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* रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ६१ सच्चे ज्ञान का अर्जन और प्रसार २. हमारा प्रचारकार्य सार्वभौमिक लोक में करें। लोक को भौतिकवाद और के अंधकूप से निकाल कर अध्यात्मवाद के सुख-समतामई प्रकाश में ले इस प्रकार मिशन का उद्देश्य स्पष्ट
आवें । स्वयं नमूना बनकर दिखावें। है। वह सम्यज्ञान का प्रचार करके हम नित्यप्रति भावना करते हैं कि लोक में अध्यात्मवाद को सिरजना 'सारे ही देश धारें जिनवर वृष को चाहता है, क्योंकि मानव जब तक जो सदा सौख्यकारी !' इस भावना वस्तु तत्व को नहीं जानेगा तब तक को मूर्तमान बनाने के लिये ही इस वह सुखी नहीं हो सकता ! विश्वजैन मिशन का जन्म हुआ है ! बंधुत्व की पुनीत भावना उसके भीतर १६४८ में इंगलैन्ड के दो अंग्रेज तभी जागृत होगी जब वह जानेगा बंधुओं ने लिखा कि आज यूरोप की कि वह शरीर से भिन्न चैतन्यरूप भौतिकवादी सभ्यता का दिवाला परमप्रभू परमात्मा है। सुख उसके निकल चुका है-लोग सुख और भीतर मौजूद है-दुनियाँ की बाहरी शान्ति पाने के लिये छटपटा रहे हैं! चीजें उसे सुखी नहीं बना सकती। जैन सिद्धान्त ही उनको सुख और केवल रोटी कपड़ा के प्रश्न ही उसकी शान्ति दे सकता है; आप एक जैन समस्या नहीं है। उसकी सबसे बड़ी गुरू को यहाँ भेजिये और जैन समस्या तो उसका वह अज्ञानभाव साहित्य का प्रसार कीजिए तदनुसार है जिसने मानव को दानव बना दिया 'श्री अ० विश्व अहिसा प्रचार संघ' । है और वह स्वार्थ में अंधा होकर अथवा 'दी वर्ल्ड जैन मिशन' की संग्रह करने पर तुला हुआ हैस्थापना की गई ! महान् सन्त पूज्य असंतोष की भट्टी में वह जल रहा वर्णी जी ने जब अंग्रेज बंधुओं के है । आर्थिक विषमता को वह बाहरी पत्रों को सुना तो उनका हृदय दयाद्र उपायों द्वारा दूर करना चाहता है। हो गया ! यहाँ तक कि वह स्वयं किन्तु समस्यायें सुलझती नहींविदेशों में अहिंसा का प्रचार करने उलझती जा रही हैं! कारण स्पष्ट के लिये तैयार हो गये ! किन्तु समाज है; मानव का हृदय तो कलुषित है। ने उनकी इस भावुकता का आदर संयुक्तराष्ट्र संघ में सभी राष्ट्रों को करना अपना कर्तव्य नहीं माना! प्रतिनिधित्व तक प्राप्त नहीं है। अब काश, आज जैन दर्शन के दिवाकर सोचिये, शान्ति की स्थापना कैसे बैरिस्टर चम्पतराय जी अथवा हो ? आज अहिंसा और अनेकान्त धर्मभूषण ब्र. शीतत प्रसाद जी के अचूक सिद्धान्तों द्वारा हमें मानव 'जीवित होते!
के अज्ञान की धज्जियाँ उड़ाकर