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________________ *श्री अखिल विश्व जैन मिशन के प्रथमाधिवेशन इन्दौर का भाषण २ . फैल सकती है । इस महान् ध्येय को लेकिन गृहत्याग के समय भी मातासामने रखकर ने यदि व्यवस्थित पिता को नाराज नहीं किया। वैराग्य प्रयत्न करें तो उनसे मानव जाति की तीव्र होने पर भी उन्होंने संयम रखा। महान् सेवा हो सकती है। मेरा तो वे किसी को दुखाना नहीं चाहते थे। विश्वास है कि आप सब के हृदय में साधना के समय भी अनेक कष्टों भगवान महावीर के तत्त्वों का विश्व- को सहन किया । आत्मौपम्यवृत्ति की व्यापी प्रसार हो, ऐसी सद्भावना है। साधना के लिये कष्ट देनेवालों के वह आपको इस महान कार्य के लिये प्रति भी उनके हृदय में प्रेम था। प्रेरणा देगी और आपके हाथों बहुत बारह वर्ष तक मौन रख उन्होंने गहरा बड़ा कार्य होगा। लेकिन आप निश्चय चिन्तन कर ऐसा मार्ग सुझाया करें और उस कार्य को पूरा करने के जिससे प्राणीमात्र सुखी, बन लिये जिन सद्गुणों की जरूरत है सकते हैं। सब को सुख से रहने की उन्हें लाने का प्रयत्न करें। यदि आपने जीवन कला उन्होंने सिखाई। अहिंसा, निष्ठा के साथ इस महान कार्य का अस्तेय, अपरिग्रह, और अनेकान्त प्रारम्भ किया तो आपको अवश्य ही को अपनाकर मनुष्य खुद सुखी सफलता मिलेगी। लेकिन आप अपनी बनता है और दूसरों को सखी बना दृष्टि में विशालता लाइये और संकुचित सकता है। सबके सुख में अपना दायरे से बाहर निकलकर बड़े क्षेत्र सुख निहित है। इस कला को अपमें आइये। नाने से संसार के दुख दूर होकर महावीर युग पुरुष थे मानवता का विकास होता है और ___ भगवान महावीर ढाई हजार मनुष्य सच्चे मनुष्य के रूप में जीवन . साल पहले हुए, लेकिन आज भी हम बिताता है । उन्होंने बताया कि सुख उनका बड़े आदर क साथ स्मरण कहीं बाहर नहीं है; वह तो भीतर ही करते हैं। ऐसी उनमें कौन-सी बात भरा हुआ है। बाहर की किसी चीज थी जो हमें आकर्षित कर रही में सुख नहीं रहता। है ? वे प्रेम और अहिंसा की मूर्ति ऐसे महान् पुरुष जिन्होंने सुख थे। उनसे संसार में प्रचलित हिंसा, का मार्ग बताया और संसार को विषमता का दुःख देखा नहीं गया । गलत रास्ते से जाने से रोकने का उनका प्रेम मानव जाति तक ही उपदेश दिया इसी कारण इतने वर्षों । नहीं, प्राणी मात्र तक व्याप्त था। बाद भी हम उन्हें पूजते हैं आदर . उन्होंने सब के दुःखों को दूर करने देते हैं और उनके सिद्धान्तों को का मार्ग ढंढ़ने के लिये गृहत्याग कर अपना कर अपनी मानवता का ' साधना करने का निश्चय किया। विकास कर सकते हैं। ऐसे महापुरुष
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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