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________________ * सम्पादकीय ८३ 1 मनुष्य में पाशाविक वृत्तियाँ जन्म जात होती हैं । उसमें सुगुण भी होते हैं । त्याग, करुणा इत्यादि इसी कोटि की सत्यवृत्तियाँ भी मनुष्य में अन्तर्हित रहती है । जैन-जीवन पाशविक वृत्तियों पर अंकुश रखने की विधि बताता है और त्याग, मैत्री, दया प्रभृति नर वरेण्य गुणों का उद्घाटन करता है। दूसरे शब्दों में जैन - जीवन पशु-नर के जीवन के बीच की रेखा खींचता है । वह पशु को पुरुष बनाता है । अस्तु यह निर्विवाद है कि जैन-जीवन की आवश्यकता है । जैनमिशन इस सत्य का लोक में प्रचार करना चाहता है । अतः मिशन के कार्यकर्त्ताओं का जीवन तो आदर्श जैन जीवन होना ही चाहिए । वस्तुतः तभी 'मिशन' का उद्देश्य पूरा हो सकता है । नहीं तो केवल कागजी तलवार चलाना जैन-जीवन के प्रतिकूल होगा अनुकूल नहीं । एक संस्था के कार्यकर्त्ता के व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक जीवन में यदि देखा जाय तो कोई विशेष अन्तर नहीं रहता । एक मनुष्य का जीवन तो एक ही होता है उसके पहलू विविध होते है और वे एक दूसरे पर श्राश्रित रहते हैं । इस प्रकार उनका घनिष्ट एवं श्रभिन्न सम्बन्ध होता है । इसीलिए यदि किसी कार्यकर्ता का जीवन उस संस्था के सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं होता जिससे कि उसका सम्बन्ध है वास्तव में उस पंस्था को लाभ पहुंचाने के स्थान पर अनजाने में हानि ही पहुंचाता है। इसी भाँति यदि भी अखिल विश्व जैन मिशन के सदस्य जैन-जीवन के अनुरूप नहीं रहते और उसके अनुसार रहने की कोशिश भी नहीं करते तो वास्तव में वे कभी 'मिशन' के अवनति के कारण या स्पष्ट शब्दों में जैन-जीवन प्रसार में बाधक बन सकते हैं । अतएव हमारा सभी कार्यकर्ताओं से सानुरोध निवेदन हैं कि वे अपने जीवन को जैन-जीवन के निकट लाएँ । इससे न केवल वे ही उन्नत हंग प्रत्युत वे अपने आस-पास के समाज का नैतिक स्तर भी उठा सकेंगे । तथा तभी वे सच्चे अर्थो में हिंसक हो सकेंगे और तभी हिंसा का प्रसार कर सकेंगे । इसलिए जैन-जीवन की जरूरत है। उस जीवन की जो सत्य और अहिंसा से श्रोत प्रोत है । म० गांधी ने उसे मूर्तमान कर दिखाया था । ऐसे आदर्शवादियों का मिशन ही लोक पथ प्रदर्शन करने का अधिकारी है । अतः मिशन ले जाने के लिए सबसे पहले आदर्श पुरुष और विद्वान् मिशन को चाहिये ! क्या हम इस ओर अग्रसर होने का सक्रिय प्रयत्न भी करेंगे ?
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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