी साहित्य प्रेस, प्रयाग / .