________________
ॐ कर्म-सिद्धांत और मानव एकता *
३५. उसका चारित्र प्रशंसनीय कहा जा भेदों को निबटाने के लिये शस्त्रास्त्रों सकता है। इतने से ही वह मुमुक्षु का सहारा ले रहे हैं -कोरिया, संतोष धारण नहीं करता, बल्कि मलाया और इंडोचायना में सचसाधना और अनुभव द्वारा आत्म- मुच युद्ध लड़े जा रहे हैं। इस स्वभाव में हल्लीन हो जाता है और अवस्था में यह कैसे माने कि संयम को अपनी आत्मा का एक निश्चयनयेन इन राष्ट्रों ने शान्ति अभंग गुण मानने लगता.-वैसा ही का रूप पहिचाना है ! उनके हृदय अनुभव करता है हो निस्सन्देह तो अभी द्वेष और द्रोह से जल रहे 'शुद्ध निश्चय नय' से भी वह महान् हैं। मिश्र, ईरान और जरमनी की चरित्रवान होगया है।
समस्यायें इसके प्रमाण हैं। जैनों के इस प्राचीन सिद्धांत के किन्तु ऐसी परिस्थिति में भी प्रकाश में आज की · समस्या का हमें निराशावादी नहीं बनना है। हमें विचार कीजिए । मान लीजिए तो आशा करना चाहिये कि निकट संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति के प्रयास भविष्य में लोग अपनी त्रुटि को सच्चे हैं, फिर भी आतंक क्यों है ? पहिचानेंगे और क्रोध, मान, माया, सच बात तो यह है कि गत दो लोभ-कषायों से ऊपर उठकर महान विश्व युद्धों के लड़े जाने के अपने स्वरूप को पावेंगे और एकता बावजूद भी राष्ट्रों का शान्ति के के सूत्र मे बधेंगे। अपने आत्मस्वभाव लिये जो दृष्टिकोण है वह व्यवहार को पाकर ही राष्ट्र सुख-शान्ति और नय की सीमा में भी शायद ही समृद्धि का अनुभव करेंगे तथा आता है। आज भी राष्ट्र अपने मत- विरोधों को जीत लेंगे। ॐ शान्तिः।
[४८वें पृष्ठ का शेष भाग] . खुदाई का कार्य प्रारम्भ कराया जाय क्षण, अध्ययन एवं प्रकाशन की ओर इससे न केवल जैन धर्म के संबंध हमारी लोकप्रिय सरकार एवं जनता में नई बातो को जानकारी होगी, शीघ्र ध्यान देगी, जिससे हम अपनी अपितु भारत के इतिहास पर नया बहुमूल्य निधि को नष्ट होने से बचा प्रकाश डालने वाली कितनी ही बातें सकें और उसके द्वारा अपने इतिज्ञात हो सकेंगी। आशा है कि प्राचीन हास का सच्चा स्वरूप जानने में समर्थ बस्तुओं के अनुसंधान, उनके संर- हो सकें।