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________________ * रिपोर्ट तृतीय वर्ष श्री अखिल विश्व जैन मिशन * ७१ २. श्रीमान् प्रागदास कामता प्रसाद जैन, अलीगंज (एटा), रु० ५०७) (२) आजीवन सदस्य गण:१. श्री सेठ हीरालाल जी जैन, नवाई (जयपुर)-२६-४-५१ रु० १५१) २. श्री सेठ गणपतराय जी सेठी, लाडनं (राज०) २७-४-५१ रु० १०१) , प्रो० श्यामसिंह जी जैन, लखनऊ २४-६-५६ ,, १५१) । ४., दि० जैन पंचायत, मारवाड़ी टोला, गया ८-११-५१ ,, १५१) ,, सेठ सर भागचंद जी सोनी, अजमेर २३-१२-५१ ,, १५१) ,, भंवरलाल जी डोल्या, बम्बई २५ १६-२-५१ ,, ३०) (शेष रु० आने को है) ७. ,, इन्द्रजीत जी जैन, वकील, कानपुर , १४-३-५२ ,, १५०) - इस प्रकार गत वर्ष से सदस्यों लाखों पशुओं को प्राणदान दे रहा की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है, बल्कि है,. उसका श्रेय भी तो सदस्यों को पुराने सदस्यों में से अधिकांश है। कुल रु० की नन्ही-सी आय में दूसरे व तीसरे वर्ष सदस्य नहीं रहे। उच्चकोटिकी दो पत्रिकाओं का यह ठीक है कि पहले वर्षों में जितना प्रकाशित करना, दस प्रकार के ट्रेक्टों साहित्य उनको दिया जा सका, को, छपाकर वितरण करना केन्द्रों उतना तीसरे वर्ष में नहीं भेजा जा' पुस्तकालय खुलवा कर साहित्य सका। 'अहिंसावाणी' भी नियमित खरीद कर भेजना एवं विदेशी रूप में प्रकाशित नहीं हुई । किन्तु विद्वानों और विश्वविद्यालयों को मिशन की यह कमियां क्षन्तव्य हैं, उच्च जैनग्रंथ भेजना आदि अनेक क्योंकि मिशन के पास कोई फंड ठोस कार्यों का किया जाना, अपनी नहीं है जिससे वह मनमाना साहित्य विशेषता रखता है। अतः मिशन के छापे । और तो और मिशन कार्यालय, सदस्य तो अधिक से अधिक संख्या के लिये एक नियमित क्लर्क रखने में बनना चाहिये । सदस्य बनने से में भी वह असमर्थ है। संचालक आपको स्वयं भी ज्ञानार्जन और महाशय ही को यह सब व्यवस्था चारित्रपालन की ओर अग्रसर होना करनी होती है। उस पर सदस्यता पड़ता है । केवल 'कथनी' नहीं, शुक्ल की तुलना साहित्य से करना 'करनी' भी वाञ्छनीय है। सदस्यों भी नहीं चाहिये । सदस्य तो प्रचार की संख्या बढ़ाने में केन्द्रों के संयोके लिये बनता है- अहिंसा की जक, महोदयों एवं अन्य महोदयों ने ज्योति देशविदेश के लोगों के हृदयों -जो सहयोग दिया है, उसके लिए में मिशन जगा रहा है और अनेक मिशन उनका आभारी है । शेष व्यक्तियों को निरामिषभोजी बनाकर रोकड़ भी 'वाइस' और 'श्रा० वा०'
SR No.543515
Book TitleAhimsa Vani 1952 06 07 Varsh 02 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size30 MB
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