________________
* हिंसा-वाणी
१६
करें जिससे कि स्वर्णिम युग का उदय हो सके । यदि यह नहीं हुआ तो देश की आने वाली पीढ़ियों को इस गर्त में से निकलना असंभव हो जायगा । इसलिए मिशन के कर्णधार महापुरुषों से मेरा नम्र निवेदन है कि वे समयोचित यथाथता के अधार पर एक सुनिश्चित जीवन प्रणाली का निर्माण करें और उसको अधिक से अधिक व्यापक बनाने का कार्य आरम्भ करें। समाज के प्रत्येक व्यक्ति से भी मेरा अनुरोध है कि वे इस शुभ कार्य में अपना पूर्ण सहयोग देवें ।
इसी अवसर पर श्री डाक्टर कालीदास नाग के सभापतित्व में अहिंसा सांस्कृतिक सम्मेलन भी हो रहा है। इसके लिए मेरा यही निवेदन है कि ऐसे सुझाव प्रस्तुत किये जावें जो रचनात्मक हों और जिनसे जैन-धर्म की हिंसा संस्कृति विश्व व्यापी बने । जैन मिशन के प्रस्तावों व आगामी कार्यक्रमों के लिये नीचे कुछ सुझाव मैं प्रस्तुत करता हूँ ।
(१) मिशन के अधिकाधिक सह - योगी और सद्स्य बनाने का प्रयत्न किया जाय और इसमें ऐसी सुविधा हो ताकि सर्व साधारण जनता भी पूर्णरूप से मिशन के सिद्धान्तों को अपना कर कार्यान्वित कर सके ।
(२) विश्व के मुख्य मुख्य केन्द्र स्थलों पर जैन पुस्तकालय व प्रचारविभाग खोलने की योजना बनाई जावे ।
(३) जैनधर्म के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्तमय सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए उदार सेवाभावी और विद्वान प्रचारक हों । तथा लोकोपयोगी सस्ता सरल साहित्य के प्रकाशन आदि की व्यवस्था की जाय ।
जैसे अन्य संस्थाओं का जन्म होता है, उनकी रीति नीति का निर्धारण होता है उसी प्रकार मिशन का सभी कार्य होगा ही, परन्तु यदि मिशन अपने सामने किन्हीं ठोस तथा प्राणवान कार्यक्रमों को लेकर आगे बढ़ेगी तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि उसे इस कार्य में सर्वांगीण सफलता अवश्यमेव प्राप्त होगी ।
आज इस अवसर पर भारत वर्ष के अनेक विद्वान और सज्जन उपस्थित हैं जो मिशन की प्रगति को समुन्नत करने की दिशा में क्रियात्मक कार्य करेंगे ।
श्री० कामताप्रसादजी इस मिशन के कर्णधार हैं इस मिशन के जीवनारंभ से ही आपनें इसके प्रति जो ठोस और रचनात्मक सेवाएं की हैं, वे कभी भी विस्मृत न होंगी ।
हमारे सामने अर्थाभाव का सबसे बड़ा प्रश्न है, परन्तु जहाँ लगन और दृढ़ता की क्रियात्मक शक्ति कार्य करती है वहाँ ये सब बातें और गौण हो जाती हैं योजनाओं की पूर्ति की स्वयं व्यवस्था हो जाती है। मिशन ने अपने तीन वर्ष के कार्य काल में अहिंसा वाणी 'Voice of Ahi