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________________ *अहिंसा-वाणी __ देखा ऐसा गया है कि सज्जन जरूरत हो उसके लिये आपकी पाँच लोग और जनसेवक मिलकर बहुत रुपये की ज्ञानभरी पुस्तक का कोई कम काम करते हैं। कोई भी काम उपयोग नहीं । उपदेश देने की अपेक्षा मिल कर आसानी से होता है। यह अधिक उत्तम है कि हम उनके और तो क्या, लेकिन दुर्जन, लुटेरे बीच जाकर जो बात: सिखाना और डाकू भी मिल कर काम करते. चाहते हैं आचरण से सिखायें। हैं और उनमें आपस में प्रेम, परस्पर उनके बच्चों को पढ़ायें या इस तरह विश्वास और सहयोग होता है। के और कोई सेवा के काम करें। आप देखेंगे जिन बुराइयों से आप यहाँ प्रसंगवश में दो एक उदाहरण को झगड़ना है उनका आप से देना उचित समझता हूँ। अधिक संगठन है और वे बुराइयों दो उदाहरण-- को चालू रखने में सज्जन लोगों १. सन् १६२८ की बात है। का असंगठन कमजोरी उपेक्षावृत्ति बंबई के पास थाना' में सरकार की और कायरता का भी हिस्सा है। ओर से कोड़ियों का दवाखाना चल अगर सज्जन और सेवक आपस में रहा था। प्रतिवर्ष कुछ कोढ़ी ईसाई मिलजुल कर काम करें, उनमें हो जाया करते थे। इस बात की परस्पर प्रेम और सहकार हो तो चर्चा धारा सभा में चली । प्रश्न अच्छी बातें संसार में फैलाने में देर उठाकि क्या यह दवाखाना ईसाई नहीं लगेगी। बनाने का कारखाना है ? सरकार प्रत्यक्ष सेवा .. की ओर से उत्तर में कहा गया कि __ आदमी के मन पर उपदेश की यह बात सच है कि वहाँ ईसाई अपेक्षा प्रत्यक्ष सेवा या आचरण का हमेशा जाते रहते हैं और कुछ कोढ़ी अधिकप्रभाव पड़ता है-सामान्य जनता ईसाई बन जाते हैं, पर दवाखाना का बौद्धिक मापदण्ड तत्त्वज्ञान को ईसाई बनाने के लिये नहीं चलाया पचाने जैसा नहीं होता । सामान्य जाता। लोगों की सूचना से अब जनता तो जीवन की प्राथमिक दवाखाने में हिन्दू पण्डित को भी आवश्यकता से ऊपर उठ ही नहीं नियत किया गया । उस समय पाती। उनकी आयश्यकताओं को सिन्ध बम्बई से जुड़ा था इसलिये भी वह पूरा नहीं कर पाती । वह धारासभा में मुसलमान मेंबरों की तत्वज्ञान को क्या करे ? अपनी संख्या भी काफी थी। उनकी सूचना सेवाओं द्वारा ही उनमें हम सद्वृत्ति से मौलवी. भी उपदेश के लिये का निर्माण कर सकते हैं। जिस. जाने लगे। व्यक्ति को पानी रखने को घड़े की पंडितजी मंगल को और मौलवीजी
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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