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* स्वागत-भाषण * अनुसार जो धर्म अविरुद्ध परिवर्तन में उतरकर किया है। और जो तत्व करना आवश्यक हो और जिसके चिन्तामणि के रूप में सत्य, अहिंसा, कारण हमारी प्रगति रुक गई हो, उस अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि-आदि रत्न स्थिति का भी रूपान्तर कर हमे एक 'ढंढ़ निकाले हैं वे प्रत्येक व्यक्ति के विशुद्ध जीवन प्रणाली का निर्माण, जीवन को महान बना सकते हैं। करना होगा । हम रूढियों के मोह- व्यक्ति समाज का अविभाज्य अंग पाश में जकड़े रहकर तत्वों की है। व्यक्ति सुधरता है तो समाज
आधार शिलाओं को नहीं डिगने दे महान बनता है। इस प्रकार क्रमशः सकते । यदि पाश्चात्यों के थोथे व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और सधारवाद की ओर बढ़े तो अपनी विश्व में कल्याण की लहर उत्पन्न हो मल पंजी भी गवां बैठेंगे । अतः हमे सकती है। अतः मैं तो व्यक्ति सुधार बड़ी सावधानी से अपने कदम को ही समाज सुधार का प्रथम चरण बढ़ाने होंगे।
मानता हूँ। और उन मूलभूत तत्वों वर्तमान में हमने अपनी आंखों
को व्यक्तिगत रूप में ग्रहण करने की देखा है कि भगवान महावीर और
प्रार्थना करना चाहता हूँ। यही विश्व बुद्ध के अहिंसामयी जीवन तत्वों को .
बंधुत्व का बीज है । इसीमें से अनन्त राष्टपिता महात्मा गांधी ने अपनाया, और उसके आधार पर फौलादी
शाखाओं का उद्गम होगा और पराधीनता की बेड़ियों को छिन्न भिन्न
उसकी छाया में झुलसी हुई मानवता कर दिया संसार की बड़ी बड़ी का
को शांति मिल सकेगी। हिसक शक्तियाँ अहिंसा और सत्य के
अभी जो मानव समाज में व्याइस चमत्कार को देखकर चकित रह पक अनैतिकता का धुंआ छाया हुआ गई। यह नवीन इतिहास का स्वर्णिम है, जिसने जीवन दर्शन को असंभव पष्ठ अमिट बन कर सत्य अहिंसाका बना दिया है, उसके लिए यथार्थ सदा संदेश देता रहेगा । हमारा भूमिका का निर्माण करें । उन ध्रुव कर्तव्य है कि सत्य और अहिंसा की सिद्धांतों को लेकर एक देशव्यापी अमृत शक्ति का संचार मानव समाज आवाज को बुलन्द करें। निराशा. में करें । हम निष्क्रिय बैठे बैठे नहीं अंधकार, हीनता और मायूसी के देख सकते कि अपवित्र शक्तियाँ वातावरण को निवारण कर नवीन सात्विक शक्तियों पर बादल बनकर प्रेरणा एवं चेतना जागृत करें । जो छा जांय ।
अभिशाप बनकर हमारे समस्त जीवन __जैन दर्शन का निर्माण बड़े-बड़े को मिगल जाने वाली प्रवृत्तियाँ हैं मुनि, तपस्वी, त्यागी, प्राचार्य मानस उनको यथासमय नष्ट भ्रष्ट कर दें। शास्त्रियों ने आत्मा की अतल गहराई और एक ऐसे शंखनाद का उद्घोष