SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन के ६५ ७. पत्रिकायें जिनके नाम अन्यत्र छपे हैं । हम ___इस वर्ष मिशन ने अपनी मुख्य- इनके आभारी हैं। इसके साथ ही पत्रिकायें अहिसा वाणी और इन्दौर से भाई प्रकाशचंद जी टोंग्या वाइस आँव अहिंसा प्रकाशित की। ने 'अहिंसावाणी' पत्रिका चाल की 'वाइस' जनवरी १९५१ से आरंभ थी; किन्तु वह उसके तीन अंक ही की गई। इस एक वर्ष में ही उसने निकाल सके थे-अस्वस्थता के अपना विशिष्ट स्थान विदेशों में प्राप्त कारण उसे वह आगे न चला सके। कर लिया है । उसके लेख भारतीय इसी कारण यह पत्रिका अनियमित पत्रों जैसे 'थियोसोफिकल मूवमेंट' रूप से निकलती है। अब दो मास में उद्धत और विदेशी पत्रों में अनु. से वह ठीक समय पर निकल रही वादितकिये गये। जरमन पत्रों में है। इसका एवं वाइस का विशेषांक काफी चरचा रही। अभी स्वीटजर "ऋषभदेवाङ्क" दर्शनीय प्रकाशित लैंड के एक पत्र में भी एक लेख का किये गये हैं जो अपनी मौलिकता अनुवाद प्रकाशित हुआ है। देशी के कारण स्थायी और संग्रहणीय और विदेशी चोटी के विद्वान उसमें हो गए हैं, इसे 'कल्याण' जैसा बराबर लिखते हैं। लंदन की ब्रिटिश लोकप्रिय बनाना अभीष्ट है। म्युजियम लायब्रेरी और वाशिंगटन आगे छोटी साइज़ में और की सरकारी कांग्रेस लायब्ररी ने भी कम मूल्य में वह प्रकाशित की उसको संग्रह करने के लिये मंगाया · जावेगी और समय पर पाठकों के है। इस प्रकार की यह सचित्र पत्रि- हाथों में पहुँचेगी। उसमें १०६७॥ का एक ही है, परंतु फिर भी इसके का घाटा मुख्य केन्द्र द्वारा वहन ग्राहक कुल ३१४ हैं। यदि १००० किया गया। ग्राहक हो जावें तो इसमें घाटा न रहे । इसे १००० से १५०० की संख्या ८. जैनग्रन्थ भेंट किये गये और में छपाकर विदेशों में खूब वितरित विश्वविद्यालयों को भेजे गये। किया गया है। ग्राहकों की कमी इस वर्ष भी विविध विद्वानों के कारण इसमें केवल २६६४॥ और संस्थाओं को ग्रंथ भेजे गये; का घाटा रहा। श्री रा० ब० J. जिनमें मुख्य (१) इटली का रोम 1. Jaini Trust इन्दौर ने विश्वविद्यालय (२) अमेरिका का ३००) रु० प्रदान करके इसकी ४० न्यूमेक्सीको विश्वविद्यालय और प्रतियां देश विदेश के पुस्तकालयों , (३) जरमनी की जैन लायब्रेरी है। को भेंट में भेजी हैं ऐसे ही अनेक विद्वानों में उन सब को मिशन सेट भाइयों ने भी इसे फ्री भिजवाया है, भेंट किया गया जो भारत आये थे।
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy