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________________ २२ . * अहिंसा-वाणी * किसी एक के नहीं संसार के होते हैं। इस तरह मनुष्य जीना सीखकर उनका तत्वज्ञान किसी एक सम्प्रदाय केवल अपना जीवन बितावे इसी में के लिये नहीं, सब के लिये रहता है। उसका जीवन सम्बन्धी कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। उसकी जिम्मेवारी अहिंसा है कि वह इस कला को दूसरे तक प्राणीमात्र में जीव हैं। सभी पहुँचावे । क्योंकि मनुष्य अकेला जीव हमारी तरह ही सुख की चाह नहीं रह सकता, वह समुदाय में रखते हैं। इसलिये अपने सुख के रहता है । वह सामाजिक प्राणी है। लिये दूसरे को कष्ट न देकर, सब इसलिये बिना समाज में मानवता जीवों को अपनी तरह मानकर के फैलाये वह अपनी मानवता को आत्मवत् व्यवहार करने का नाम टिका नहीं सकता । वह अपने आप अहिंसा है। शरीर तथा सम्बन्धों की को हिंसा से बचा नहीं सकता, आसक्ति तथा असावधानी से मनुष्य इसलिये अहिंसक समाज रचना की दूसरों को कष्ट देता है। इसी कारण आज जरूरत है। विषमता, शोषण, असन्तोष, कलह, क्रान्ति हिंसा से या अहिंसा से झगड़े और युद्ध निर्माण होते हैं। संसार की आज मुख्य समस्या __ यह व्यक्तिगत हिंसा ही अपनों के आर्थिक विषमता है । आर्थिक विषप्रति आसक्ति के कारण सामूहिक __ मता के कारण व्यक्तिगत झगड़ों से तथा सामाजिक बनती है । इस अपने छोटे से लगाकर बड़े. विश्वयुद्ध तक पन का कुटुंब, समाज, धर्म जाति, होते हैं। इस तथ्य को जान लेने के राष्ट्र आदि के नाम से कई लोग कारण आज लोग विषमता मिटाना विस्तार करते हैं। अपने-परायेपन चाहते हैं। यह छोटे बड़े का भेद है का भेद हिंसा है। जहाँ अपनों के जिसके कारण कुछ तो मेहनत न कर प्रति राग होता है वहाँ दूसरों के प्रति आराम की जिन्दगी बिताते हैं और उपेक्षा आही जाती है। अपनों के सुख कुछ कठिन परिश्रम कर पूरा पेट भी के लिये दूसरों को कष्ट देना जरूरी नहीं भर सकते । इसके कारणों से हो जाता है । इसलिये भगवान महा- जनता परिचित हो गई है। जागृति वीर ने सब के सुख में अपना सुख, होने के कारण वह अपने हकों को सब की भलाई में अपनी भलाई का जानने लग गई है। तत्वज्ञान संसार को दिया था। यों तो विषमता के दुष्परिणाम दूसरे को कष्ट दिये बिना दुखी समाज को न भोगने पड़े, इसलिये बनाये बिना जीने की कला सिखा भगवान महावीर ने अस्तेय और अपरिग्रह को जीवन में बहुत महत्त्व था।
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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