SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म और योग पर एक नवीन दृष्टिकोण ( हंगेरियन विद्वान डॉ० फेलिक्स वाल्यी के अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन में दिये गये भाषण का सार ) मुझे अत्यंत हर्ष है कि आप लोगों आज पाश्वात्य विद्वानों में यह ने मुझ विदेशी को जैन धर्म जैसे बात बहुमत से मान्य हो चुकी है कि गंभीर धर्म पर अपने विचार प्रकट भगवान महावीर संसार के महान करने का सुअवसर प्रदान किया। विचारकों में अग्रणीय हैं। यहाँ तक पाश्चात्य जगत में अभी तक जैन कि यद्यपि भगवान बुद्ध और उनके धर्म के अध्ययन के विषय में उपेक्षा अनुयायीयों का जैन धर्म से मनोसी रही है । परन्तु अब कुछ पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं चिंतन में अन्तर रहा विद्वानों का ध्यान इस ओर गया है, है फिर भी उन्होंने महात्मा महावीर जिन्होंन कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म को संसार को एक अलौकिक विभूति की विशेषताओं के साथ उनका पार- · माना है। स्परिक मौलिक अंतर भी बताया है। योग के विषय में भी मेरा विचार जर्मनी के विद्वान जेकौवी वाल्टर, है कि समस्त भारतीय धर्म योग की शूधिग, हेल्मट फॉन ग्लासनां आदि आधार शिलापर ही आधारीत है। पश्चामीय विद्वान उल्लेखनीय है। एवं योग ने ही विश्व के सांस्कृतिक बौद्ध धर्म जैन धर्म से ही मूल विकास में एक महती भाग लिया है। प्रेरणा लेकर बढ़ने पाया। वह जैनों जैन धर्म की मूल भावना निश्चय ही के आत्मसुख एवं जैनेतरो के बलिदान साधनामय योग है । व्यक्तिगत साधना का मध्यवर्ती समन्वित रूप है। पर जैन धर्म में बहुत जोर दिया गया भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध है। आत्मानुशासुन योग साधना द्वारा को इतिहास से अलग नहीं किया जा ही होता है । दुख है कि आधुनिक युग सकता। ये दोनों ही भारत के उच्च- में योग का दुरुपयोग हुआ है और कोटि के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मीक वह अब केवल प्रदर्शन की वस्तु रह स्वर के स्तंभ रहे हैं। इन विभूतियों गई है। वास्तविक योग तो जैन धर्म ने वैदिक युग से आती हुई मानव की ही है। इसमें शरीर और मन दोनों परम्परागत दास्ता को निरर्थक सिद्ध के नियंत्रण का ध्यान रक्खा गया है। करके मनुष्य के आत्म स्वातंत्र्य पर यही योग जैन धर्म से आगे चलकर जोर दिया है। सब धर्मों में समा गया है। आज
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy