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________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * सत्कार में व्यस्त थे, वह बताता के शीश महल में जहाँ हम लोग था कि आप हमारे अपने ही हैं ! ठहरे थे, वहाँ से पास में ही उनका ___ मिशन की अंतरङ्ग कमेटी में शीशे का मन्दिर अपूर्व दर्शनीय है। सदस्यों और प्रतिनिधियों का उत्साह मारबाड़ी पंचालयती मन्दिर में हमें अपूर्व था। सबके हृदयों में धर्म- तपोधन परमपूज्य आचार्य अभिप्रचार की पुनीत भावना हिलोरे ले नन्दन सागर जी के दर्शन पाने का रही थी। साथ ही उनमें अपने उत्साह सौभाग्य मिला । आपका तेज और को नये नये प्रस्तावों को आगे शान्तमुद्रा मन पर अनायास ही लाकर व्यक्त करने की होड़-सी लग बीतरागता की छाप लगा रही थी। रही थी। कदाचित् प्रस्तावों के स्थान आपने आशीर्वाद दिया और मिशन पर वह प्रचार करने का उत्साह व्यक्त ' के प्रचार कार्य को सराहा । खेद है करते और स्वयं अहिंसक जीवन को कि इच्छा होते हुए भी, हम आपके उत्तरोत्तर बढ़ाचढ़ा कर विताने की उपदेशामृत का पान न कर सके ! . क्षमता तो ज्यादा अच्छा रहता! सैतवाल जैन कोलोनी में महायहां हमे उज्जैन के भाइयों के दर्शन राष्ट्रीय जैन युवकों का उत्साह सराहहुये। श्री पं० सत्यंधर कुमार जी नीय है । आप लोगों ने हिन्दी पद्य सेठी ने हमारा सब से परिचय में कीर्तन के ढंग से जैन गौरव कराया। सेठी जी उत्साह की मूर्ति गाथाओं का संकलन किया है, जिन्हें हैं और कार्य पटु भी ! यही हमें मन्द- बारी बारी से वे गाते हैं। जनता सौर के श्री पं.भगवान दास जी के पर प्रभाव डालने के लिये उनकी दशन हुये । और भी बहुत से भाई यह शैली उपादेय है। मिले परन्तु इन्दौर के भाइयों से सरसेठ जी सा० को पारमार्थिक इच्छा होते भी हम मिल न पाये- संस्थायें सुचारु रीति से चल रही खासकर श्री मित्तल जी से ! मित्तल. हैं। हमने चाहा था कि बोर्डिङ्ग हाउस जी स्व०रा० जे० एल० जैनीट्रस्ट के के छात्रों से सम्पर्क स्थिापित करें; ट्रस्टी हैं और श्रीमान् सेठ लालचंद किन्तु जब हम वहाँ पहुँचे तो छुट्टी जी सेठी के साथ उसके कार्य को के कारण छात्रगण उपस्थित न थे। आगे बढ़ा रहे हैं। मिशन के कार्य में वहाँ हमें वयोवृद्ध पं० अमोलक चंद आप सक्रिय भाग-ट्रस्ट से सहायता जी के दर्शन हुये । आप समाज के देकर-लेरहे हैं। मिशन इसके लिए पुराने कार्यकर्ता हैं-महासभा में श्राप का आभारी है। आप वर्षों पदाधिकारी रहे हैं। आप — इन्दौर के जैन मन्दिर विशाल, से छात्रों के नैतिकस्तर और धर्मभाव सुंदर और निर्मल हैं। सरसेठ जी को उठाने के विषय में चरचा हुई।
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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