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________________ * इन्दौर-प्रवास के संस्मरण * ५५ दूसरे दिन हम लोगों ने स्टेशन ज्ञान-गोष्टि में जब आप से कर्म जाकर श्रद्धेय राँकाजी और डॉ० सिद्धांत पर प्रकाश डालने को कहा नाग का स्वागत किया दोनों ही गया तो आपको कुछ अटपटा उसी ट्रेन से आये थे । रांका जी लगा-बोले 'इतिहास के विद्वान से बहुत ही सौभ्य और निर्मलस्वभाव से सिद्धांत की बात का क्या वास्ता ? के जंचे । उनको रुचि निवृतिपरक किन्तु जब आपने इस विषय पर है-जीवन के अनुभव में वह गहरे अपनी हास्यरस से छलछलाती पैठे हैं -उनकी सूझबूझ सुलझी हई वाणी का प्रयोग किया तो सभी है। इसी कारण जमनालाल जी जैसे लोग चेकित और प्रसन्न हो गये । युवक उनको घेरे रहते हैं। पहले इतिहास की रीति से ही उन्होंने गुरुओं के साथ शिष्य मंडली चला कर्म सिद्धांत का व्यवहारिक रूप करती थी। राँकाजी ने उसका स्पष्ट कर दिया। यह ज्ञान-गोष्टि आभास अपनी गोष्ठि से करा बड़ी ही मनोरंजक और शिक्षाप्रद दिया। सभी सेवा-भावी और रही-इन्दौर के कुछ अजैन विद्वान् जिज्ञासु थे और कुछ करने की लालसा जैसे प्रो० पटवर्द्धन आदि इसमें रखते थे। जमनालाल जी के मुख सम्मिलित हुए थे। पर मीठी मुस्कान उनके हृदय की जब ज्ञान गोष्टि हो रही थी तभी मिठास का आभास कराती थी और डॉ० फेलिक्स वैल्यो (Dr. Felix उनकी उग्रता युग की प्रतीक बन Valyi) भी आ गये । वह मैत्री को रही थी। साथ में भाई फकीरचंद प्रतिमा ही भासे! आते ही उन्होंने पूछा भी थे। और डाँ० नाग की सरलता कि 'मेरे मित्र डाँ० बूलचंद भी यहाँ हैं तो आश्चर्य में डालनेवाली थी। या नहीं ! और फिर वह सबसे ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का वह उद्भट घुलमिल गये जैसे अपने ही हों। विद्वान जिसे कल ही राष्ट्रपति ने विदेशी गोरा होने पर भी उनके साथ संसद का सदस्य घोषित किया, पराये जैसा व्यवहार नहीं किया गया केवल साधारण-सी वेषभूषा-कुड़ता, हमारी उदारता का प्रभाव उन के चादर और धोती में आगे आया! हृदयपटल पर हमेशा के लिये अङ्कित उनके मुखकी प्रतिभा उनके पाण्डि- हो गया है। श्रीमान् वयोवृद्ध सेठ त्य को मुखरित कर रही थी, वह सर हुकुमचंद जी से भी आपने ज्ञानबात-बात में प्रौढ़ हास का परिचय चरचा की और पूछा कि 'जब तक देते थे-बड़े ही खुश मिजाज है बच्चों को सांप से डसे जाने की वह । उनके भाषण में भी हास्य का अशंका हो और सांप को मारने से पुट लोगों का मन मोह लेता है। ही वह टल सकती हो, तो हम क्या
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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