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अहिंसा-वाणी करें ? सेठ जी जैन अहिंसा का वैज्ञा- भी हो, एक मेहमान से अधिक कोई निक स्वरूप बताते हुए कहा कि और सम्बन्ध उनका मिशन से नहीं 'गृहस्थ संकल्प करके हिंसा नहीं है । अतः समाज उनको मिशन करेगा। आरंभी, उद्योगी और विरोधी का कार्यकर्ता समझने का भ्रम न हिंसा के दोष से वह बच नहीं करे। अलबत्ता मिशन यदि कहीं सकता; परंतु इनमें भी उसका भाव पर केन्द्र खोल सका तो वह डाँ० अहिंसा परक रहता है। हमारा भाव वेल्यी की विद्वत्ता से लाभ अवश्य बच्चों की रक्षा करना है-सांप को उठावेगा। मारना नहीं। अतः हमें बच्चे के सर सेठ हुकुमचंद जी का जीवन प्राणों को रक्षा हर तरह करना निवृत्तिमय हो रहा है। जब हम उचित हैं। प्रेसरिपोटरों के सम्मेलन उनसे कापड़िया जी के साथ मिले, में भी आपने भारतीय प्रेस को चेता- तब वह शास्त्र प्रवचन करके लौट वनी देते हुये कहा कि 'उसे विदेशी रहे थे। आपका सारा समय धर्मप्रेस की नकल नहीं करना चाहिये। ध्यान में बीतता है। आप की सरउसका आदर्श तो सत्य और अहिंसा लता और वात्सल्य व्यक्ति के हृदय परक होना चाहिये । उसे 'सौन्दर्य में घुस जाता है । आपने मिशन के प्रतियोगिता' जैसी खबर को महत्व प्रचारकार्य को सुनकर सराहना की। नहीं देना चाहिये-वह भारतीय आपके सुपुत्र भैय्या जी श्री राजसंस्कृति के विरुद्ध है। भारतीय प्रेस कुमारसिंह जी को नम्रता-विनयको तो अपने आदर्श से लोक को वात्सल्यादि गुण आपसे उत्तराधिकार चकित कर देना चाहिये ।” जैनधर्म में मिले हैं। हम गये तो आप बाहर पर डाँ वैल्यी के बहुत ही सुलझे हुए आकर हम सब को ले गये और प्रेमविचार हैं। अन्य यूरोपीय विद्वानों पूर्वक वार्तालाप करते रहे। समय की तरह आप भी जैनधर्म को ही की विषमता के कारण आप मिशन भारत का आदि धर्म मानते और के कार्य को, इच्छा होते हुए भी घोषित करते हैं। मिशन को वह अभी अपने हाथ में नहीं ले सके हैं। अपनी सेवायें देने को तैयार हैं। फिर भी आप मिशन के संरक्षक बने इन्दौर के पश्चात् उन्होंने बम्बई, हैं। भविष्य में मिशन के कार्य को हैदराबाद, सिकन्दराबाद और बेंग- आगे बढ़ाने में आप से पूरा सहयोग लोर में कई भाषण जैनधर्म पर दिये मिलेगा, यह हमें पूर्ण विश्वास हैं !
और लोगों को मिशन का परिचय आप के सुपुत्र भी आपके समान ही कराया। वह बेंगलोर में जैन केन्द्र वात्सल्य भावी हैं। प्रीतिभोज में आप खोलने के लिये लालायित हैं। जी सब लोग जिस प्रेम भाव से आदर